NDTV Exclusive: बायो फार्मिंग, मसल लॉस… भारत के अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला स्पेस में करेंगे ये एक्सपेरिमेंट

MoS डॉ. जितेंद्र सिंह ने NDTV से कहा, "अंतरिक्ष कठिन जगह है. और ऐसा नहीं कि आप एक अंतरिक्ष यात्री बन गए तो उससे मानव शरीर का बुनियादी विज्ञान बदल जाता है.”

Mar 22, 2025 - 12:42
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NDTV Exclusive: बायो फार्मिंग, मसल लॉस… भारत के अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला स्पेस में करेंगे ये एक्सपेरिमेंट

भारतीय वायु सेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला रिकॉर्ड बनाने जा रहे हैं. वो इस साल इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की यात्रा करने वाले पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री के रूप में इतिहास रचने के लिए तैयार हैं. एक्सक्लूसिव खबर यह है कि इस मिशन पर वो कम से कम तीन एक्सपेरिमेंट करेंगे, जिसमें अंतरिक्ष में मांसपेशियों के नुकसान (मसल लॉस) पर रिसर्च भी शामिल है.

विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (MoS) डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि शुभांशु शुक्ला अपने 15 दिन लंबे अंतरिक्ष मिशन के दौरान "अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष जैव-विनिर्माण और जैव-अंतरिक्ष विज्ञान" पर ध्यान केंद्रित करेंगे. यानी स्पेस टेक्नोलॉजी, स्पेस बायो-मैन्युफैक्चरिंग और बायो-एस्ट्रोनॉटिक्स पर. मिशन पर IAF अधिकारी शुभांशु शुक्ला खाने योग्य शैवाल (एडिबल एल्गी) की तलाश के लिए फुटबॉल के आकार के अंतरिक्ष स्टेशन में खास सूक्ष्म जीव यानी माइक्रोऑर्गेनिज्म को विकसित करेंगे.

वो खास बैक्टीरिया विकसित करें; और मांसपेशियों की कोशिकाओं पर प्रभाव का अध्ययन करें. वो समझने की कोशिश करेंगे कि अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में मांसपेशियों की हानि यानी मसल लॉस का सामना क्यों करना पड़ता है. मेडिकल एक्सपर्ट्स ने भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स के स्वास्थ्य और उनके मसल लॉस पर चिंता जताई है. सुनीता हाल ही में स्पेस स्टेशन पर नौ महीने के कठिन प्रवास के बाद पृथ्वी पर लौटीं.

डॉ. सिंह ने कहा, "अंतरिक्ष कठिन जगह है. और ऐसा नहीं कि आप एक अंतरिक्ष यात्री बन गए तो उससे मानव शरीर का बुनियादी विज्ञान बदल जाता है.”

उन्होंने कहा कि पोषक तत्वों की निरंतर उपलब्धता, भोजन को प्रिजर्व करना, माइक्रोग्रैविटी, रेडिएशन, अंतरिक्ष यात्रियों में शारीरिक परिवर्तन और स्वास्थ्य संबंधी खतरे, पीने योग्य पानी और कचरे को स्थायी तरीके से साफ करने और उपयोग करने का तरीका अंतरिक्ष में कुछ प्रमुख चुनौतियां हैं. उन्होंने आगे कहा, "यह अनुमान लगाया गया है कि 2050 तक कमर्शियल अंतरिक्ष यात्रा एक वास्तविकता बनने जा रही है और हमें भविष्य के लिए तैयार रहने की जरूरत है. इसके लिए, जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) मिलकर मिशन प्रोजेक्ट शुरू करेंगे. इसमें सरल अंतरिक्ष जैव-विनिर्माण (स्पेस बायो-मैन्युफैक्चरिंग) के एक्सपेरिमेंट्स पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा.”

NASA के अनुसार, शुभांशु शुक्ला SpaceX ड्रैगन अंतरिक्ष यान पर सवार होकर लॉन्च होने वाले एक प्राइवेट अंतरिक्ष यात्री मिशन, Axiom Mission 4 (Ax-4) के पायलट होंगे. उम्मीद है कि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी संभवतः मई की शुरुआत में फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर से इस मिशन को लॉन्च करेगी. NASA और ISRO के बीच सहयोग के हिस्से के रूप में इस मिशन का क्रू माइक्रोग्रैविटी में एक्सपेरिमेंट करेगा, आउटरीच प्रोग्राम और व्यावसायिक गतिविधियां करेगा.

तीसरा एक्सपेरिमेंट अंतरिक्ष यात्रियों के शरीर पर अंतरिक्ष स्थितियों के प्रतिकूल प्रभावों पर केंद्रित होगा. (डीबीटी)

तीसरा एक्सपेरिमेंट अंतरिक्ष यात्रियों के शरीर पर अंतरिक्ष स्थितियों के प्रतिकूल प्रभावों पर केंद्रित होगा. (डीबीटी)

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि स्पेस की माइक्रो-गैविटी अद्वितीय चुनौतियां पेश करेगी. लेकिन भारत के एक्सपेरिमेंट आने वाले गगनयान और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन कार्यक्रमों में सहायता करेंगे.

