चीन ने भारतीयों को तिब्बत बुलाया, जानें यह हिन्दुओं के लिए क्यों है खास, क्या है पुराना विवाद

Tibet Facts: चीन ने भारतीयों को तिब्बत आने की अनुमति दे दी है. कूटनीतिक जानकार इसे चीन-भारत के रिश्तों में गर्माहट के रूप में भी देख रहे हैं. कुछ लोगों का यह भी मानना है कि अमेरिका से तल्खी के बीच चीन नहीं चाहता कि वह भारत से भी पंगा ले ले बल्कि उसने रिश्तों को आगे बढ़ाने की नीति पर काम शुरू कर दिया है. जानिए, तिब्बत भारतीयों के लिए क्यों है खास.

Apr 29, 2025 - 12:56
 0  17
चीन ने भारतीयों को तिब्बत बुलाया, जानें यह हिन्दुओं के लिए क्यों है खास, क्या है पुराना विवाद
चीन ने भारतीयों को तिब्बत बुलाया, जानें यह हिन्दुओं के लिए क्यों है खास, क्या है पुराना विवाद

चीन ने भारतीय श्रद्धालुओं को तिब्बत आने पर लगी रोक हटा दी है या यूं कहें कि फिर से यात्रा की अनुमति दे दी है. चीन के इस फैसले के बाद इस साल कैलाश मानसरोवर की यात्रा श्रद्धालु कर सकेंगे. चीनी विदेश मंत्रालय ने बीते सोमवार इस आशय की घोषणा की. असल में कोविड महामारी के बाद चीन ने कैलाश मानसरोवर यात्रा पर रोक लगा दी थी. साल 2020 में लगी रोक पांच साल बाद अब हटी है. चूंकि, कैलाश मानसरोवर यात्रा पर भारतीयों की संख्या ही ज्यादा होती है, ऐसे में चीन का यह फैसला महत्वपूर्ण हो जाता है. अब वे अपने भोले शंकर के साक्षात दर्शन हेतु जा सकेंगे.

कूटनीतिक जानकार इसे चीन-भारत के रिश्तों में गर्माहट के रूप में भी देख रहे हैं. कुछ लोगों का यह भी मानना है कि अमेरिका से तल्खी के बीच चीन नहीं चाहता कि वह भारत से भी पंगा ले ले बल्कि उसने रिश्तों को आगे बढ़ाने की नीति पर काम शुरू कर दिया है.

चीन, तिब्बत को अपना एक स्वायत्त क्षेत्र मानता है जबकि तिब्बत के लोग अपनी संप्रभुता के लिए संघर्ष करते आ रहे हैं. उनके लिए दलाई लामा सर्वोच्च नेता हैं, जो भारत में निर्वासित जीवन जी रहे हैं. अगर रिश्तों में आए इस राजनीतिक-भौगोलिक खटास को अलग कर दें तो यह जानना बेहद रोचक हो जाता है कि बौद्ध धर्म के अनुयायियों की इस धरती तिब्बत में हिन्दू धर्म के लोगों के लिए बहुत कुछ ऐसा है, जिसे हर हिन्दू देखना चाहता है. आंखों में भर लेना चाहता है. स्पर्श मात्र से उसका हृदय गदगद हो जाता है.

कैलाश पर्वत और मान सरोवर झील हिंदुओं की आस्था का केंद्र

कैलाश पर्वत को भगवान शिव का निवास स्थल माना जाता है. हर हिन्दू एक बार जरूर वहां जाकर दर्शन करना चाहता है. यह हिंदुओं की आस्था का एक महत्वपूर्ण केंद्र है, जो तिब्बत में है और यहां बिना चीन की अनुमति के नहीं जाया जा सकता. कैलाश पर्वत के समीप ही स्थित मान सरोवर झील के प्रति भी हिंदुओं की बहुत गहरी आस्था है. मान्यता है कि इस झील में स्नान करने मात्र से कई कष्टों से मुक्ति मिल जाती है. पाप तक धुल जाते हैं.

Tibet Temple Pic

ल्हासा और पोताल पैलेस तिब्बती लोगों के लिए बेहद महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र है. फोटो: Pixabay

यहां क्या-क्या है?

