महाकुंभ के बाद संगम में चमत्कार – डॉल्फिन और पक्षियों की बढ़ती संख्या ने सबको किया हैरान!

महाकुंभ के बाद संगम से आई खुशखबरी! गंगा नदी में डॉल्फिन की संख्या बढ़कर 6,324 हो गई है, जो जल की शुद्धता का प्रमाण है। विदेशी पक्षियों की असामान्य मौजूदगी ने भी वैज्ञानिकों को हैरान कर दिया है। जानिए इस चमत्कारी बदलाव के पीछे की वजह। महाकुंभ के समापन के बाद गंगा नदी में डॉल्फिन की संख्या दोगुनी हो गई है, जो जल की गुणवत्ता में सुधार का संकेत है। संगम तट पर विदेशी पक्षियों की अप्रत्याशित मौजूदगी ने वैज्ञानिकों को चौंका दिया है। यह सब गंगा सफाई अभियान और पर्यावरण संरक्षण के सफल प्रयासों का परिणाम है।

Mar 17, 2025 - 05:30
Mar 17, 2025 - 05:39
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महाकुंभ के बाद संगम में चमत्कार – डॉल्फिन और पक्षियों की बढ़ती संख्या ने सबको किया हैरान!

गंगा में रिवर डॉल्फिन की बढ़ी आबादी

प्रकृति का चमत्कार तब देखने को मिलता है जब इंसान उसके प्रति जिम्मेदारी से पेश आता है। हाल ही में आई पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट ने इस बात को फिर से साबित कर दिया है। प्रयागराज के महाकुंभ के समापन के बाद संगम से जो खुशखबरियां सामने आई हैं, उन्होंने न सिर्फ वैज्ञानिकों को हैरान कर दिया है, बल्कि पर्यावरण प्रेमियों और स्थानीय जनता के चेहरे पर भी मुस्कान ला दी है। गंगा के जल की शुद्धता और पारिस्थितिकी तंत्र (Eco-system) में आए सुधार के संकेत इतने स्पष्ट हैं कि अब यह किसी चमत्कार से कम नहीं लग रहा। आइए जानते हैं कि महाकुंभ के बाद संगम से जुड़ी इन रोमांचक और प्रेरणादायक खबरों के पीछे क्या कारण हैं।

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गंगा में डॉल्फिन की संख्या में दोगुनी बढ़ोतरी

पर्यावरण मंत्रालय की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, गंगा नदी में डॉल्फिन की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है।

2021 में गंगा में डॉल्फिन की संख्या लगभग 3,275 थी।

2025 की रिपोर्ट के अनुसार, यह संख्या बढ़कर 6,324 हो गई है।

डॉल्फिन को 'गंगा का स्वास्थ्य संकेतक' माना जाता है। डॉल्फिन केवल साफ और स्वच्छ जल में ही जीवित रह सकती है। इसका सीधा मतलब यह है कि गंगा के जल की गुणवत्ता में काफी सुधार हुआ है।

गंगा की सफाई के लिए सरकार द्वारा चलाए गए अभियानों जैसे "नमामि गंगे" और महाकुंभ के दौरान जल शुद्धि कार्यक्रम का यह सीधा असर है।

डॉल्फिन की बढ़ती संख्या इस बात का प्रमाण है कि गंगा अब पहले से कहीं अधिक स्वच्छ और जैव विविधता के लिए उपयुक्त हो गई है। वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर यह रुझान जारी रहा, तो गंगा का इकोसिस्टम भविष्य में और भी मजबूत होगा।

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विदेशी पक्षियों की असामान्य मौजूदगी – वैज्ञानिक भी हैरान!

