चीड़ की छाल में ढूंढा जीवन: पोलियोग्रस्त जीवन चंद्र जोशी ने बनाई आत्मनिर्भरता की मिसाल

बेजान पेड़ों की छाल को बना लिया 'जीवन' का आधार

May 26, 2025 - 06:28
 0
चीड़ की छाल में ढूंढा जीवन: पोलियोग्रस्त जीवन चंद्र जोशी ने बनाई आत्मनिर्भरता की मिसाल

चीड़ की छाल में ढूंढा जीवन: पोलियोग्रस्त जीवन चंद्र जोशी ने बनाई आत्मनिर्भरता की मिसाल

बेजान पेड़ों की छाल को बना लिया 'जीवन' का आधार

पोलियोग्रस्त पैरों वाले हल्द्वानी के जीवन चंद्र जोशी चीड़ की छाल से तैयार करते हैं सुंदर आकृतियां

पिता की दी दुकान साधनास्थली चीड़ के बगेट से जीवन मंदिर, वाल हैगिंग, मूर्तियां, फ्लावर पाट और अगरबत्ती स्टैंड बनाते हैं। खास बात यह है कि जीवन क्राफ्ट डिजाइनिंग के लिए किसी मशीन का प्रयोग नहीं करते। छेनी, आरी, रेगमार, रेती से ही आकृतियां बनाते हैं। पिता ने जो दुकान खरीदकर दी थी, वह आज भी उनकी साधनास्थली है। इन आकृतियों से होने वाली आय ही उनका व परिवार का सहारा है। फिलहाल उनकी बनाई कलाकृतियां हल्द्वानी व नैनीताल के बाजार तक पहुंच रही हैं। 

हल्द्वानीः जीवन चंद्र जोशी की कहानी प्रेरणा और जीवटता से भरी हुई है। दिव्यांगता को उन्होंने कभी अभिशाप नहीं माना, बल्कि इसे अपनी ऊर्जा का स्रोत बनाया। दोनों पैरों में पोलियो हो जाने के बावजूद हार नहीं मानी। अपने नाम को जीवन का आधार बनाया और पोलियोग्रस्त पैरों के साथ चल पड़े संघर्ष की एक नई कहानी लिखने। आज परिणाम सबके सामने हैं। उनकी अंगुलियां जब चीड़ के बगेट (छाल) को तराशती हैं तो हर टुकड़ा उत्तराखंड की संस्कृति और परंपरा की कहानी कहने लगता है।


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को अपने रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' में जीवन चंद्र जोशी की कला और जज्बे की दिल खोलकर तारीफ की तो हल्द्वानी से जुड़े इस नाम को मिली राष्ट्रीय पहचान। शारीरिक अक्षमता को मात देकर लकड़ी के बेजान टुकड़ों को कला का नायाब नमूना बनाने वाले जीवन की कहानी हर उस इंसान के लिए प्रेरणास्रोत बन गई है, जो मुश्किलों के आगे हार मानकर टूट जाता है।


पिता बने पथ प्रदर्शकः मूल रूप से अल्मोड़ा जिले के जाखन देवी गोविंदपुर गल्ली निवासी 65 वर्षीय जीवन चंद्र जोशी हल्द्वानी के कठघरिया घुनी नंबर दो में रहते हैं। वह दो वर्ष की उम्र तक सामान्य बच्चे की तरह थे, लेकिन अचानक पोलियो ने उनके दोनों पैर छीन लिए। 10वीं तक पढ़े जीवन को तब भाई कंधे पर बैठाकर स्कूल तक छोड़ते थे, क्योंकि वह चल नहीं सकते थे। 1988 में उनके दोनों पैरों का आपरेशन हुआ। छह महीने तक अस्पताल और फिर घर पर बिस्तर पर पड़े रहे। पिता मोहन चंद्र जोशी सिंचाई विभाग में इंजीनियर पद से सेवानिवृत्त थे। जीवन में हार नहीं माननी की पिता की दी सीख को उन्होंने कामयाबी का पथ बना लिया।


इस तरह हुई शुरुआतः जीवन जब 30 वर्ष के थे तो पिता ने कठघरिया में सड़क किनारे एक दुकान खरीदकर दे दी। उन्होंने उसी दौरान चीड़ के बगेट (छाल) से बनी आकृतियां देखीं। इस बीच उनकी मुलाकात हल्द्वानी में बगेट आर्टिस्ट संजय बैरी से हुई। उन्होंने बैरी से छाल को आकार देना सीखा। उसके बाद अल्मोड़ा, रानीखेत, भीमताल से बगेट मंगाने शुरू कर दिए। दिनचर्या ऐसी कि रोज सुबह बेजान बगेट को आकार देने से शुरू होती और रात उस बगेट में जान डालने पर खत्म। सीसीआरटी फेलोशिप पा चुके वर्ष 2019-20 में भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की संस्था सीसीआरटी जीवन चंद्र जोशी को सीनियर फेलोशिप अवार्ड के रूप में दो वर्ष तक 20 हजार रुपये प्रतिमाह दे चुकी है। इसके अलावा जीवन लखनऊ, कोलकाता, भोपाल, अहमदाबाद में इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल में उत्तराखंड का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। लखनऊ में उन्हें बेस्ट अपकमिंग आर्टिस्ट का अवार्ड मिला था 

जिनके नाम में जीवन हो वो कितनी जीवटता से भरे होंगे। आमतौर पर जिसे लोग बेकार समझते हैं, जीवन के हाथों में आते ही वह धरोहर बन जाती है। - नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री

Bharatiya news samachar Bharatiya news samachar हमरे साथ पिछले 2 साल से कार्य कर रहे हैं और आप कई विषयों पर आप लिखते हैं