22 मार्च 2020 जनता कर्फ्यू': COVID-19 कोरोना के खिलाफ पहली जंग का ऐतिहासिक दिन

22 मार्च 2020 को भारत ने 'जनता कर्फ्यू' के जरिए कोरोना वायरस के खिलाफ पहली बड़ी जंग लड़ी। जानिए इस ऐतिहासिक दिन से जुड़ी पूरी कहानी, ताली-थाली बजाने की परंपरा और इसके महत्व के बारे में। COVID-19, जनता कर्फ्यू': कोरोना के खिलाफ पहली जंग का ऐतिहासिक दिन, Janta Curfew historic day of the first battle against Corona

Mar 22, 2025 - 20:58
Mar 22, 2025 - 21:01
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22 मार्च 2020 जनता कर्फ्यू': COVID-19 कोरोना के खिलाफ पहली जंग का ऐतिहासिक दिन

22 मार्च 2020 जनता कर्फ्यू': कोरोना के खिलाफ पहली जंग का ऐतिहासिक दिन

पृष्ठभूमि

साल 2020 की शुरुआत में ही पूरी दुनिया कोरोना वायरस (COVID-19) के संक्रमण की चपेट में आ चुकी थी। जनवरी-फरवरी में जहां दुनिया के कई देशों में लॉकडाउन और आपातकाल जैसे हालात बन गए थे, वहीं भारत में मार्च के शुरुआती दिनों में कोरोना के मामले धीरे-धीरे सामने आने लगे थे। इसी बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 मार्च 2020 को देशवासियों को संबोधित करते हुए 22 मार्च 2020, रविवार को 'जनता कर्फ्यू' का आह्वान किया।

जनता कर्फ्यू की घोषणा

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में कहा था—

"22 मार्च को सुबह 7 बजे से रात 9 बजे तक, हम सभी देशवासी अपने-अपने घरों में रहें। यह जनता द्वारा खुद पर लगाया गया कर्फ्यू होगा, यानी 'जनता कर्फ्यू'। यह एक सामूहिक प्रयास होगा कोरोना के संक्रमण को फैलने से रोकने का।"

इसके साथ ही पीएम मोदी ने शाम 5 बजे, उन डॉक्टरों, नर्सों, पुलिसकर्मियों, सफाईकर्मियों और अन्य कोरोना योद्धाओं के सम्मान में ताली-थाली बजाने और शंखनाद करने की अपील की थी।


22 मार्च 2020 की ऐतिहासिक तस्वीरें

22 मार्च की सुबह जैसे ही हुई, पूरा देश अपने-अपने घरों में कैद था। बड़े शहरों से लेकर छोटे गाँवों तक की सड़कें, बाजार, रेलवे स्टेशन, बस अड्डे—सब सूने पड़े थे।

  • कोई आवाजाही नहीं
  • दुकानें बंद
  • गाड़ियां थमीं
  • ट्रेन और बस सेवाएं रोक दी गईं

यह पहली बार था जब देशभर में लोगों ने खुद अनुशासन का पालन करते हुए घरों में रहना चुना।

शाम 5 बजे का नज़ारा

जैसे ही घड़ी में 5 बजे, पूरा देश अपने घरों की बालकनी, छतों और दरवाजों पर आ गया।

  • कहीं ताली बज रही थी,
  • कहीं थाली बज रही थी,
  • शंख और घंटियों की आवाजें गूंज रही थीं।

हर किसी के चेहरे पर एक विश्वास था—हम मिलकर इस महामारी को हराएंगे। यह दृश्य केवल भारत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी इसकी सराहना हुई।


जनता कर्फ्यू का महत्व

'जनता कर्फ्यू' महज़ एक दिन का प्रतीकात्मक लॉकडाउन नहीं था, बल्कि:

  • सोशल डिस्टेंसिंग के महत्व को समझाने की कोशिश थी।
  • कोरोना के खिलाफ लंबी लड़ाई के लिए जनता की मानसिक तैयारी थी।
  • इसके बाद देशभर में कड़े लॉकडाउन का रास्ता भी यहीं से बना।

परिणाम

  • इस एक दिन के अनुशासन ने यह दिखा दिया कि भारत जैसे विशाल और विविधताओं वाले देश में भी एकजुटता और अनुशासन से संकट का सामना किया जा सकता है।
  • 25 मार्च 2020 से भारत सरकार ने संपूर्ण राष्ट्रीय लॉकडाउन लागू किया, जिसकी तैयारी 'जनता कर्फ्यू' के ज़रिए ही की गई थी।

5 साल बाद...

आज, 22 मार्च 2025 को, जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं तो 'जनता कर्फ्यू' न केवल कोरोना के खिलाफ लड़ाई की शुरुआत का प्रतीक बन गया है, बल्कि यह भारत के सामाजिक-सामूहिक प्रयासों की मिसाल भी है।

यह दिन हमें याद दिलाता है कि जब देश संकट में हो, तो हम सभी मिलकर एक स्वर में, एकजुट होकर हर कठिनाई का सामना कर सकते हैं।


आपके विचार में, जनता कर्फ्यू के इस दिन ने आपके जीवन में क्या बदला था? क्या आपके पास भी उस दिन की कोई यादगार तस्वीर या अनुभव है?

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