अयोध्या का इतिहास पहिला अध्याय अयोध्या की महिमा

 अ्रयोध्या मथुरा माया काशी काश्ली हावन्तिका | पुरी ढाराबती चैव सप्लैता मोक्षदायिकाः

Jan 17, 2024 - 12:54
Jan 17, 2024 - 13:01
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अयोध्या का इतिहास  पहिला अध्याय  अयोध्या की महिमा

अयोध्या का इतिहास

पहिला अध्याय । अयोध्या की महिमा |

अ्रयोध्या जिस अवध और साकेत भी कहते हैं श्रत्यन्त प्राचीन नगर है । यह पहिले उत्तरकोशल की राजधानी थी जिसमें “सुख सम्रद्धि के साथ हिन्दू लोग जिस वस्तु की आकांज्ञा करते या जिसका आदर सम्मान करते हैं वह सब प्राप्त हो चुका था जैसा कि श्रब सिलता असम्भव है और जो उस तेजधारी राजवंश का निबास-स्थान था जो सूर्यदेव से उत्पन्न हुआ और जिसमें ६० निर्दोष शासकों के पीछे मर्यादापुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्र का अवतार हुआ |

इस बीर के ऐतिहासिक समालाचना पीछे से मनुष्य की कल्पना का सर्वोत्तम निसये सिद्ध करे या अरद्धऐेति- हासिक खान दे, इस पर विचार करना व्यर्थ है। इतिहास का उस प्रभाव से सम्बन्ध है जा इनके चरित्र का इस बड़ी आर्यज्ञाति के सामाजिक ओर धार्मिक विश्वास पर है और इतिहास यह भी देखता है कि इनकी जन्म-भूमि की यात्रा का बड़ी श्रद्धा और भक्ति से यात्रियों की ऐसी भीड़ श्राती है, जैसे किसी दूसरे तीथ में नहीं । अयोध्या का नाम सात तीर्थो' में सब से पहले श्राया है:--


 अ्रयोध्या मथुरा माया काशी काश्ली हावन्तिका |
पुरी ढाराबती चैव सप्लैता मोक्षदायिकाः ॥

अयोध्या फा इतिहास

कहने वाले कह सकते हैं कि छन्द में अयोध्या का नाम पहिले आना उसके प्राधान्य का प्रमाण नहीं । परन्तु यह ठीक नहीं; एक प्रसिद्ध शछोक ओऔर है जिससे प्रकट है कि अयोध्या तीथथ-रूपी विष्णु का मस्तक हैः-- विष्णोः पादमवन्तिकां गुणवर्ती मध्ये ल काश्वीपुरीन 

नामिं द्वारवतीस्तथा च हृदये मायापुर्री पुरयदाम्‌।
, प्रीवामूलमुदादरन्ति मथुरां नासाध्व वाराणसीम्‌
एतदुबह्मविदों वद्न्ति मुनये(5येष्यापुरी मस्तकम्‌॥

शेष छः तीर्थों में से अनेक की बड़ाई इसी केशल-राजधानी के सम्बन्ध से हुई है। श्रीकृष्ण जी के जन्म से बहुत पहिले मथुरा को शत्रुस्‍्न ने बसाया था, जिनको श्रीरामचन्द्र ने यमुनातट पर बसे हुये नपस्थियों के सतानेवाले लवण को मारने के लिये भेजा था । माया या मायापुरी हरिद्वार का नामान्तर है जहाँ अयोध्या के राजा भगीरथ की लाई हुई गड्जा पहाड़ों से निकल कर मैदान में आती है ओर काशी अयोध्या की श्मशान-भूमि है । '- इन दिनों भी अयोध्या जैन-धर्मावलम्बियों का ऐसाही तोर्थ है जैसा हिन्दुओं का। अध्याय ८ में दिखाया जायगा कि २४ तीर्थकरों में से २२ इच्चाकुबंशी थे और उनमें से सबसे पहिले तीथंकर/आदि्निाथ ( ऋषभ-
देव जी ) का और चार ओर तीर्थकरों का जन्म यहीं हुआ था । “बौद्धमत की तो कोशला जन्मभूमि ही माननी चाहिये। शाक्य- मुनि की जन्मभूमि कपिलवस्तु और निर्वाणभूमि कुशिनगर* दोनों केाशला में थे। अयोध्या में उन्होंने अपने धर्म की शिक्षा दी और वे सिद्धान्त बनाये जिनसे जगतृप्रसिद्ध हुये और कुशिनगर में उन्हें वह पद्‌ प्राप्त हुआ जिसकी बौद्धमतवाले आकांक्षा करते और जिसे निर्वाणकहते हैं।|.
झाजकल की कसिया (गोरखपुर ज़िले में ) ।

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