ग्लेशियर हैं तो जल है, जल है तो जीवन है विश्व जल दिवस

ग्लेशियर हैं तो जल है, और जल है तो जीवन। ग्लोबल वार्मिंग से ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे एशिया के 130 करोड़ लोगों पर जल संकट का खतरा मंडरा रहा है। जानिए जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान और जरूरी सुधारात्मक उपाय। ग्लेशियर हैं तो जल है, जल है तो जीवन है विश्व जल दिवस दुनिया का तीसरा ध्रुव कहा जाने वाला हिमालय और उसके ग्लेशियर गंभीर संकट का कर रहे सामना, गंगा सहित बड़ी नदियों के इस उद्गम स्रोत पर प्रतिकूल असर 130 करोड़ लोगों की बाधित करेगा जलापूर्ति

Mar 22, 2025 - 21:11
Mar 22, 2025 - 21:13
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ग्लेशियर हैं तो जल है, जल है तो जीवन है विश्व जल दिवस

ग्लेशियर हैं तो जल है, जल है तो जीवन है  

ग्लोबल वार्मिंग से ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे एशिया के 130 करोड़ लोगों पर जल संकट का खतरा मंडरा रहा है। जानिए जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान और जरूरी सुधारात्मक उपाय।

क्या हैं सुधारात्मक उपाय
जल संरक्षण सबसे महत्वपूर्ण है वनों की कटाई पर अंकुश जरूरी
कार्बन समेत ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी करना
पर्वतीय पर्यटन को सीमित करना
ग्लेशियरों पर गंदगी ना फैलाना
पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूकता
ग्लेशियर संबंधी शोध को बढावा देना 

जलवायु परिवर्तन से 2070 तक भारत की जीडीपी को 24.7% नुकसान की आशंका
• एशियाई विकास बैंक का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन से भारत की जीडीपी को 24.7 प्रतिशत का नुकसान हो 2070 तक भारत सकता है। हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाले करीब 5.10 करोड़ लोगों पर सबसे पहले खतरा है। यहां ग्लेशियल झील टूटने से बाढ़ आने की घटनाएं हो चुकी हैं, जो भविष्य में बढ़ेंगी। इससे पानी की कमी भी होगी और मैदानी इलाकों तक असर पड़ेगा क्योंकि एशिया के करीब 130 करोड़ लोग पेयजल के लिए इन पर आश्रित हैं। 

पानी का मोल प्यास लगने पर ही पता चलता है। वर्तमान में इस अनमोल प्राकृतिक संसाधन की प्रचुर मात्रा के चलते प्यास के इस मोल का पता नहीं चल रहा है, लेकिन सोचिए कुछ साल.. दशक बाद जब यह पानी नहीं रहेगा तो आपका गला तर कैसे होगा। उस आशंकित समय में भी आपकी प्यास बुझ सके, इसलिए पूरी दुनिया में पानी की बूंद-बूंद बचाने और इसके किफायती इस्तेमाल को बढ़ावा देने की गुहार कई मंचों से लगाई जा रही है। इसी क्रम में दुनियाभर में 22 मार्च को विश्व जल दिवस का भी आयोजन किया जाता है। इस बार इस आयोजन की थीम है 'ग्लेशियर संरक्षण'।


दुनियाभर में पेयजल का 70 प्रतिशत हिस्सा इन्हीं ग्लेशियरों में संरक्षित है। वैज्ञानिक तथ्य साबित कर चुके हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते ये ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। ऐसे में पेयजल के इन सबसे बड़े स्रोत के  अस्तित्व पर संकट आसन्न है। इसीलिए इन्हें बचाने की अनिवार्यता आ चुकी है। क्योंकि ग्लेशियर हैं तो जल है। जल है तो जीवन है और जीवन है तो हम हैं।


भारत, नेपाल, भूटान, चीन और पाकिस्तान तक फैला हिमालय पृथ्वी की सबसे युवा और ऊंची पर्वत श्रृंखला है। इसके ग्लेशियर लगभग 33,000 वर्ग किलोमीटर में फैले हैं, जो ध्रुवीय क्षेत्रों के बाहर दुनिया के सभी पर्वतीय क्षेत्रों में जमे हुए ताजे पानी के सबसे बड़े भंडार हैं। इसके चलते इसे एशिया की जल मीनार और विश्व का तीसरा ध्रुव भी कहते हैं। ये अधिकांश भारतीयों समेत दक्षिण एशिया में 160 करोड़ लोगों को जलापूर्ति करते हैं। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार यहां 9,575 ग्लेशियर हैं, जिनमें 267 का क्षेत्रफल 10 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा है। एशिया की 10 प्रमुख नदियों को पानी देने वाले इन ग्लेशियरों से सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी तीन प्रमुख नदी घाटियां विभाजित हुई हैं।


पिछले कुछ दशकों में जलवायु परिवर्तन  के चलते यह ग्लेशियर 20-30 प्रतिशत तक सिकुड़े हैं। अध्ययन बताते हैं कि वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी वर्ष 2100 तक यहां के एक तिहाई ग्लेशियर गायब कर सकती है। और 2.0 डिग्री तापमान बढ़ने पर दो तिहाई ग्लेशियर गायब हो सकते हैं। इसरो की रिपोर्ट के अनुसार, हिमालय की 2,432 ग्लेशियल झीलों में से 676 का आकार तेजी से बढ़ रहा है। इनमें से भारत में मौजूद 130 झीलों के टूटने का खतरा बढ़ता जा रहा है। 

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