महाकुंभ के समापन के बाद एक और चौंकाने वाली घटना संगम तट पर देखी गई।

आमतौर पर फरवरी के अंत तक लौट जाने वाले विदेशी पक्षी इस बार 13 मार्च तक संगम में डेरा डाले रहे।

संगम के तट पर हजारों की संख्या में साइबेरियन क्रेन, फ्लेमिंगो, गीज़ और अन्य प्रवासी पक्षी देखे गए।

पक्षी वैज्ञानिकों का कहना है कि पक्षियों का इतनी देर तक रुकना एक बड़ी घटना है।

पक्षी केवल तब तक किसी जगह पर रुकते हैं, जब वहां का वातावरण और भोजन का स्रोत उनके लिए अनुकूल होता है।

इससे साफ है कि संगम का जल अब इतना शुद्ध हो गया है कि प्रवासी पक्षियों को वहां लंबे समय तक रहने में कोई समस्या नहीं हो रही।

विदेशी पक्षियों की इस मौजूदगी ने वैज्ञानिकों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या संगम के पारिस्थितिकी तंत्र में कोई स्थायी सुधार हो रहा है?

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गंगा जल की गुणवत्ता में सुधार के पीछे कारण

गंगा के जल की गुणवत्ता में सुधार के पीछे कई महत्वपूर्ण प्रयासों का योगदान है:

"नमामि गंगे" योजना के तहत गंगा के किनारे बसे शहरों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) लगाए गए।

 महाकुंभ के दौरान गंगा को स्वच्छ बनाए रखने के लिए विशेष सफाई अभियान चलाए गए।

 कचरे के निपटान के लिए समर्पित टीमों को तैनात किया गया।

 रसायनों के उपयोग और उद्योगों से निकलने वाले दूषित पानी को नियंत्रित किया गया।

इन प्रयासों का सीधा असर गंगा के जल की गुणवत्ता पर पड़ा है। यही कारण है कि डॉल्फिन और प्रवासी पक्षी अब इस पवित्र नदी को अपना घर समझ रहे हैं।

प्रेरणा और सीख – प्रकृति को बचाना संभव है!

गंगा में डॉल्फिन की बढ़ती संख्या और विदेशी पक्षियों की असामान्य मौजूदगी यह दर्शाती है कि अगर सही नीयत और रणनीति के साथ काम किया जाए, तो प्रकृति खुद को पुनर्जीवित कर सकती है।

यह घटना हमें सिखाती है कि हमें अपनी नदियों, जंगलों और पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा के लिए निरंतर प्रयास करने होंगे।

गंगा की सफाई अभियान एक मिसाल है कि जब समाज, सरकार और जनता मिलकर काम करते हैं, तो असंभव भी संभव हो सकता है।

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"स्वच्छ गंगा, स्वस्थ भारत" – एक नई उम्मीद की किरण

गंगा का शुद्ध जल और उसमें तैरती डॉल्फिन न केवल पर्यावरण संरक्षण की सफलता की कहानी है, बल्कि यह पूरे विश्व के लिए एक प्रेरणा भी है।

गंगा केवल एक नदी नहीं है, यह भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान है।

 डॉल्फिन की बढ़ती संख्या और विदेशी पक्षियों की मौजूदगी ने साबित कर दिया है कि अगर हम प्रकृति के प्रति संवेदनशील रहें, तो वह हमें दोगुना लौटाती है।  "गंगा का कल्याण ही भारत का कल्याण है। अगर गंगा हंसेगी, तो भारत भी खुशहाल होगा।"

"गंगा फिर मुस्कुराई है – यह नई शुरुआत का संकेत है!"

