अश्लील विज्ञापन क्यों ?
विज्ञापन का प्रचार प्रसार केवल अपने प्रोडक्ट को बेचने के लिए किया जाता है,
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आज के समय में विज्ञापन बाजार की दुनिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा विज्ञापन का प्रचार प्रसार केवल अपने प्रोडक्ट को बेचने के लिए किया जाता है, लेकिन आज प्रोडक्ट्स के विज्ञापन कम और अश्लीलता के विज्ञापन ज्यादा आते हैं। ये हो क्या रहा है, समझ नहीं आता कि विज्ञापन आ रहे हैं या अश्लीलता महिलाएं (नारी) क्यों देख औेर समझ नहीं पा रही कि बाजार ने उसे एक वस्तु बना दिया है। वो क्यों विरोध नही करती इसका अगर देखा जाए तो आज अगरबत्ती के ऐड में महिला, शेविंग क्रीम के ऐड में महिला शेम्पू के ऐड में महिला डिओ परफ्यूम के ऐड में महिला की अमुक ऐसा दिखाया जा रहा है कि ये डिओ लगाओगे तो महिला खिंची चली आंती है। यहां तक कि पुरुषों के इनर वियर में महिला।
अब 18-20 साल के युवा-युवती पर इसका क्या असर पड़ रहा है, और इसका समाज पर क्या असर होगा। एक परफ्यूम का विज्ञापन है, जिसमें लड़की अपने पुरूष मित्र का परिचय माता पिता से कराती है। जब लड़का लड़की की माँ को आण्टी कहकर संबोधित करता है, तो प्रौढ़ महिला उसे उसका नाम लेकर पुकारने को कहती है। उधर उसके पति के हाथ में पकड़े हुये पॉपकार्न के पैकेट भिंच जाते हैं, यह विज्ञापन क्या संदेश दे रहा है, क्या यह परफ्यूम इतना प्रभावकारी है कि एक अधेड़ महिला उससे प्रभावित होकर पति और बेटी के सामने इतनी निर्लज्ज हो जाती है। जबकि कुछ लड़कियां कहती है कि हम क्या पहनेंगे ये हम तय करेंगे पुरुष नहीं, लेकिन आज के समय मे woman empowerment के नाम जो समाज के सामने जो अश्लीलता परोसी जा रही है
क्या इस पर रोक नहीं लगाई जा सकती, देखा जाए तो विज्ञापनों में अश्लीलता इतनी फैल चुकी है कि आज टेलीविजन पर कॉन्डोम के विज्ञापन भी सरेआम दिखाए जाते हैं। इसके कारण आज देश के युवाओं और समाज पर क्या असर पड़ रहा है, उसका जिम्मेवार कौन है, वह जो जिसे दिखाया जा रहा है या वह जो यह दिखा कर फायदा अपना फायदा उठा रहा। किसी भी प्रोडक्ट को बेचने के लिए किसी औरत या लड़की को अश्लील तरीके से दिखाना कहाँ तक वुमन इंपावरमेंट के अंदर आता है। सत्यता ये है की अश्लीलता को किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं ठहराया जा सकता। ये कम उम्र के बच्चों को यौन अपराधों की तरफ ले जाने वाली एक नशे की दूकान है। जिस पर पूरी तरह से रोक लगाई जाए।
शुभम चौहान
बहादुरगढ़ हापुड़
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