द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था और इंजीनियर एक समस्या

May 19, 2024 - 09:10
May 19, 2024 - 17:58
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द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था और इंजीनियर एक समस्या

  द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था और इंजिनियर एक समस्या

 

द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था और इंजिनियर एक समस्या से जूझ रहे थे। हवाई जहाजों पर कवच (आर्मर) लगाना था ताकि नाजियों की मशीनगनों से चलती गोलियों पायलट और हवाई जहाज को अधिक नुकसान न पहुंचा पायें। इसमें दिक्कत ये थी कि लोहे के कवच (आर्मर) से हवाई जहाज का वजन बढ़ जाता और फिर लम्बी उड़ानों के लिए उन्हें अधिक तेल की जरुरत पड़ती। इस वजह से तय किया गया कि हवाई जहाज पर हर जगह कवच न लगाया जाए। जहाँ सबसे अधिक नुकसान होता है, केवल उन्हीं जगहों पर कवच लगाया जाए।

इसके लिए मोर्चे से लौटे हवाई जहाजों का अध्ययन किया गया और जिन जगहों पर सबसे अधिक गोलियों के निशान थे, उन्हें मार्क कर लिया गया। पता चला कि पंखों पर, पूंछ पर और जहाज की बॉडी पर बीच में सबसे अधिक निशान है, इसलिए वहीँ कवच लगाए जाएँ। इस समय कोलंबिया यूनिवर्सिटी के गणितज्ञ अब्राहम वाल्ड भी शोधकर्ताओं की टीम में थे। उनका कहना बिलकुल उल्टा था। वो कह रहे थे कि जिन जगहों पर गोलियां लगने से अधिक नुकसान नहीं हुआ, वही तो वापस लौटे होंगे! जिन जगहों पर गोली लगने से नुकसान अधिक हुआ, वो जहाज और जहाजी तो नाजियों ने मार गिराए हैं। इसलिए जहाँ गोलियों के निशान दिख रहे हैं, उन्हें छोड़ दो और बाकी की जगहों पर कवच मजबूत कर दो।
शोधकर्ताओं से गलती ये हो रही थी कि जहाँ गोलियां लगना प्राणघातक सिद्ध होता, उन्हें छोड़कर वो ऐसी जगहों पर कवच लगाने जा रहे थे, जहाँ गोलियां लगती भी तो हवाई जहाज उतनी चोटें झेल जाता था। अब्राहम वाल्ड की बात मान ली गयी और बाकी जगह, यानी इंजन के नीचे और कॉकपिट इत्यादि वाले हिस्सों पर कवच लगाया गया। इससे सैकड़ों पायलटों की जान बच पायी थी। बाद में इसी शोध की गलती को “सर्वाइवर बायस” नाम से जाना जाने लगा। इसमें व्यक्ति या समूह बिलकुल उल्टी हरकत कर रहा होता है।
इसका अच्छा उदाहरण दिखेगा जब एक धोनी का सफल होना देखकर लोग अपनी नौकरी छोड़कर क्रिकेट में हाथ आजमाने की कोशिश करते दिखें। इंजीनियरिंग छोड़कर कुमार विश्वास जैसा कवि, चेतन भगत जैसा लेखक, या ऐसा ही कुछ हो जाने की कोशिश करने लगें। सेल्फ-हेल्प की किताबें लिखने वाले अक्सर ऐसा वहम फैलाते हैं कि आप अपने मन का करो, जो पसंद है वही करो। हर स्थिति में ऐसा करना कोई समझदारी नहीं होती। कोई सिर्फ पेंटिंग ही करना चाहता है, बड़ी अच्छी बात है, लेकिन क्या हर व्यक्ति एमएफ हुसैन, पिकासो इत्यादि हो जायेगा? नहीं, ऐसा नहीं होगा क्योंकि सिर्फ पेंटिंग बनाना प्रयाप्त नहीं होता, उसे किसी आर्ट-गैलरी में प्रदर्शित करना होगा। उसे बेचने के लिए एजेंट चाहिए, अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में उसके बारे में छपे, इसके लिए समीक्षकों से जान-पहचान होनी चाहिए।
केवल अच्छा पेंटर, अच्छा गायक, या अच्छा लेखक होना पर्याप्त नहीं होता, उसके साथ जुड़ी और भी बहुत सी चीजें हैं। मार्केटिंग महत्वपूर्ण है, अपना प्रोडक्ट बेचोगे किसे और कैसे बेचोगे ये भी सोचना पड़ेगा। उसके बिना सफलता नहीं मिलने वाली। एक सफल धोनी, या कुमार विश्वास, या चेतन भगत के पीछे सैकड़ों असफल हो गए ऐसे लोग छुप जाते हैं जो सफल नहीं हो पाए। असफल होने पर कौन सा प्लान बी प्रयोग करना है, इस बारे में सोचा है क्या?
असफल होने पर आप देख रहे होंगे कि जितने वर्षों में आपने एक असफल प्रयास किया, उतने ही समय में बंधे-बंधाये नियत तरीके से काम करने वाले आपके मित्र-सहपाठी काफी आगे निकल गए। वो कारें खरीद रहे होंगे, फ्लैट बुक करवा रहे होंगे और आपकी आप आजीविका का लगातार वाला स्रोत तक नहीं होगा। वो गृह प्रवेश या बच्चों के जन्मदिन की पार्टी में बुला रहे होंगे तो आपके पास उपहार देने के लिए पैसे कम पड़ रहे होंगे। जैसा शायद पैड-मैन फिल्म में देखा होगा, वैसे ही समाज और परिचित आपको मूर्ख मान रहे होंगे।
याद रखियेगा कि अपने भविष्य के लिए चुनाव कर रहे हैं आप और आपके चुनाव के हिसाब से जो भी परिणाम होंगे, वो सभी आपको अकेले झेलने होंगे। स्थापित तरीकों को छोड़कर, कुछ नया, कुछ ओह सो कूल करना है? एक बार फिर से आराम से सोच लीजिये

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Abhishek Chauhan भारतीय न्यूज़ का सदस्य हूँ। एक युवा होने के नाते देश व समाज के लिए कुछ कर गुजरने का लक्ष्य लिए पत्रकारिता में उतरा हूं। आशा है की आप सभी मुझे आशीर्वाद प्रदान करेंगे। जिससे मैं देश में समाज के लिए कुछ कर सकूं। सादर प्रणाम।