ल्हासा और पोताल पैलेस तिब्बती लोगों के लिए बेहद महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र है. यहां पहुंचते ही हर श्रद्धालु के सिर झुक जाते हैं. यही तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा का ऐतिहासिक निवास स्थान भी रहा है. चूंकि वे सर्वोच्च धर्म गुरु हैं इसलिए उनके न होने के बावजूद श्रद्धालुओं की निष्ठा किसी भी सूरत में कम नहीं हुई है, बल्कि बढ़ गई है. ल्हासा में ही मौजूद जोखांग मंदिर एक और बौद्ध आस्था का केंद्र है. सेरा, डेपुंग और गदन मठों में आज भी बौद्ध शिक्षा और प्रार्थना होती आ रही है. कैलाश पर्वत बौद्ध धर्म के लिए भी बहुत पवित्र स्थल है. ये कैलाश को कंग रिंगपोछे कहते हैं. बौद्ध धर्म के अनुयायी कैलाश पर्वत की परिक्रमा को मोक्षदायी मानते हैं.

साझा महत्व की धरती है तिब्बत

हिमालयी क्षेत्र में होने की वजह से तिब्बत एक पवित्र भूमि मानी जाती है. यहां हिन्दू और बौद्ध धर्म, दोनों परंपराओं का अद्भुत संगम देखने को मिलता है. यह बात कैलाश मान सरोवर इलाके में खूब देखने को मिलती है. ध्यान और साधना के लिए इस स्थल को बहुत अनुकूल माना जाता है. दोनों धर्मों के अनुयायी ऐसा मत रखते हैं.

 Kailash Mansarovar Yatra

कैलाश मानसरोवर यात्रा

संघर्षपूर्ण है तिब्बत का इतिहास

संसार की छत के रूप में अपनी पहचान रखने वाले तिब्बत पर कभी मंगोलिया और कभी चीन के राजवंशों ने राज किया. फिर इसने हल्की सी सांस ली ही थी कि साल 1950 में चीन ने तिब्बत पर अपना दावा ठोंक दिया. वहां झण्डा लहराने के लिए बड़ी संख्या में सैनिक भेज दिए. कुछ इलाकों को स्वायत्त घोषित कर दिया तो कुछ को चीन के प्रांतों में विलय की घोषणा कर दी.

साल 1959 में चीन के खिलाफ हुए एक नाकाम विद्रोह के बाद 14 वें दलाई लामा को भागकर भारत में शरण लेनी पड़ी. तब से वे यहीं निवास कर रहे हैं. भारत में रहकर वे पूरी दुनिया में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं. दलाई लामा के तिब्बत से बाहर होने के बाद चीन ने कई बौद्ध मठों-मंदिरों को नष्ट भी किया. इस दौरान अनेक जानें भी गईं.

फिलहाल चीन सरकार का शासन

दलाई लामा के जाने के बाद यहां चीन की सरकार है. बिना उनके चाहे पत्ता भी नहीं हिलता. हालांकि, स्वायत्त क्षेत्र के रूप में वहां की स्थानीय सरकार है लेकिन उसका वजूद न के बराबर है. सारे फैसले बीजिंग से ही लिए जाते हैं. यद्यपि, हाल के दिनों में बौद्ध मठों और मंदिरों के खिलाफ किसी तरह के अत्याचार की खबर नहीं है. जो मथ नष्ट भी किए गए थे, वे अपने मूल स्वरूप में फिर से वापस आ गए हैं. पूरी तरह अपने कब्जे में लेने के बाद ही चीन ने साल 1971 में विदेशियों के लिए तिब्बत के दरवाजे खोले. उसके पहले कई साल तक यहाँ किसी भी विदेशों के आने पर प्रतिबंध था.

यह भी पढ़ें: अकेला भारत नहीं, जानें पाकिस्तान के कितने दुश्मन, क्या है वजह

What's Your Reaction?

like

dislike

wow

sad

UP HAED सामचार हम भारतीय न्यूज़ के साथ स्टोरी लिखते हैं ताकि हर नई और सटीक जानकारी समय पर लोगों तक पहुँचे। हमारा उद्देश्य है कि पाठकों को सरल भाषा में ताज़ा, विश्वसनीय और महत्वपूर्ण समाचार मिलें, जिससे वे जागरूक रहें और समाज में हो रहे बदलावों को समझ सकें।