समाज की सोच का नया उदय और घटिया मानसिकता : अमित चौहान
आप कर लीजिए लाख कोशिशें…
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आप कर लीजिए लाख कोशिशें…
- प्राण प्रतिष्ठा पर सवाल उठा लीजिए
- मंदिर पूरा है कि अधूरा है पर बहस कर लीजिए
- घड़ी शुभ है,नहीं है पर घंटो चर्चा कर लीजिए
- निमंत्रण नहीं मिला, ठुकरा दिया कर लीजिए
- कहते रहिए कि धार्मिक है कि राजनैतिक है..
कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा
ये देश राममयी हो चला है, हर घर में बुज़ुर्ग से लेकर बच्चे तक में राम मंदिर का सुख साफ़ झलक रहा है..हर गली में रामधुन बज रही है.. और जान भी लीजिए अच्छे से मान लीजिए इस सुख में शरीक हो गए तो देश सर-आँखों पर बिठाएगा.. नहीं तो -
होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा॥
इस देश में धार्मिक और सामाजिक मुद्दों पर चर्चा हमेशा सुथरी रहती है, और यहां लोग अपनी राय व्यक्त करने में सक्रिय होते हैं। प्राण प्रतिष्ठा के सवाल पर, यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जिस पर विभिन्न सोच और परंपराएं हैं। कुछ लोग प्राण प्रतिष्ठा को आत्मा की शक्ति का प्रतीक मानते हैं, जबकि दूसरों को इसमें भ्रांतियाँ दिखाई देती हैं। इस पर चर्चा से समाज में जागरूकता बढ़ सकती है और सामंजस्य दृष्टिकोण प्राप्त हो सकता है।
मंदिर का पूरा होना या अधूरा होना भी एक विवादास्पद विषय है। कुछ लोग मानते हैं कि धार्मिक स्थलों का पूरा होना सामाजिक और आध्यात्मिक संगठन को मजबूती प्रदान करता है, जबकि दूसरों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। इस विषय पर हुई बहस ने समाज में समरसता बनाए रखने की आवश्यकता को उजागर किया है।
घड़ी की शुभता के संदर्भ में चर्चा करते हुए, लोगों की भिन्न-भिन्न मान्यता सामाजिक समरसता की दिशा में प्रेरित कर सकती हैं। यह भी देखा जा सकता है कि कैसे लोग अपनी धार्मिक और सामाजिक विचारधारा को साथ लेकर एक-दूसरे के साथ मिल जुलकर रह सकते हैं।
निमंत्रण का ठुकराना भी एक संवेदनशील मुद्दा है, जिसमें लोग अपनी भावनाओं को और समाज में समानता बनाए रख सकते हैं। इससे यह सिद्ध हो सकता है कि समाज में विशेषता के खिलाफ एक सामंजस्यिक दृष्टिकोण की जरुरत है।
अंत में, धार्मिकता और राजनीति के बीच का फर्क स्पष्ट करने में जो लोग विश्वास करते हैं, वह भी एक महत्वपूर्ण विचार है। इसे समझकर ही समाज में सद्गुण बनेगा और लोग एक दूसरे के साथ राजनीतिक मतभेदों को समझने में सक्षम होंगे।
इस प्रकार, देश की राममयी सांस्कृतिक विविधता में समर्थन और समाजशास्त्रिक दृष्टिकोण से उचित चर्चा और बहस से ही नए और समृद्धि शील समाज की दिशा में कदम बढ़ाया जा सकता है।
लेखक - अमित चौहान
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