मुंबई : कालेज के हिजाब बैन पर दखल देने से कोर्ट का इन्कार

एक वाट्सएप संदेश के जरिये सब पर थोपा गया है। इससे याचिकाकर्ताओं की चुनाव करने की आजादी, शारीरिक पवित्रता और स्वायत्तता को ठेस पहुंचती है।

Jun 27, 2024 - 19:23
Jun 28, 2024 - 05:27
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मुंबई : कालेज के हिजाब बैन पर दखल देने से कोर्ट का इन्कार

कालेज के हिजाब बैन पर दखल देने से कोर्ट का इन्कार

हाई कोर्ट ने कहा, कालेज के फैसले में  हस्तक्षेप करने को नहीं है इच्छुक  

मुंबई का मामला : नौ मुस्लिम छात्राओं ने दी थी कालेज के फैसले को कोर्ट में चुनौती, कालेज परिसर में हिजाब, नकाब, बुर्का, स्टोल, टोपी, बैज पहनने पर लगाई गई है पाबंदी

बांबे हाई कोर्ट ने मुंबई के एक कालेज के अपने परिसर में। हिजाब, बुर्का और नकाब पर प्रतिबंध लगाने के फैसले में हस्तक्षेप करने से इन्कार कर दिया। चेंबूर ट्रांबे एजुकेशन सोसायटी के एनजी आचार्य और डीके मराठे कालेज के एक ड्रेस कोड लागू करने के निर्देश को चुनौती देते हुए नौ मुस्लिम छात्राओं ने इस महीने की शुरुआत में बांबे हाई कोर्ट का रुख किया। इसके तहत छात्र- छात्राएं कालेज परिसर के अंदर हिजाब, नकाब, बुर्का, स्टोल, टोपी और बैज नहीं पहन सकते।


जस्टिस एएस चंदुरकर और राजेश पाटिल की खंडपीठ ने बुधवार को कहा कि वह कालेज के लिए गए फैसले में हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं। इसके बाद मुस्लिम छात्राओं की ओर से दायर याचिका खारिज कर दी, जो विज्ञान डिग्री पाठ्यक्रम के दूसरे और तीसरे वर्ष की छात्रा हैं। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता अल्ताफ खान ने कहा कि इस मामले को कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले से अलग रखें। चूंकि यह मामला सीनियर कालेज के छात्राओं का है, जहां यूनिफार्म नहीं होती है। उन्होंने आरोप लगाया कि ड्रेस कोड एक वाट्सएप संदेश के जरिये सब पर थोपा गया है। इससे याचिकाकर्ताओं की चुनाव करने की आजादी, शारीरिक पवित्रता और स्वायत्तता को ठेस पहुंचती है।

वहीं कालेज प्रशासन का कहना है कि यह अनुशासनात्मक फैसला सभी जाति व धर्म के छात्र-छात्राओं के लिए है। यह फैसला मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नहीं है। लेकिन याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि ऐसा निर्देश उनके धर्म का पालन करने के मौलिक अधिकारों, निजता के अधिकार और पसंद के अधिकार के खिलाफ है।


उल्लेखनीय है कि इससे पहले कर्नाटक में भी इस तरह के प्रतिबंध के खिलाफ जोरदार आवाज उठी थी और मामला हाई कोर्ट भी पहुंचा था। लेकिन ड्रेस कोड को स्कूल का अनुशासन बताते हुए बरकरार रखा गया था।

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