RASHMIRATHI PDF BOOK रश्मिरथी पीडीएफ पुस्तक

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Jul 12, 2024 - 19:55
Oct 30, 2024 - 18:46
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RASHMIRATHI PDF BOOK  रश्मिरथी पीडीएफ पुस्तक

Rashmirathi By Ramdhari Singh Dinkar

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जय हो', जग में जले जहाँ भी, नमन पुनीत अनल को, जिस नर में भी बसे, हमारा नमन तेज को, बल को । किसी वृन्त पर खिले विपिन में, पर नमस्य है फूल, सुधी खोजते नहीं गुणों का आदि, शक्ति का मूल।

ऊंच-नीच का भेद न माने, वहो श्रेष्ठ ज्ञानी है, दया-धर्म जिसमें हो, सबसे वही पूज्य प्राणी है। क्षत्रिय वही, भरी हो जिसमें निर्भयता की आग, सबसे श्रेष्ठ वही ब्राह्मण है, हो जिसमें तप-त्याग ।

तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतला के, पाते हैं जग से प्रशस्ति अपना करतव दिखला के | हीन मूल की ओर देख जग गलत कहे या ठीक, वीर खींच कर ही रहते हैं इतिहासों में लीक।

जिसके पिता सूर्यं थे, माता कुन्ती सती कुमारी, उसका पलना हुआ धार पर बहती हुई पिटारी। सूत-वंश में पला, चखा भी नहीं जननि का क्षीर, निकला कणं सभी युवकों में तब भी अद्भुत वीर!

तन से समरशूर, मन से भावुक, स्वभाव से दानी। जाति-गोत्र का नहों, शोल का, पौरुष का अभिमानी । ज्ञान-ध्यान, शस्त्रास्त्र, शास्त्र का कर सम्यक्‌ अभ्यास, व्हपने/ गुण क्त, क्रिमा5 कर्ण cet फठइ्चमं,सुकि 

अलग नगर के कौलाहल से, अलग KTT से, कठिन साधना में उद्योगी लगा हुआ तन-मन स। निज समाधि में निरत सदा निज कमंठता में चूर, वन्य कुसुम-सा खिला कर्ण जग की आँखों से दूर!

नहीं फूलते कुसुम मात्र राजाओं के उपवन में, अमित बार खिलते वे पुर से दूर कुञ्ज-कातन में समझे कौन रहस्य? प्रकृति का बड़ा अनोखा हाल, गुदड़ी में रखती चुन-चुन कर बड़े कीमती लाल!

जलद-पटल में छिपा, किन्तु रवि कब तक रह सकता है? युग की अवहेलना IKAT कब तक सह सकता है ? पाकर समय एक दिन आखिर उठी जवानी जाग, फूट पड़ी सब के समक्ष पौरुष की पहली आग।

रंग-भूमि में अर्जुन था जब समां अनोखा बाँधे, बढ़ा भीड़-भीतर से सहसा कर्ण शरासन साधे । कहता हुआ,-“तालियों से क्या रहा गर्व में फूल? अर्जुन ! तेरा सुयश अभी क्षण में होता है धूल!

तूने जो-जो किया, उसे मैं भी दिखला सकता हूँ, चाहे तो कुछ नयी कलाएँ भी सिखला सकता हूँ। आँख खोल कर देख, कर्ण के हाथों का व्यापार, फूले सस्ता सुयश प्राप्त कर, उस नर को धिक्कार 

इस प्रकार कह लगा दिखाने कर्ण कलाएँ रण की, सभा स्तब्ध रह गंयी, गयी रह आँख टेंगी जन-जन की । - सा मोन चतुर्दिक जन का पारावार, वज "सही" थी व्महत्र/ 'कर्णे  केश्लद्वन्वशपरन्ही'/ ठे

फिरा कणं, त्यों 'साधु-साधु' कह GÈ सकल नर-नारी, राजवंश के नेताओं. पर पड़ी विपद्‌ अति भारी । द्रोण, भीषम, अर्जुन, सब फीके, सब हो रहे उदास, एक सुयोधन बढ़ा, बोलते हुए-'वीर manm!’

zage के लिए पाथं को Sa उसने ललकारा, अर्जुन को चुप ही रहने का गुरु ने किया इशारा! कृपाचाय ने कहा--“सुनो हे वीर युवक अनजान !

भरत - वंश - अवतंस पाण्डु की अर्जुन है संतान।

“क्षत्रिय है, यह राजपुत्र है, यों ही नहीं लड़ेगा, जिस-तिससे हाथापाई में कैसे कूद पड़ेगा?

अर्जुन से लड़ना हो तो मत गहो सभा में मौन, नाम-धाम कुछ कहो, बताओ कि तुम जाति हों कौन?”

जाति ! हाय री जाति ! कर्ण का हृदय क्षोभ से डोला, कुपित सूर्य की ओर देख वह वीर क्रोध से बोला-“जाति-जाति रटते, जिनकी पूंजी केवल पाषंड, मैं क्या जानू जाति? जाति हैं ये मेरे भुजदंड।

, ऊपर सिर पर कनक-छत्र, भीतर काले-के-काले ; _ शरमाते हैं नहीं जगत्‌ में जाति पूछनेवाले। सूतपुत्र हूं में, लेकिन, थे पिता पार्थं के कोन? साहस हो तो कहो, ग्लानि से रह जाओ मत मोन ।

“मस्तक ऊंचा किये, जाति का नाम लिये चलते हो, पर अधमंमय शोषण के बल से सुख में पलते हो । अधम जातियों से थर-थर =h तुम्हारे प्राण, c muk Bha orarie gin. 81 2] क००दासम 

