कैफ़ी आज़मी के शेर और बुल्लेशाह के शब्दों का समागम:

Nov 29, 2024 - 20:41
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कैफ़ी आज़मी के शेर और बुल्लेशाह के शब्दों का समागम:

यह कविता एक नये ढंग से व्यक्त की गई है, जिसमें प्रसिद्ध कवि कैफ़ी आज़मी के शेरों के साथ-साथ कुछ पंजाबी कवि बुल्लेशाह की भक्ति और उपदेशों का मिश्रण किया गया है। मैं इसे नए रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ:

यह कविता दो मुख्य भागों का संयोजन है: पहला, कैफ़ी आज़मी के शेर, और दूसरा, बुल्लेशाह की भक्ति और दर्शन से प्रेरित विचार। यह एक गहरी सामाजिक और धार्मिक संदेश देने वाली रचनाएँ हैं।

कैफ़ी आज़मी ने अपनी पंक्तियों में समय और ज़ख़्मों की बात की है, जो हमें यह सिखाती हैं कि पुराने दर्दों को फिर से नहीं कुरेड़ा जाना चाहिए। दूसरी ओर, बुल्लेशाह के शब्द हमें यह बताते हैं कि भगवान को किसी विशेष स्थान या क्रिया से नहीं, बल्कि सच्चे और पवित्र दिल से पाया जाता है। उन्होंने यह संदेश दिया कि यदि भगवान केवल बाहरी साधन से मिलते, तो वे सभी जीवों में होते।

इसके बाद, चार कौवों की कहानी के माध्यम से यह बताया गया है कि समाज में कुछ ताकतवर वर्ग अपने नियम और सिद्धांत दूसरों पर थोपते हैं, जिनका पालन करने के लिए बाकी सभी मजबूर होते हैं। इस पूरी कविता में सत्ता, शोषण और ईश्वर की वास्तविक उपासना पर गहरी सोच व्यक्त की गई है।

समाप्ति में, यह संदेश मिलता है कि समाज में किसी भी प्रकार की नकेल या अन्याय को स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए, और भगवान को सच्चे दिल से माना जाए, क्योंकि बाहरी दिखावा केवल भ्रम है।


कैफ़ी आज़मी के शेर और बुल्लेशाह के शब्दों का समागम:

ज़िंदगी के जख़्मों को छेड़ने की बात करते हुए, कवि कहता है –

"जिन ज़ख़्मों को वक़्त भर चला है,
तुम क्यूं उन्हें छेड़े जा रहे हो?"

यह पंक्ति हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि समय के साथ जो घाव भर चुके होते हैं, उन्हें फिर से कुरेदा क्यों जाता है? कभी-कभी समय ही उपचार होता है।


बुल्लेशाह की भक्ति और दर्शन:

"जे रब मिल्दा नहाने-धोने से,
तो रब मछली और मेंढक से भी मिलते।
जे रब मिल्दा जंगल में घूमने से,
तो रब गाय-भैंसों से भी मिलते।"

बुल्लेशाह ने ईश्वर की तलाश के लिए किसी खास स्थान या क्रिया की आवश्यकता को नकारा है। उनका कहना है कि अगर भगवान सिर्फ नहाने या जंगलों में घूमने से मिलते, तो वे मछलियों या गायों के रूप में भी मिल सकते थे। असल में, भगवान सच्चे और पवित्र दिल से मिलते हैं, न कि बाहरी क्रियाओं से।


चार कौवों की कहानी -

"बहुत नहीं, सिर्फ़ चार कौए थे काले,
उन्होंने यह तय किया कि सारे उड़ने वाले,
उनके ढंग से उड़े, रुकें, खायें और गायें।"

यह कहानी समाज में एक समूह द्वारा अपने स्वार्थ के अनुसार दूसरों को नियंत्रित करने की प्रवृत्ति पर है। चार काले कौवों ने यह फैसला किया कि सभी पक्षी उन्हीं के जैसे उड़ें और उनके ढंग से काम करें। यह शक्तिशाली समूह समाज में अपनी सत्ता स्थापित करता है।


सभी के लिए एक समान नियम –

"हंस मोर चातक गौरैये किस गिनती में,
हाथ बांध कर खड़े हो गये सब विनती में।"

यहाँ कवि ने दिखाया है कि जब समाज में ताकतवर लोग अपने नियम बनाते हैं, तो सभी को उनका पालन करना पड़ता है। इस व्यवस्था में पक्षी भी अपने स्वभाव और जरूरतों को भूल कर दूसरों के आदेशों के तहत काम करने लगते हैं।


समाप्ति –

"बीस तरह के काम दे दिए गौरैयों को,
खाना-पीना मौज उड़ाना छुट्भैयों को।"

कविता में एक बार फिर से समाज की आलोचना की गई है, जहां ताकतवर वर्ग अपने फायदे के लिए दूसरों का शोषण करता है। और अंत में, एक तरह से यह समाज के लिए चेतावनी बन जाती है कि अगर हम लगातार दूसरों की अनदेखी करते रहेंगे, तो खुद की स्वतंत्रता और आदर्शों को खो देंगे।


यह कविता एक विशेष संदेश देती है – कि भगवान और सत्य केवल दिल से पाया जा सकता है, न कि बाहरी दिखावे से। समाज में जो शक्तिशाली वर्ग अपनी इच्छाओं के अनुसार व्यवस्था को बदलते हैं, उनका परिणाम अंततः समाज के लिए घातक होता है।

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@Dheeraj kashyap युवा पत्रकार- विचार और कार्य से आने वाले समय में अपनी मेहनत के प्रति लगन से समाज को बेहतर बना सकते हैं। जरूरत है कि वे अपनी ऊर्जा, साहस और ईमानदारी से र्काय के प्रति सही दिशा में उपयोग करें , Bachelor of Journalism And Mass Communication - Tilak School of Journalism and Mass Communication CCSU meerut / Master of Journalism and Mass Communication - Uttar Pradesh Rajarshi Tandon Open University पत्रकारिता- प्रेरणा मीडिया संस्थान नोएडा 2018 से केशव संवाद पत्रिका, प्रेरणा मीडिया, प्रेरणा विचार पत्रिका,