पितृपक्ष के ये 4 दिन हें अब बेहद खास, जानें क्या हैं इन तिथियों का महत्व
पितृपक्ष के ये 4 दिन हें अब बेहद खास, जानें क्या हैं इन तिथियों का महत्व
पितृपक्ष के ये 4 दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं, जिनका महत्व धार्मिक और पारंपरिक दृष्टि से होता है। इन तिथियों का महत्व निम्नलिखित है:
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पितृपक्ष के ये 4 दिन हें अब बेहद खास, जानें क्या हैं इन तिथियों का महत्व:
पितृपक्ष की कुछ तिथियों को लेकर शास्त्रों में कुछ विशेष नियम बताए गए हैं। साथ ही यह भी बताया गया है कि इन तिथियों में किनका श्राद्ध किया जाता है। पितृपक्ष की ऐसी ही 4 सबसे महत्वपूर्ण तिथियों का महत्व, नियम और मान्यताएं हम आपको बता रहे हैं।
पितृपक्ष के पूरे पखवाड़े में ही पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ पितरों का स्मरण करके उनके लिए श्राद्ध और पिंडदान किया जाता है। लेकिन पितृपक्ष में कुछ खास तिथियों का विशेष महत्व होता है। इन खास तिथियों में उन पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु की तिथि ठीक से ज्ञात न हो। ऐसी 4 तिथियों के बारे में हम आपको बता रहे हैं जो पितृपक्ष में सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। आइए जानते हैं कौन सी हैं ये 4 खास तिथियां।
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मातृ नवमी, 7 अक्टूबर: मातृ नवमी का महत्व उन माताओं की याद में होता है जो अपने बच्चों की खुशहाली के लिए अपना जीवन समर्पित करती हैं। इस दिन, आपको अपनी दिवंगत माता का श्राद्ध करके उनका समर्पण करना चाहिए। यह दिन आपके जीवन को खुशियों से भर देता है और आपके घर में खुशहाली आती है।
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पितृपक्ष की एकादशी, 10 अक्टूबर: पितृपक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी कहते हैं और इसका महत्व शास्त्रों में बताया गया है। इस दिन आपके पूर्वजों की आत्मा को शांति और तृप्ति मिलती है, और आपको यमलोक में जाने से बचाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा के साथ पितरों का भी पूरी श्रद्धा के साथ स्मरण करना चाहिए।
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पितृपक्ष में चतुर्दशी श्राद्ध, अपमृत्यु श्राद्ध, 14 अक्टूबर: चतुर्दशी श्राद्ध का महत्व अकाल मृत्यु को प्राप्त लोगों के श्राद्ध में होता है। इस दिन उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु चतुर्दशी के दिन हुई है या किसी दुर्घटना के कारण हुई है। यह श्राद्ध अपमृत्यु श्राद्ध भी कहलाता है।
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सर्वपितृ अमावस्या, 15 अक्टूबर: सर्वपितृ अमावस्या पितृपक्ष का आखिरी दिन होता है और इस दिन भूले-बिसरे पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए श्राद्ध किया जाता है। इस दिन कम से कम 5 ब्राह्मणों को घर बुलाकर भोजन करवाना चाहिए और आदरपूर्वक दान-दक्षिणा देनी चाहिए।
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