छोटा पाकिस्तान' की छवि से मुक्त होना चाहता है सेब का कटोरा सोपोर

सैयद अली शाह गिलानी, अफजल गुरु यहीं से निकले। वर्ष 1990 के बाद सोपोर सेबों की टोकरी की अपनी छवि गंवा बैठा और छोटा पाकिस्तान बन गया। उन्होंने कहा कि मेरे पिता स्व. गुलाम रसूल कार को यहां लोगों को चुनाव के लिए तैयार करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा था।

Sep 1, 2024 - 05:29
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छोटा पाकिस्तान' की छवि से मुक्त होना चाहता है सेब का कटोरा सोपोर

छोटा पाकिस्तान' की छवि से मुक्त होना चाहता है सेब का कटोरा सोपोर

दशकों तक अलगाववादियों का गढ़ रहा कश्मीर का सोपोर अब मतदान के प्रति है उत्सुक, चुनाव को अपने क्षेत्र की समस्या के हल के तौर पर देख रहे हैं स्थानीय लोग 

 11 हजार वर्ष पूर्व बसा कश्मीर का सूयापुर समय के साथ सोपोर हो गया। अपनी खूबसूरती और सेब के बागान के लिए मशहूर सोपोर सदा कश्मीर की आर्थिक और सामाजिक गतिविधियों का केंद्र हो गया। समय बदला और पाकिस्तान की ऐसी नजर लगी कि यह शहर आतंकी हिंसा और अलगाववादी विचारधारा का 'लांचपैड' बन गया। विकास का चक्र थमता गया और बंद और हड़ताल ही यहां की नियति बन गई। सोपोर के सेब की सुगंध और मिठास भी फीकी पड़ गई।

अलगाववादियों का गढ़ होने के कारण इसे 'मिनी पाकिस्तान' कहा जाने लगा। अब समय का पहिया फिर से घूम रहा है और अलगाववादी बुखार उत्तर रहा है। ऐसे में सोपोर की आबोहवा बदल रही है और आतंकी हिंसा के दुष्चक्र से मुक्ति के बाद राहत की सांस ले रहे स्थानीय लोग अब इस छवि से मुक्ति चाहते हैं। इसी उम्मीद से मतदान में अपनी भागीदारी सुनिश्चित बनाने के लिए एक-दूसरे को प्रेरित कर रहे हैं।

सोपोर नगर पालिका की पूर्व अध्यक्ष मुसरंत कार ने कहा कि कश्मीर में आतंकी हिंसा का सबसे ज्यादा नुकसान सोपोर और इसके निवासियों को हुआ। यह लश्कर-ए- तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन का गढ़ बन चुका था। आए दिन की हड़ताल और हिंसा ने सब खत्म कर दिया। सैयद अली शाह गिलानी, अफजल गुरु यहीं से निकले। वर्ष 1990 के बाद सोपोर सेबों की टोकरी की अपनी छवि गंवा बैठा और छोटा पाकिस्तान बन गया। उन्होंने कहा कि मेरे पिता स्व. गुलाम रसूल कार को यहां लोगों को चुनाव के लिए तैयार करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। 1996 के विधानसभा चुनाव में यहां करीब 38 प्रतिशत मतदान हुआ। 

वर्ष 2002 में यहां से विजयी रहे उम्मीदवार को मात्र 2062 वोट मिले थे। अब पांच वर्ष में यहां बहुत कुछ बदला है और लोग अपने मुद्दों की चर्चा करते दिख रहे हैं। हम वोट देंगे और हिसाब भी लेंगे सोपोर के माडल टाउन के मुसैब फारूक ने कहा कि यहां कभी सिनेमाहाल होते थे, कई पुराने मंदिर हैं, सूफी जियारतें भी हैं, लेकिन यह क्षेत्र पर्यटन मानचित्र से दूर रहा। आज भी श्रीनगर में किसी से बात करें कि लोग सोपोर में रात बिताने से हिचकते हैं। यहां कस्बे में सड़कों की स्थिति देखो, ट्रैफिक बढ़ गया है। स्ट्रीट लाइट्स नहीं हैं। रोजगार बड़ा मुद्दा है। पहले यहां लोग वोट डालने से डरते थे। अब हम वोट भी देंगे और हिसाब भी लेंगे।

सोपोर के बोम्मई के रहने वाले साहिल बेग ने कहा कि यहां यहां कोई निवेश नहीं करना चाहता। एशिया की दूसरी सबसे बड़ी फल मंडी यहां है, लेकिन हमारे सेब के बाग मर रहे हैं, क्योंकि आतंकी हिंसा ने बागवानी को बर्बाद कर दिया। बागवानी विभाग ने यहां सेब का जूस व अन्य उत्पाद बनाने का एक बड़ा कारखाना लगाया था, वह भी जंग खा रहा है। यहां हर कालोनी में पेयजल की समस्या है, जबकि हम झेलम के किनारे बसे हैं। स्थानीय निवासी इमरान मीर ने कहा कि पहले लोग समस्याओं को लेकर प्रशासन के पास जाने से भी डरते थे, क्योंकि उन पर मुखबिर होने का आरोप लगता था और फिर आतंकी आ धमकते थे।

अगर कोई किसी अधिकारी के पास पहुंच जाता तो उसे यही सुनने को मिलता कि आपको कहां विकास या रोजगार चाहिए सोपोर को तो पाकिस्तान चाहिए। जवाबदेही न होने के कारण भ्रष्टाचार भी फैला। अब सब बदल गया है और लोग अपनी छवि बदलना चाहते हैं। अब लोग वोट को लेकर चर्चा कर रहे हैं। यह बीते पांच साल के बदलाव का असर है।

आतंक के दौर में सोपोर में 10 से 20 प्रतिशत के बीच ही रहा है मतदान वर्ष 1987 में सोपोर में 84 प्रतिशत मतदान हुआ था। आतक के दौर की शुरुआत के साथ ही सब तबाह हो गया और मतदान प्रतिशत 10 से 20 प्रतिशत के बीच ही रहा। वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव में सोपोर में 77 हजार मतदाताओं में से मात्र 6,212 मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया, वहीं वर्ष 2008 में 91 हजार में से 18 हजार ने ही वोट डाला। 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में थोड़ा सुधार हुआ और 1.03 लाख में से 31 हजार मतदाता वोट डालने निकले थे।

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