पूछो मेरी जाति,” शक्ति हो तो, मेरे भुजबल से, रवि-समान दीपित ललाट से, और कवच-कुण्डल से, पढ़ो उसे जो झलक रहा मुझमें. तंज-प्रकाश, at रोम-रोम में अंकित है मेरा इतिहास ।

“अर्जुन बड़ा वीर क्षत्रिय है, तो आगे ag आये, क्षत्रिय्व का तेज जरा मुझको भी तो दिखलायें। अभी छीन इस राजपुत्र के कर से तीर-कमान, अपनी महाजाति की दूंगा मैं तुमको पहचान P

' कृपाचाये ने कहा--“वृथा तुम क्रुद्ध हुए जाते हो, साधारण-सी बात उसे भी समझ नहीं पाते हो। राजपुत्र से लड़े बिना होता हो अगर अकाजः अजित” करना तुम्हें चाहिये पहले कोई राज |”

कणे हतप्रभ हुआ तनिक, मन-ही-मन कुछ भरमाया, सह न सका अन्याय, सुयोधन बढ़ कर आगे आया। बोला-“बड़ा पाप है करना इस प्रकार, अपमान, उस नर का जो दीप रहा हो, सचमुच, सूयं समान।

मूल जानना बड़ा कठिन है नदियों का, वीरों का, धनुष छोड़ कर और गोत्र क्या होता रणधीरों का?! पाते हैं सम्मान तपोबल से भूतल पर शूर, जाति-जाति का शोर मचाते केवल कायर, कूर ।

. “किसने देखा नहीं कणं जब निकल भीड़ से आया, अनायास आतंक एक सम्पूर्ण सभा पर छाया; कणं भले ही सूतपुत्र हो अथवा श्वपच, चमार,

करना क्या अपमान .ठीक है. इस अनमोल रतन का, मानवता की इस विभूति का: धरती के इस धन का? बिना राज्य यदि नहीं बीरता का -इसको अधिकार, तो मेरी यह, खुली. घोषणा सुने ' सकल संसार:

“अंग्देश .का मुकुट कणे के: मस्तक पर धरता . हें, एक राज्य इस महावीर के हितः अपित करता हे 1? रखा कर्ण के सिर पर उसने! अपना मुकुट उतार, गूंजा रंगभूमि में दुर्योधन का जय-जयकार।

कर्ण चकित रह गया सुयोधन qY इस परम कृपा से, फूट पड़ा मारे कृतज्ञता के भर उसे भुजा से। दुर्योधन ने हृदय लगाकर कहा-- “बन्धु ! हो शमन्त, मेरे इस क्षुद्रोपहार से क्यों होता उद्भ्रान्त ?

“किया कौन-सा त्याग अनोखा दिया राज्य यदि तुझको,

` अरे, धन्य हो जायं प्राण, तू ग्रहण करे यदि मुझको ।? कणे और गल गया, “हाय, मुझ पर भी इतना स्नेह ! वीर बन्धु ! हम हुए आज से एक प्राण, दो देह ।

“भरो सभा के बोच आज र जो मान दिया है, पहले - पहल मुझे जोवन में जो उत्थान दिया है, उऋण भला. होऊंगा उससे: चुकता कौन-सा दाम? कृपा करे दिनमान कि आऊ तेरे कोई काम ।””

घेर खड़े हो गये कर्ण को 'मुदित, मुग्ध पुरवासी,  n हो हैं लोग तत के_ शी  जव?  शपहचा

लगे लोग. पूजने कणे को कुंकुम और कमल से 

 प्रतिवन्दन में ज्यों झुका कर्ण सविशेष, जनता विकल पुकार उठी "जय महाराज अंगेश ?”

“महाराज अंगेश !' तीर-सा लगा हृदय में जा के, विफल क्रोध में कहा भोम ने और नहीं कुछ पा के--

“ह्य की m पूंछ आज तक रहा यही तो काज, सूतपुत्र किस तरह चला पायेगा कोई राज!”

दुर्योधन ने कहा-“भीम! झूठे बकबक करते हो, कहलाते धर्मज्ञ, द्वेष का विष मन में धरते हो? बड़े ds से कया होता है खोटे हों यदि काम! नर का गुण उज्ज्वल चरित्र है नहीं वंश, धन, धाम ।

सचमुच ही तो कहा कर्ण ने तुम्हों कौन हो वोरो ? जनमे थे किस तरह? ज्ञात हो, तो रहस्य यह खोलो । अपना अवगुण नहीं देखता, अजब जगत्‌ का हाल, निज आँखों से नहीं सूझता, सच है अपना भाल |

कृपाचार्यं आ पड़े बीच में, बोले-“छिः ! यह कया है ! तुम लागों में बची नाम को भो क्या नहीं हया ë ? चलो, चलें घर को, देखो; होने को आयो शाम,

रंग - भूमि से चले सभी पुरवासी मोद मनाते, कोई कर्ण पार्थ का कोई गुण आपस में गाते।

cB चे “अर्जुन A i २ Jb o s u : कहते हुए था s] q ollection, हु नया र्फ प्रन 

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@Dheeraj kashyap युवा पत्रकार- विचार और कार्य से आने वाले समय में अपनी मेहनत के प्रति लगन से समाज को बेहतर बना सकते हैं। जरूरत है कि वे अपनी ऊर्जा, साहस और ईमानदारी से र्काय के प्रति सही दिशा में उपयोग करें , Bachelor of Journalism And Mass Communication - Tilak School of Journalism and Mass Communication CCSU meerut / Master of Journalism and Mass Communication - Uttar Pradesh Rajarshi Tandon Open University पत्रकारिता- प्रेरणा मीडिया संस्थान नोएडा 2018 से केशव संवाद पत्रिका, प्रेरणा मीडिया, प्रेरणा विचार पत्रिका,