मोहन भागवत बोले — 'अहिंसा हमारा स्वभाव है, लेकिन गुंडों को सबक सिखाना भी धर्म है'

दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि अहिंसा हमारा स्वभाव और मूल्य है, लेकिन गुंडों को सबक सिखाना भी हमारा धर्म है। उन्होंने कहा कि राजा का कर्तव्य है प्रजा की रक्षा करना और बुराई के खिलाफ सख्त कदम उठाना। मोहन भागवत बोले — 'अहिंसा हमारा स्वभाव है, लेकिन गुंडों को सबक सिखाना भी धर्म है' Mohan Bhagwat said nonviolence is our nature but teaching lesson to goons is also our religion

Apr 26, 2025 - 18:35
Apr 26, 2025 - 19:05
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मोहन भागवत बोले — 'अहिंसा हमारा स्वभाव है, लेकिन गुंडों को सबक सिखाना भी धर्म है'
मोहन भागवत बोले — 'अहिंसा हमारा स्वभाव है, लेकिन गुंडों को सबक सिखाना भी धर्म है'

दिल्ली: मोहन भागवत बोले — 'अहिंसा हमारा स्वभाव है, लेकिन गुंडों को सबक सिखाना भी धर्म है'

दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने शनिवार को एक कार्यक्रम के दौरान अपने संबोधन में स्पष्ट शब्दों में कहा कि अहिंसा भारतीयों का स्वभाव और मूल्य है, लेकिन जब समाज में कुछ लोग लगातार दूसरों को परेशान करने पर उतारू हो जाते हैं, तो उनके खिलाफ कड़ा कदम उठाना भी आवश्यक हो जाता है।

भागवत ने कहा, "अहिंसा हमारा स्वभाव है, हमारा मूल्य है... लेकिन कुछ लोग नहीं बदलते, चाहे कुछ भी करो। वे दुनिया को परेशान करते रहते हैं, तो ऐसे में क्या करना चाहिए? अहिंसा हमारा धर्म है, और गुंडों को सबक सिखाना भी हमारा धर्म है।"

उन्होंने यह भी कहा कि भारत हमेशा से अपने पड़ोसियों का सम्मान करता रहा है और उनकी भलाई चाहता रहा है। "हम अपने पड़ोसियों का कभी अपमान या नुकसान नहीं करते, लेकिन अगर कोई बुराई पर उतर आए तो दूसरा विकल्प क्या बचता है?" उन्होंने सवाल उठाया।

अपने संबोधन में भागवत ने राज्य की जिम्मेदारी पर भी बल दिया। उन्होंने कहा, "राजा का कर्तव्य है कि वह प्रजा की रक्षा करे। यदि कोई समाज या राष्ट्र में विघटन फैलाता है, तो उसे रोकना शासक का धर्म है।"

मोहन भागवत के इस बयान को वर्तमान समय में देश और दुनिया में हो रही घटनाओं के संदर्भ में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। उन्होंने शांति और अहिंसा के मूलभूत सिद्धांतों को बनाए रखने के साथ-साथ अन्याय और अत्याचार के खिलाफ सख्ती से खड़े होने की आवश्यकता पर बल दिया।

कार्यक्रम में बड़ी संख्या में स्वयंसेवक, प्रबुद्ध नागरिक और गणमान्य अतिथि मौजूद रहे। भागवत के भाषण के दौरान सभागार में कई बार तालियों की गड़गड़ाहट गूंजती रही।

