नक्सलवाद के कड़वे सत्य को उजागर करती फिल्म : मृत्युंजय दीक्षित 

Apr 10, 2024 - 13:47
Apr 10, 2024 - 13:47
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नक्सलवाद के कड़वे सत्य को उजागर करती फिल्म : मृत्युंजय दीक्षित 


नक्सलवाद के कड़वे सत्य को उजागर करती फिल्म : मृत्युंजय दीक्षित 


“द केरल स्टोरी” फेम सुदीप्तो सेन द्वारा निर्देशित और विपुल शाह प्रोडक्शन की फिल्म” बस्तरः द नक्सल स्टोरी”, बस्तर में नक्सली हिंसा तथा वहां के वास्तविक जीवन की घटनाओं पर आधारित और प्रमुख रूप से एक “मां” की शक्ति को समर्पित शानदार फिल्म है। 
फिल्म के आरम्भ में नक्सल प्रभावित क्षेत्र का एक परिवार राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत होकर 15 अगस्त के दिन एक विद्यालय में तिरंगा फहराता है और “जन गण मन“ का गायन करता है किंतु खूंखार नक्सलियों को इसका पता चल जाता है और नक्सली  उस परिवार को अपनी  अदालत में उठा लाते हैं जहाँ तिरंगा फहराने वाले व्यक्ति के शरीर के 32 टुकड़े कर दिये जाते हैं । मारे गए व्यक्ति की पत्नी कहती है,“ मैं रत्ना कश्यप, मेरे पति मिलन कश्यप को नक्सलियों ने मार दिया ,पूरे गांव के सामने 32 टुकड़े कर दिये और उसके खून से अपने शहीद स्तंभ को मेरे हाथों से रंगवाया। क्या गलती थी उसकी, बस यही कि उसने 15 अगस्त को अपने गांव के स्कूल में भारत का झंडा लहराया। बस्तर में भारत का झंडा लहराना एक जुर्म है जिसकी सजा दर्दनाक मौत है।“ मेरे बेटे को भी उठाकर ले गये उसे भी नक्सली बनाएंगे। हर परिवार से एक बच्चा उनको देना पड़ता है नहीं देते तो पूरे परिवार को मार देते  हैं।अरे हम बस्तर की मांएं करें तो करें क्या , मैं मेरे पति का बदला और अपने बेटे को वापस लाने  के लिए जिंदा हूं। “मैने हथियार उठा लिए हैं बस्तर से इन नक्सलियों  को समाप्त करके रहूंगी।” यही फिल्म की पार्श्वभूमि है ।

Bastar: The Naxal Story - Official Teaser | Hindi Movie News - Bollywood -  Times of India

