वह गौरवमयी क्षण!

वनवासी कल्याण आश्रम का कार्यकर्ता किसी पुरस्कार के लिए कार्य नहीं करता। लेकिन, पिछले 73 वर्षों से कल्याण आश्रम जनजाति समाज की सर्वांगीण उन्नति के लिए जो कार्य कर रहा है, यह कार्य जिनके अथक परिश्रम पर आगे बढ़ रहा है, ऐसे कल्याण आश्रम के किसी कार्यकर्ता को एक प्रतिनिधिक रूप में अगर पद्मश्री जैसा […] The post वह गौरवमयी क्षण! appeared first on VSK Bharat.

May 2, 2025 - 05:28
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वह गौरवमयी क्षण!

वनवासी कल्याण आश्रम का कार्यकर्ता किसी पुरस्कार के लिए कार्य नहीं करता। लेकिन, पिछले 73 वर्षों से कल्याण आश्रम जनजाति समाज की सर्वांगीण उन्नति के लिए जो कार्य कर रहा है, यह कार्य जिनके अथक परिश्रम पर आगे बढ़ रहा है, ऐसे कल्याण आश्रम के किसी कार्यकर्ता को एक प्रतिनिधिक रूप में अगर पद्मश्री जैसा पुरस्कार मिलता है तो देश भर में कार्यरत सभी कार्यकर्ताओं का सीना गर्व से भर जाता है। आज पद्म पुरस्कार का समारोह देखने वाले कल्याण आश्रम के लगभग सभी कार्यकर्ताओं की यही अनुभूति रही।

पिछले लगभग 35 सालों से ग्राम विकास के क्षेत्र में निरंतर कार्य करते हुए महाराष्ट्र के छोटे से गांव बारीपाड़ा से अपने साथियों को साथ लेकर जिन्होंने एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया, ऐसे अपने कार्यकर्ता चैतराम पवार जी को नई दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। राष्ट्रपति महोदया जी के करकमलों से पद्मश्री तो चैतराम जी स्वीकार कर रहे थे, लेकिन प्रत्येक कार्यकर्ता स्वयं गर्व की अनुभूति कर रहा था। आखिर कल्याण आश्रम जैसे संगठन की यही तो विशेषता कही जा सकती है।

यह पुरस्कार अपने जनजाति समाज के लिए कार्यरत हजारों समर्पित एवं निष्ठावान कार्यकर्ताओं का एक प्रातिनिधिक सम्मान तो है ही, लेकिन यह एक ऐसा सम्मान भी है जो एक छोटे से जनजाति गांव में चल रहे स्वावलंबन के अनूठे प्रयोग को संपूर्ण समाज के सामने लाता हो…

जो निःस्वार्थ भाव से कार्य करने वाले हजारों सामाजिक कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाने वाला हो …

एक ऐसा पुरस्कार जो ग्राम विकास जैसे कंटकाकीर्ण मार्ग में सभी लोगों को साथ लेकर चलते हुए दीर्घकाल तक डटे रहेंगे तो समाज, सरकार, पुरस्कार, सफलता स्वयं कदम छूती है, इसका एहसास कराने वाला हो…

वैसे तो इतना महान कार्य करने के बाद पांव जमीन पर रखना कठिन काम! लेकिन आज जिस सहजता और विनम्रता से चैतराम जी ने पुरस्कार ग्रहण किया, वह सहजता एक असामान्य कार्यकर्ता ही दिखा सकता है। ‘मैं’ के स्थान पर ‘हम’ यह भाव कैसे होता है, इसका दर्शन आज हुआ।

आज का दिन वास्तव में एक अद्भुत… गौरवमयी…. स्वर्णिम था!!

महेश काले

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