स्व के आधार पर तंत्र चलता है, तब स्वतंत्रता आती है – डॉ. मोहन भागवत जी

भुवनेश्वर, 15 अगस्त। आज स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने उत्कल विपन्न सहायता समिति, भुवनेश्वर द्वारा आयोजित समारोह में ध्वजारोहण किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि स्वाधीनता प्राप्त हुए 78 वर्ष हो गए। कितने साल प्रयास हुए, ऐसा सोचते हैं तो ध्यान में आता है […] The post स्व के आधार पर तंत्र चलता है, तब स्वतंत्रता आती है – डॉ. मोहन भागवत जी appeared first on VSK Bharat.

Aug 19, 2025 - 11:19
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स्व के आधार पर तंत्र चलता है, तब स्वतंत्रता आती है – डॉ. मोहन भागवत जी

भुवनेश्वर, 15 अगस्त। आज स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने उत्कल विपन्न सहायता समिति, भुवनेश्वर द्वारा आयोजित समारोह में ध्वजारोहण किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि स्वाधीनता प्राप्त हुए 78 वर्ष हो गए। कितने साल प्रयास हुए, ऐसा सोचते हैं तो ध्यान में आता है कि ब्रिटिश परतंत्रता से आजाद होने का पहला प्रयास 1857 में हुआ और तब से लगातार प्रयास चलते रहे, अनेक मार्गों से चलते रहे। सशस्त्र अथवा निशस्त्र और सतत तीन पीढ़ी तक लोग अपना प्राण अर्पण करते रहे, जेल में जाते रहे। परिस्थितियां बदलती रहीं, लेकिन उस समय के समाज ने सारे प्रयास तब तक जारी रखे, जब तक कि स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए परिस्थितियां अनुकूल नहीं हो गईं। उन्होंने कहा कि मेरा स्वयं जन्म स्वाधीनता के बाद का है। 78 वर्ष बाद हम लोग स्वाधीनता के लिए किए प्रयासों का स्मरण करते हैं क्योंकि हमारे पूर्वजों ने कमाया। हमको तो अनायास मिल गया, लेकिन इसको कमाने में बड़ा परिश्रम लगा है और इसको रखने और बढ़ाने में भी परिश्रम लगेगा।

उन्होंने कहा कि “स्वतंत्रता में स्व और तंत्र है। स्व के आधार पर तंत्र चलता है, तब स्वतंत्रता आती है । भारत एक वैशिष्ट्यपूर्ण देश है। वह दुनिया में सुख शांति लाने के लिए जीता है । दुनिया को धर्म देने के लिए जीता है। इसलिए हमारे राष्ट्रध्वज के केंद्र में धर्मचक्र है। ये धर्म सबको साथ लेकर, सबको जोड़कर, सबको उन्नत करता है। इसलिए लोक में और परलोक में सबको सुख देने वाला है। ये धर्म दुनिया को देने के लिए भारत है, ये हमारी विशेषता है। ये देने के लिए भी तंत्र हमारा होना पड़ेगा। स्व के आधार पर चलना पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि देश पंद्रह अगस्त 1947 स्वतंत्र हो गया। अंग्रेज चले गए, हमारे अपने लोगों के अधीन अपना देश हो गया। आज विश्व लड़खड़ा रहा है। दो हजार वर्षों तक अनेक प्रयोग करने के बाद भी दुनिया को समस्याओं के निदान नहीं मिले हैं। ऐसे में विश्व को अपनी दृष्टि के आधार पर, धर्म दृष्टि के आधार पर नई सुख, शांति युक्त दुनिया बनाने वाला उपाय देना यह हमारा कर्तव्य है। यह कार्य हमारे स्वतंत्र देश के सामने है। उसके लिए हम सबको वैसा ही परिश्रम, वैसा ही त्याग और वैसा ही बलिदान करना पड़ेगा। जैसा इस स्वतंत्रता को प्राप्त कराने के लिए हमारे पूर्वजों ने किया था।

उन्हेंने कहा कि हमारे पूर्वजों ने स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते समय यह नहीं सोचा कि अनुकूलता जब आएगी, तब काम होगा। अनुकूलता अभी नहीं है, यह जानकर भी सतत प्रयास द्वारा उन्होंने यह भावना जनमानस में जागृत रखी। वैसा ही हमको परिस्थिति का विचार किए बिना हमारे देश में सबको सुख, शांति, एकता, सबको सम्मान, सबको प्रतिष्ठा मिले। इसके साथ-साथ विश्व में कलह मुक्ति, विश्व में पर्यावरण समस्या आदि बातों का निदान करके सुखी सुंदर दुनिया बनाने वाला विश्व गुरु भारत खड़ा करना है। इस अपने कर्तव्य का स्मरण आज हम सब लोग करें।

सरसंघचालक जी ने कहा कि हमारे राष्ट्रध्वज में केसरिया रंग ऊपर है। यह त्याग का, कर्मशीलता का ज्ञान का रंग है। इसी तरह शुद्ध चरित्र निर्मलता का प्रतीक सफेद रंग बीच में है और यह दोनों जब एक साथ आते हैं, शुद्ध चरित्र वाले लोग निस्वार्थ बुद्धि से त्यागपूर्वक जब कर्म करते हैं, परिश्रम करते, ज्ञान की आराधना करते हैं तो फिर जो समृद्धि आती है। वह समृद्धि का, लक्ष्मी जी का रंग, यह हरा रंग है। यह सब हमें धर्म के आधार पर करना है। इसलिए हमारे राष्ट्रीय ध्वज में जो धर्म चक्र है, वह हमें क्या करना है और किस प्रकार करना है, दोनों बात का बोध कराता है। इसी तरह हम सब लोग अपने कर्तव्य का स्मरण करें और उस कर्तव्य की दिशा में छोटे-छोटे संकल्प लेकर अपने जीवन में आगे बढ़ें। जैसे आज कल संघ के स्वयंसेवक पंच परिवर्तन की बात करते हैं। ऐसे ही छोटे-छोटे संकल्पों से इस प्रकार का परिवर्तन समाज में, देश में, उसके कारण दुनिया में लाएंगे। ऐसे छोटे-छोटे परिवर्तनों से प्रारंभ करके अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ने का क्रम शुरू करना चाहिए।

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