बाकि के डिटेल्स देते हुए, MoS ने कहा कि पहले एक्सपेरिमेंट में कुछ खाने लायक सूक्ष्म शैवाल (माइक्रोएलगी) का उपयोग करके उन्हें अंतरिक्ष में विकसित किया जाएगा और देखा जाएगा कि क्या वे अंतरिक्ष की स्थितियों में भी जिंदा रह पाते हैं. खोजा जाएगा कि क्या वो भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों के लिए प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, लिपिड और विटामिन ए, बी 1, बी 2, बी 6, बी 12, सी और ई जैसे भोजन के स्थायी सोर्स के रूप में काम कर सकते हैं. इन शैवालों को बंद कंटेनरों में उगाया जाएगा और उन्हें पानी और कार्बन डाइऑक्साइड दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि इस एक्सपेरिमेंट का नेतृत्व इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी (ICGEB), नई दिल्ली द्वारा किया जाएगा.

ICGEB के नेतृत्व में ही दूसरा एक्सपेरिमेंट भी होगा. इसमें अंतरिक्ष में कचरे से काम की चीज बनाने का लक्ष्य रखा जाएगा. डॉ. सिंह का कहना है कि अंतरिक्ष यात्रियों के मूत्र में मौजूद यूरिया का उपयोग स्पिरुलिना नामक कुछ नीले-हरे शैवाल और क्रोकोकिडिओप्सिस नामक एक रेगिस्तानी प्रजाति को उगाने के लिए किया जाएगा. अंतरिक्ष में संसाधन को रिसाइकिल करना महत्वपूर्ण है क्योंकि सामग्री को ढोना बेहद महंगा है.

डॉ. सिंह ने बताया कि तीसरे एक्सपेरिमेंट का नेतृत्व इंस्टीट्यूट फॉर स्टेम सेल साइंस एंड रीजेनरेटिव मेडिसिन (INSTEM), बेंगलुरु द्वारा किया जाएगा. यह अंतरिक्ष यात्रियों के शरीर विज्ञान पर अंतरिक्ष की स्थितियों के प्रतिकूल प्रभावों और उन्हें कैसे कम किया जाए, इस पर ध्यान केंद्रित करेगा.

रिपोर्टों से पता चलता है कि पांच से 11 दिनों तक चलने वाली अंतरिक्ष उड़ानों में ही अंतरिक्ष यात्रियों की 20% तक मांसपेशियों की कम हो जाती है. दूसरी ओर, पृथ्वी पर मांसपेशियों की हानि या सरकोपेनिया को विकसित होने में दशकों लग जाते हैं. मांसपेशी कोशिका संवर्धन मॉडल (muscle cell culture model) में सप्लीमेंट्स का उपयोग करके, रिसर्चर्स माइटोकॉन्ड्रिया के फंक्शन को बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं, जो इस स्थिति में एक महत्वपूर्ण घटक है. पृथ्वी पर, इस एक्सपेरिमेंट से मांसपेशियों की हानि का सामना कर रहे रोगियों को मदद मिलने की उम्मीद है.

भारत की जैव-अर्थव्यवस्था (बायो-इकनॉमी) में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. 2014 में 10 अरब डॉलर से बढ़कर यह 2023 में 151 अरब डॉलर से अधिक हो गई है. इसके 2030 तक 300 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है.

एक बयान में, DBT ने कहा कि ISRO के साथ सहयोग भारत में स्पेस बायोटेक्नोलॉजी को आगे बढ़ाएगा और हमारे देश की स्पेस इकनॉमी में महत्वपूर्ण योगदान देगा. अगले 10 वर्षों में स्पेस इकनॉमी के पांच गुना बढ़कर लगभग 44 बिलियन डॉलर होने की उम्मीद है.

इसके खास क्षेत्रों में से एक अंतरिक्ष जैव-विनिर्माण (स्पेस बायो-मैन्युफैक्चरिंग) है, जिसमें आर्टिफिशियल अंगों के विकास जैसी अपार व्यावसायिक क्षमता है. इसके लिए टीश्यू की परतों को एक साथ रखने के लिए धरती पर हमें अलग से स्ट्रक्चर (scaffolding) की आवश्यकता होती है. लेकिन जब अंतरिक्ष में एक्सपेरिमेंट किए जाते हैं, तो टीश्यू की परतें टूटती नहीं हैं और किसी स्ट्रक्चर की आवश्यकता नहीं होती है. DBT और ISRO आर्टिफिशियल अंगों के विकास के भविष्य के लक्ष्य के साथ, अंतरिक्ष में ऑर्गेनोइड विकास पर भी ध्यान देंगे.

यह ध्यान दिया जा सकता है कि अंतरिक्ष में लोबिया के बीज, बैक्टीरिया और पालक की कोशिकाओं (सेल्स) के एग्रेगेट्स को विकसित करने के तीन बहुत ही सरल एक्सपेरिमेंट इस साल की शुरुआत में POEM नामक इसरो मॉड्यूल पर किए गए थे. अंतरिक्ष की माइक्रोग्रेविटी में भारतीयों द्वारा किए गए ये पहले जीव विज्ञान संबंधी एक्सपेरिमेंट थे.

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@Dheeraj kashyap युवा पत्रकार- विचार और कार्य से आने वाले समय में अपनी मेहनत के प्रति लगन से समाज को बेहतर बना सकते हैं। जरूरत है कि वे अपनी ऊर्जा, साहस और ईमानदारी से र्काय के प्रति सही दिशा में उपयोग करें , Bachelor of Journalism And Mass Communication - Tilak School of Journalism and Mass Communication CCSU meerut / Master of Journalism and Mass Communication - Uttar Pradesh Rajarshi Tandon Open University पत्रकारिता- प्रेरणा मीडिया संस्थान नोएडा 2018 से केशव संवाद पत्रिका, प्रेरणा मीडिया, प्रेरणा विचार पत्रिका,