पेटीकोट वाले मुगल बादशाह के दरबार की वो वैश्या, जिसके नाम पर है कानपुर का ये मोहल्ला… रिश्वत लेकर करती थी बड़े-बड़े काम

कानपुर के जूही मोहल्ले की कहानी बेहद दिलचस्प है. कहानी शुरू होती है मुगलों के दौर की एक वैश्या से. उसी के नाम पर इस मोहल्ले का नामकरण हुआ था. यह वैश्या रोज की इतनी अधिक कमाई करती थी, जिसका कोई हिसाब नहीं.

Mar 21, 2025 - 08:03
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पेटीकोट वाले मुगल बादशाह के दरबार की वो वैश्या, जिसके नाम पर है कानपुर का ये मोहल्ला… रिश्वत लेकर करती थी बड़े-बड़े काम
पेटीकोट वाले मुगल बादशाह के दरबार की वो वैश्या, जिसके नाम पर है कानपुर का ये मोहल्ला… रिश्वत लेकर करती थी बड़े-बड़े काम

सैयद बंधुओं में सबसे बड़े अब्दुल्ला इतिहास में ‘राजा निर्माता’ के रूप में प्रसिद्ध हैं. जब 1698 में कानपुर की स्थापना हुई, तब यह क्षेत्र इलाहाबाद के सूबा के अधीन था. अब्दुल्ला उस समय सम्राट औरंगजेब की सेना में थे और इलाहाबाद के सूबेदार थे. औरंगजेब दक्कन में युद्ध लड़ने में व्यस्त था, जिसकी मृत्यु 1707 में हुई. अब्दुल्ला 1713 में जहांदार शाह सम्राट के बाद फरुखसियर का वजीर बने. सैयद बंधुओं ने 1713 से 1719 के दौरान छह राजा बनाए. छोटा भाई सेनापति था, जिसकी 1720 में मौत हो गई और बड़ा भाई 1722 में मारा गया.

इतिहासकार अनूप शुक्ला बताते है कि 1722 में बादशाह मोहम्मद शाह रंगीला (पेटीकोट पहनकर दरबार आने वाला बादशाह) के दरबार में एक वेश्या थीं. उसका नाम था कोकी जोए. वह इसी नाम से प्रसिद्ध थीं. हालांकि, उसका असली नाम रहीमुन्निसा था. अनूप शुक्ला बताते हैं कि कानपुर का जूही उसके ही नाम का अपभ्रंश है. सैयद बंधुओं के पतन के बाद कोकी जोए उच्च सत्ता पर पहुंच गई. बादशाह के नाम पर उसने 1722 से 1734 तक वस्तुतः भारत पर शासन किया.

जूही का बंगला

रिश्वत के रूप में उसकी उन दिनों प्रतिदिन की आय 25000 रुपये (उस दौर के मुताबिक) थी, जिसमें बादशाह का भी हिस्सा होता था. कानपुर में गंगा के दक्षिण में कान्हपुर गांव तक, बल्कि वर्तमान कानपुर तक उसकी अमलदारी थी. कानपुर में उसके द्वारा बनाई गई इमारतों में जूही का बंगला (अब त्रिवेणी नगर मीरपुर), पुराने सिविल हवाई अड्डे के पास सावदा कोठी, और एक किला जिसमें एक भागने की सुरंग है (अब ऑल सोल्स मेमोरियल चर्च) शामिल है.

कोकी जोए की फोटो

इतिहासकार अनूप शुक्ला बताते है कि कानपुर का इतिहास काफी पुराना है और यहां के मोहल्लों के जो भी नाम हैं उसके पीछे कोई न कोई रोचक कहानी है. उनके अनुसार कोकी जोए की तस्वीर भी बहुत मुश्किल से देखने को मिलती है. मात्र एक दो इतिहास की किताबें हैं जहां कोकी जोए की फोटो छपी हुई है.

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@Dheeraj kashyap युवा पत्रकार- विचार और कार्य से आने वाले समय में अपनी मेहनत के प्रति लगन से समाज को बेहतर बना सकते हैं। जरूरत है कि वे अपनी ऊर्जा, साहस और ईमानदारी से र्काय के प्रति सही दिशा में उपयोग करें , Bachelor of Journalism And Mass Communication - Tilak School of Journalism and Mass Communication CCSU meerut / Master of Journalism and Mass Communication - Uttar Pradesh Rajarshi Tandon Open University पत्रकारिता- प्रेरणा मीडिया संस्थान नोएडा 2018 से केशव संवाद पत्रिका, प्रेरणा मीडिया, प्रेरणा विचार पत्रिका,