परिवार व्यवस्था को बचाने की चुनौती

क्षमा शर्मा सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में परिवारों के टूटने और उनके स्वरूप बदलने पर चिंता प्रकट की है। न्यायालय ने कहा, ‘हम तो वसुधैव कुटुंबकम् में विश्वास करते हैं, लेकिन हमारे देश में पारिवारिक मूल्य खत्म होते जा रहे हैं। हमारे यहां माता-पिता और बच्चों के बीच भी पारिवारिक मूल्य नहीं बचे हैं। […] The post परिवार व्यवस्था को बचाने की चुनौती appeared first on VSK Bharat.

Apr 11, 2025 - 20:50
 0  19
परिवार व्यवस्था को बचाने की चुनौती

क्षमा शर्मा

सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में परिवारों के टूटने और उनके स्वरूप बदलने पर चिंता प्रकट की है। न्यायालय ने कहा, ‘हम तो वसुधैव कुटुंबकम् में विश्वास करते हैं, लेकिन हमारे देश में पारिवारिक मूल्य खत्म होते जा रहे हैं। हमारे यहां माता-पिता और बच्चों के बीच भी पारिवारिक मूल्य नहीं बचे हैं। वे जमीन-जायदाद के झगड़ों के लिए अदालतों तक पहुंच रहे हैं। हमारे यहां वन परसन-वन फैमिली का विचार जगह बना रहा है।

अपने देश में जो थोड़े-बहुत पारिवारिक मूल्य बचे हैं, उनका लगातार क्षरण हो रहा है। आज भी परिवार से बड़ी शक्ति दुनिया में दूसरी नहीं है। तभी तो पश्चिम परिवार और पारिवारिक मूल्यों की गुहार लगा रहा है। हालांकि वहां परिवार के लोगों द्वारा देखभाल को भी केयर इकोनॉमी का नाम दिया जाता है और इसके बदले पैसे देने की मांग की जाती है। भारत में भी ऐसी मांग उठती रहती है। अपने देश में ऐसे संयुक्त परिवार तो शायद बहुत ही कम बचे होंगे, जहां दादा-दादी, माता-पिता, चाचा, ताऊ, उनके बाल बच्चे सब एक साथ रहते हों। अब तो परिवार का मतलब पति-पत्नी और बच्चे ही रह गए हैं। दशकों से एकल परिवारों को आदर्श बताया जाता रहा है।

आपको शायद याद हो कि हमारे यहां परिवार नियोजन के विज्ञापन कहते थे – हम दो, हमारे दो। यदि आज परिवारों के ढांचे पर नजर डालें, तो आम तौर पर मध्यवर्गीय परिवारों में एक बच्चे का चलन बढ़ा है। चाहे लड़का हो या लड़की, सिर्फ एक बच्चा। इसके कारण आर्थिक और सामाजिक भी हैं। मध्यवर्ग की अधिकांश महिलाएं नौकरी करती हैं। वे न अधिक बच्चों को जन्म दे सकती हैं, न ही उनके पालने-पोसने, शिक्षा के लगातार महंगे होने के खर्चे ही उठाए जा सकते हैं।

हालांकि, चीन की एक बच्चा नीति के दुष्परिणाम भी हमारे सामने हैं। ऐसे में यदि एक बच्चा है, तो उनकी पीढ़ी ऐसी होगी, जिनके आसपास बहुत से रिश्ते नहीं होंगे। जैसे जिनका एक बेटा है, उसकी कोई बहन नहीं होगी। इस लड़के का मान लो कोई बच्चा हुआ तो वह बुआ और उसके बच्चों के रिश्तों को भी नहीं जानेगा। जिनकी एक बेटी है, उसका कोई भाई नहीं होगा।

भाभी और उसके बाल-बच्चे नहीं होंगे। चचेरे, ममेरे, फुफेरे आदि भाई-बहनों की तो गिनती ही कहां। ये रिश्ते भी होते हैं, इन्हें यह पीढ़ी भूल चुकी होगी। अब तो तमाम बुजुर्ग यह कहते दिखते हैं कि हमने अपने बच्चे पाल दिए। अब बच्चे अपने बच्चे पालें। कहावतों में ये बातें अब भी जिंदा हैं कि मूल से सूद ज्यादा प्यारा होता है। दादा-दादी, नाना-नानी अपने बच्चों की जिस तरह देखभाल करते हैं, वह कोई और नहीं कर सकता। कई बार अदालतों के फैसले भी इन धारणाओं को तोड़ते हैं।

हाल ही में एक न्यायालय ने कहा था कि बच्ची की देखभाल दादी उस तरह नहीं कर सकती, जैसे मां कर सकती है। मां और पिता के बीच बच्ची की कस्टडी का मामला चल रहा था। पिता का कहना था कि मां की अनुपस्थिति में उसकी मां बच्ची की अच्छी तरह से देखभाल कर सकती है, लेकिन अदालत ने इसे नहीं माना। जबकि पश्चिम में माना जा रहा है कि केवल माता-पिता ही नहीं, दादा-दादी भी बच्चों की अच्छी देखभाल कर सकते हैं। पिछले दिनों स्वीडन में एक नया कानून बनाया गया है, जिसमें दादा-दादी को भी अपने बच्चों के बच्चों की देखभाल के लिए तीन महीने की पेरेंटिंग लीव मिल सकेगी।

यानी वहां बुजुर्ग अपने नाती-पोतों की देखभाल करना चाहते हैं और माता-पिता को भी इससे कोई आपत्ति नहीं है। पश्चिम परिवार की तरफ दौड़ रहा है। वहां के नेता अपने-अपने देश में बच्चों के विकास के लिए परिवार को वापस लाने की बातें कर रहे हैं। इसके लिए नारे दे रहे हैं और चुनाव जीत रहे हैं।

पश्चिम ने पहले परिवार को तोड़ा। तमाम विमर्शों के जरिये स्त्री-पुरुष को एक-दूसरे का दुश्मन और बच्चों को बोझ की तरह बताया। कोख को स्त्री की सबसे बड़ी मजबूरी और कमजोरी कहा। अकेलेपन की बहुत गुलाबी और सुविधाओं, संसाधनों से भरी तस्वीर पेश की।

अब बच्चे चाहिए, परिवार चाहिए, पारिवारिक मूल्य चाहिए। पहले नकारात्मक विचारों के डायनामाइट लगाकर अच्छे मूल्यों को नष्ट किया। अब सब कुछ पुराना चाहिए, लेकिन पुराना उस तरह से कभी नहीं लौटता, जिसके हमने स्वप्न देखे होते हैं। वह ट्रेजेडी या कॉमेडी ही बन सकता है। इससे पहले कि अपने यहां परिवार पश्चिम की राह चलें, उन्हें बचाने की जरूरत है।

साभार – दैनिक जागरण

The post परिवार व्यवस्था को बचाने की चुनौती appeared first on VSK Bharat.

What's Your Reaction?

like

dislike

wow

sad

UP HAED सामचार हम भारतीय न्यूज़ के साथ स्टोरी लिखते हैं ताकि हर नई और सटीक जानकारी समय पर लोगों तक पहुँचे। हमारा उद्देश्य है कि पाठकों को सरल भाषा में ताज़ा, विश्वसनीय और महत्वपूर्ण समाचार मिलें, जिससे वे जागरूक रहें और समाज में हो रहे बदलावों को समझ सकें।