डॉल्फिन की मुस्कान और प्रवासी पक्षियों की चहचहाहट इस बात का प्रमाण है कि संगम का पानी अब न केवल पवित्र है, बल्कि जैव विविधता के लिए भी अनुकूल है।

यह घटना हमें सिखाती है कि अगर हम एकजुट होकर पर्यावरण को संवारने का प्रयास करें, तो नदियां, जंगल और जीव-जंतु हमें खुशी और संतुलन से भर देंगे।

महाकुंभ में क्या हो गया चमत्कार? विदेशी पक्षियों ने अब तक प्रयागराज संगम पर डाल रखा है डेरा, वैज्ञानिक भी हैरान

प्रयागराज में महाकुंभ के समापन के 15 दिन बाद भी संगम और उसके आसपास के जलीय जीवन और वायु की गुणवत्ता के संकेतों ने जीव विज्ञानिकों के होश उड़ा दिए हैं।

 

प्रयागराज में महाकुंभ के समापन के 15 दिन बाद भी संगम और उसके आसपास के जलीय जीवन और वायु की गुणवत्ता के संकेतों ने जीव विज्ञानिकों के होश उड़ा दिए हैं। क्योंकि फरवरी के आखिरी हफ्ते तक संगम से हर साल विदा हो जाने वाले विदेशी परिंदें अबतक यहीं मौजूद है। जिसे देखते हुए पर्यावरण विज्ञानियों ने राहत की सांस ली।

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प्रकृति को संजोएं, गंगा को बचाएं – यही भविष्य की सबसे बड़ी पूंजी होगी!"

प्रयागराज के संगम तट पर दिसंबर के महीने में हर साल आने वाले विदेशी परिंदों की फरवरी तक मौजूदगी रहती है। लेकिन इस बार ये विदेशी मेहमान 15 मार्च तक अभी संगम के तट से विदा नहीं हुए हैं। पक्षी विज्ञानियों का मानना है कि यह संगम जल की शुद्धता का प्रतीक है।

प्रदूषण मुक्त जल और वायु की स्थिति पर मुहर

जलीय जीवन और पक्षियों के अंतर्संबंधों पर शोध (Research on bird interactions) कर रहे जीव वैज्ञानिक प्रोफेसर संदीप मल्होत्रा का कहना है कि, लारस रीडिबंडस प्रजाति के ये विदेशी परिंदे रूस, साइबेरिया और पोलैंड जैसे ठंडे देशों से हर साल दिसंबर के आखिरी हफ्ते में संगम की धरती पर जमा हो जाते हैं, जो फरवरी खत्म होने तक यहां रहते हैं। 

भोजन और प्रजनन के लिए 7 समंदर पार से आने वाले ये विदेशी परिंदे प्रदूषण के अच्छे संसूचक माने जाते हैं। प्रदूषण मुक्त जल में पलने वाले जीवों को खाकर रहने वाले ये पक्षी प्रदूषण मुक्त हवा में ही सांस ले सकते हैं। फरवरी के आखिरी हफ्ते से 15 दिन का समय गुजर जाने पर इनकी भारी संख्या में मौजूदगी इस बात का संकेत दे रही है कि संगम के जल और वायु में दिसंबर से इनके अनुकूल स्थिति बनी हुई है। यही बात यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में भी सामने आई है।

गंगा में रिवर डॉल्फिन की बढ़ी आबादी

गंगा नदी में डॉल्फिन की मौजूदगी और उनकी बढ़ती आबादी को भी गंगा नदी के जल के प्रदूषण से जोड़ कर देखा जाता है। विश्व वन्य जीव दिवस 3 मार्च 2025 को पर्यावरण मंत्रालय की तरफ से जारी रिपोर्ट के मुताबिक, गंगा नदी में 6,324 डॉल्फिन और सिंधु नदी में तीन डॉल्फिन हैं। वहीं 2021 के पहले गंगा की मुख्य धारा में औसतन 3,275 डॉल्फिन थी। इसमें भी ज्यादा डॉल्फिन यूपी में पाई गई। इसके अलावा फतेहपुर, प्रयागराज से पटना के बीच गंगा नदी में गंगेज डॉल्फिन की बढ़ती आबादी भी गंगा के जल की गुणवत्ता का स्पष्ट संकेत है। इससे भी पक्षी वैज्ञानिकों की रिपोर्ट पर मुहर लग रही है।

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