आगे बढ़ते हुए फिल्म बताती है कि किस प्रकार नक्सली देश को कम से कम 30  टुकड़ों में बांटने का खतरनाक षड़यंत्र रचते रहते हैं, भारत के मजबूत लोकतंत्र को कमजोर दिखाने के लिए वामपंथी तत्व किस प्रकार अपना नैरेटिव चलाते हैं और इस भारत विरोधी  अभियान के लिए विदेशी फंडिंग आती है । इनकी घुसपैठ देश  के सामाजिक व राजनैतिक ताने -बाने को प्रभावित करने वाली सभी संस्थाओं यथा विश्वविद्यालयों ,न्यायपालिका व मीडिया जगत में है। निहित स्वार्थां की पूर्ति करने व छत्तीसगढ़ की अकूत सम्पदा पर कब्जा करने के लिए कुछ लोग  नक्सली हिंसा को बढ़ावा  दे रहे थे और बस्तर के गांवों में विकास नहीं हो पा रहा था। सरकारी पक्ष के वकीलों के पास तमाम सबूत होने के बाद भी कोर्ट वामपंथ के वकील के पक्ष में अपना फैसला सुनाती है और सरकारों की विकृत राजनीति व मनोदशा के कारण नक्सलवाद की हिंसा से प्रभावित पीड़ितों पर हुए भीषणतम अत्याचारों  की घटनाओं की जांच के बजाए कोर्ट आईपीएस अधिकारी नीरजा माधवन (अदा शर्मा )के खिलाफ ही न्यायिक जांच आयोग गठित कर दिया जाता है। 
लगभग 124 मिनट लंबी फिल्म में नाक्साली हिंसा के दिल दहलाने वाले क्रूर दृश्य हैं जिसके कारण फिल्म को ”ए“ सार्टिफिकेट दिया गया है। फिल्म की नायिका अदा शर्मा ने आईपीएस अधिकारी नीरजा माधवन के रूप में अत्यंत सशक्त अभिनय किया है जो भारत को हर प्रकार के नक्सलवाद से मुक्त करने के लिए दृढ़संकल्पित हैं।  फिल्म “बस्तर“ में की महिला सिर्फ एक ”मां“ या फिर पत्नी नहीं है वह एक ऐसी योद्धा है जिसके युद्ध का तात्पर्य है अमानवीय  क्रूरता का सामना करना। 
फिल्म का प्रत्येक दृष्य व कहानी वास्तविक  घटनाओं तथा तथ्यों से प्रेरित है। फिल्म मानवता को झकझोरने, आम जनमानस को नक्सलवाद के खिलाफ खड़ा करने तथा राष्ट्र के समक्ष वामपंथ की विकृत विचाराधारा का खुलासा करने में समर्थ है। 
बस्तर में नक्सली हिंसा की सबसे अधिक शिकार महिलाएं हुयी हैं। नक्सली आतंक स्त्रियों के लिए  आईएसआईएस और बोको हरम जितने ही खतरनाक हैं । फिल्म में बस्तर में सीआरपीएफ के 76 जवानों की निर्मम हत्या की घटना और उसके पश्चात जेएनयू जैसे विश्व विद्यालयों में माने गए जश्न को भी शामिल किया गया  है। 
नक्सलियों के आतंक के खात्मे  लिए आईपीएस नीरजा माधवन (अदा शर्मा) पूरी ताकत से लड़ रही है । फिल्म के अंत में नीरजा माधवन के संवाद बहुत ही सशक्त और राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत हैं। फिल्म के सभी किरदारों ने सशक्त अभिनय किया है, फिल्म की गति इसे कभी उबाऊ नहीं होने देती । नायिका अदा शर्मा के अतिरिक्त वामपंथी वकीलों  की भूमिका में राम्या सेन ,अंगसा बिश्वास और रत्ना की भूमिका में इंदिरा तिवारी छाप छोड़ती हैं । फिल्म का गीत  वंद वीरम दिल को छू रहा है ।    
निर्देशक सुदीप्तो सेन का कहना है कि यह फिल्म दस वर्षे के गहन शोध का परिणाम है। सुदीप्तो ने माओवादी संघर्ष को काफी नजदीक से देखा है। उनका कहना हे कि माओवादी संघर्ष 1957 से प्रारम्भ हुआ और अब तक अकेले बस्तर जिले में ही 17 हजार पुलिस जवान हीशद हो चुके हैं। यह फिल्म वामपंथ की उग्र विचारधारा की असलियत जनमानस के सामने खोल रही है जिसके कारण वामपंथी विचारधारा वाले लोग निर्माता निर्देशक की आलोचना कर रहे हैं । 
देश की एक बड़ी समस्या नक्सलवाद को समझने के लिए ये फिल्म प्रत्येक भारतीय को देखनी चाहिए। वामपंथी स्वाभाविक रूप से इसका विरोध करेंगे और अपने नेटवर्क के माध्यम से इसकी नकारात्मक समीक्षा कराएँगे, किन्तु अब दर्शक भी जाग चुका है और ऐसी समीक्षाओं में नहीं फंसता – द कश्मीर फाइल्स, द केरल स्टोरी, आर्टिकल 370 की बम्पर सफलता इसका प्रमाण है ।
प्रेषक- मृत्युंजय दीक्षित 

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