किसी का कुछ और हो सकता है लेकिन यह चर्चा होने से ही उसमें से नवनीत निकलेगा उस मंथन में से ही निष्कर्ष निकलेंगे उसकी आवश्यकता है क्योंकि हमारा अपना जीवन इसके अनुसार नहीं चल रहाहै दुनिया को उनको बहुत सिखाना है और सिखाने लायक हमारे पास बहुत है लेकिन जो बहुत है वो आज हमारे आचरण में नहीं है तो भेद भाव कहां से आया अभी भी चलता हैक्यों चलता है हमारे यहां स्पष्ट उल्लेख है अहिंसा ही हमारा स्वभाव है हमारा मूल्य है लेकिन हमारी अहिंसा लोगों को बदलने के लिए लोगों को अहिंसक बनाने के लिए है तो कुछलोग तो बन जाएंगे हमारा उदाहरण लेकर लेकिन कुछ लोग नहीं बिगड़ नहीं बनेंगे और इतने बिगड़े रहेंगे कुछ भी करो वो नहीं होंगेऔर उपद्रव करेंगे दुनिया का तो इसके लिए क्या करनाहै आपने बताया मुंबई में मैंने रावण का उल्लेख रावण का उल्लेख मैंने इसलिए कहा मैंने कहा कि भाई हम तो किसी के दुश्मन नहीं है द्वेष वगै रह हमारा स्वभाव नहीं हैतो रावण का भी जो वध हुआ रावण के अकल्याण के लिए नहीं हुआ कल्याण के लिए हुआ जब यहसिद्ध हुआ कि शिव भक्त रावण है वेद ज्ञाता रावण है

उत्तम गवर्नेंस करने वाला रावण हैसब प्रकार का उसके पास अच्छा आदमी बनने केलिए जो जो चाहिए वो सब है लेकिन उसने जिस शरीर और मन बुद्धि का स्वीकार किया है वोऐसा है कि वो इस अच्छाई को उसके अंदर आनेनहीं देगा और कुछ भी करो उसमें अच्छाई भरनहीं सकते अब उसको अच्छा बनना है तो एक हीउपाय है उस शरीर मन बुद्धि को समाप्त करकेवो दूसरे शरीर और मन बुद्धि को लेकर आजाए तो भगवान ने उसका संहार किया अब उससंहार को हिंसा नहीं कहते वो अहिंसा हीहै तो अहिंसा हमारा धर्म है आतताइयों सेमार ना खाना गुंडागर्दी वालों को सबक सिखाना यह भी हमारा धर्म हैअब पाश्चात्यों की जो विचार पद्धति है उसमें दोनों एक साथ नहीं चलसकते क्योंकि इन दोनों को बैलेंस करने वाला जो विचार है कि मैं लोगों में मेरा शत्रु है फिर भी मैं देखूंगा अच्छा आदमी है कि खराब आदमीहै वो बैलेंस नहीं है शत्रु है या नहीं शत्रु है वो अच्छा होगा तोभी उसको पूरा मिटादो हमारे यहां वो अच्छा है कि नहीं इसको देखते हैं और कुछ लोगों को थोड़ा दंड देके कुछलोगों को ज्यादा दंड देके कुछ लोगों कोदंड दिएबिना सुधार कर अपनाते हो जिनका इलाज हीनहीं दूसरा कुछ उनके कल्याण केलिए उनको बेसिक मटेरियल दूसरा पाने के लिएभेज देते हैं जहां मिलता है 

वहां इससे एक बैलेंस है अभी हम हम कभी भीअपने पड़ोसियों की कोई अपमान कोई हानि नहीं करते लेकिन ऐसा हम रहते हैं तो भी अगर कोई उतरआए बुराई पर तो वहां पर अब दूसरा इलाजक्या है राजा का कर्तव्य है प्रजा कीरक्षा करना राजा अपना कर्तव्यकरे दोनों धर्म है इसलिए गीता में गीतामें अहिंसा का ही उपदेश है अहिंसा का उपदेश इसलिए किया कि अर्जुन लड़े और मारे क्योंकि उस समय ऐसे लोग थे सामने कि अब उनके विकास का दूसरा इलाज नहीं था तो सब बदल के उनको आना पड़ेगा फिरसे ये एक संतुलन रखने वाली भूमिका अपनेयहां है वो संतुलन हम भी भूलगए ये संतुलन देने वाला धर्म है धर्म की दृष्टि है हमारे यहां जैसा बताया चार पुरुषार्थ है 

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