महान चक्रवर्ती सम्राट महाराणा प्रताप

महान चक्रवर्ती सम्राट महाराणा प्रताप के बलिदान, त्याग और शौर्य की साक्षी मायरा की गुफा राजस्थान के गोगुन्दा क्षेत्र में स्थित है.

May 9, 2024 - 06:35
May 9, 2024 - 14:21
 0
महान चक्रवर्ती सम्राट महाराणा प्रताप

****************महाराणा प्रताप *****************

                                (9 मई,1540/ जन्मोत्सव)

भारतीय इतिहास में राजपूताना का गौरवपूर्ण स्थान रहा है। यहां के रणबांकुरों ने देश, जाति, धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने में संकोच नहीं किया। वीरों की इस भूमि में राजपूतों के छोटे-बड़े अनेक राज्य रहे हैं, जिन्होंने भारत की स्वाधीनता के लिए संघर्ष किया। इन्हीं राज्यों में मेवाड़ का अपना अलग ही स्थान है। इसमें महाराणा प्रताप जैसे महान वीर ने जन्म लिया था। मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप अपने पराक्रम और शौर्य के लिए पूरी दुनिया में मिसाल के तौर पर जाने जाते हैं। एक ऐसे राजपूत राजा जो जीवन पर्यन्त मुगलों से लड़ते रहे, जिसने जंगलों में रहना पसंद किया, लेकिन कभी विदेशी मुगलों की गुलामी स्वीकार नहीं की थी। उन्होंने देश, धर्म और स्वाधीनता के लिए सब कुछ न्योछावर कर दिया था।

महान् योद्धा बलिदानी,राष्ट्र भक्तों के प्ररेणा श्रोत एवं परम् वीर महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 ई.को राजस्थान के मेवाड़ में सूर्य वंशी सिसोदिया राजवंश के राजपूताना कुंभलगढ़ दुर्ग में महारानी जीवत (जयवंता) कँवर के गर्भ से हुआ. इनके पिता का नाम महाराणा उदय सिंह था. महाराणा प्रताप पूरे जीवन मुग़लों से लड़ते रहे पर कभी हार नहीं मानी. 

महाराणा प्रताप का शस्त्रागार - मायरा की गुफा

महान चक्रवर्ती सम्राट महाराणा प्रताप के बलिदान, त्याग और शौर्य की साक्षी मायरा की गुफा राजस्थान के गोगुन्दा क्षेत्र में स्थित है.

इस्लामिक आक्रमणकारियों के विरुद्ध हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप ने इसी गुफा को अपना शस्त्रागार बनाया था. इसी गुफा में महाराणा के घोड़े चेतक को भी रखा जाता था.

इस प्राकृतिक गुफा ढांचा और आकार कुछ ऐसा है कि इसके भीतर से दूर तक का दृश्य स्पष्ट दिखाई देता है, किंतु बाहर से इसके भीतर कुछ नहीं दिखता.

गुफा के भीतर महाराणा प्रताप की आराध्य देवी हिंगलाज माता का मंदिर स्थापित है, जिनके दर्शन के लिए श्रद्धालु आज भी गुफा में आते हैं.

महाराणा प्रताप के बारे में कुछ रोचक जानकारी:

महाराणा प्रताप एक ही झटके में घोड़े समेत दुश्मन सैनिक को काट डालते थे.

जब इब्राहिम लिंकन भारत दौरे पर आ रहे थे तब उन्होने अपनी माँ से पूछा - कि हिंदुस्तान से आपके लिए क्या लेकर आए. तब माँ का उत्तर मिला- उस महान देश की वीरभूमि हल्दी-घाटी से एक मुट्ठी धूल लेकर आना जहाँ का राजा अपनी प्रजा के प्रति इतना वफ़ादार था कि उसने आधे हिंदुस्तान के बदले अपनी मातृभूमि को चुना ” लेकिन बदकिस्मती से उनका वो दौरा रद्द हो गया था! “बुक ऑफ़

प्रेसिडेंट यु एस ए ‘किताब में आप यह बात पढ़ सकते हैं.

महाराणा प्रताप के भाले का वजन 80 किलो ग्राम था और कवच का वजन भी 80 किलोग्राम ही था. कवच, भाला, ढाल, और हाथ में तलवार का वजन मिलाएं तो कुल वजन 207 किलो था.

आज भी महाराणा प्रताप की तलवार कवच आदि सामान उदयपुर राजघराने के संग्रहालय में सुरक्षित हैं.

अकबर ने कहा था कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते है तो आधा हिंदुस्तान के वारिस वो होंगे पर बादशाहत अकबर की ही रहेगी. 

लेकिन महाराणा प्रताप ने किसी की भी अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया.

हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20,000 सैनिक थे और अकबर की ओर से 85,000 सैनिक युद्ध में सम्मिलित हुए.

महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का मंदिर भी बना हुआ है जो आज भी हल्दी घाटी में सुरक्षित है.

महाराणा प्रताप ने जब महलों का त्याग किया तब उनके साथ लुहार जाति के हजारो लोगों ने भी घर छोड़ा और दिन रात राणा कि फौज के लिए तलवारें बनाईं. इसी समाज को आज गुजरात मध्यप्रदेश और राजस्थान में गाढ़िया लोहार कहा जाता है. मैं नमन करता हूँ ऐसे लोगो को.

हल्दी घाटी के युद्ध के 300 वर्ष बाद भी वहाँ जमीनों में तलवारें पाई गई. आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 में हल्दी घाटी में मिला था.

 महाराणा प्रताप को शस्त्रास्त्र की शिक्षा "श्री जैमल मेड़तिया जी" ने दी थी जो 8,000 राजपूत वीरों को लेकर 60,000 मुसलमानों से लड़े थे। उस युद्ध में 48,000 मारे गए थे जिनमे 8,000 राजपूत और 40,000 मुग़ल थे.

 महाराणा से अकबर थर-थर काँपता था.

 मेवाड़ के आदिवासी भील समाज ने हल्दी घाटी में अकबर की फौज को अपने तीरो से रौंद डाला था वो महाराणा प्रताप को अपना बेटा मानते थे और राणा बिना भेदभाव के उन के साथ रहते थे. आज भी मेवाड़ के राजचिन्ह पर एक तरफ राजपूत हैं तो दूसरी तरफ भील.

महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक महाराणा को 26 फीट का दरिया पार करने के बाद वीर गति को प्राप्त हुआ. उसकी एक टांग टूटने के बाद भी वह दरिया पार कर गया. जहाँ वो घायल हुआ वहां आज खोड़ी इमली नाम का पेड़ है जहाँ पर चेतक की मृत्यु हुई वहाँ चेतक मंदिर है.

राणा का घोड़ा चेतक भी बहुत ताकतवर था उसके मुँह के आगे दुश्मन के हाथियों को भ्रमित करने के लिए हाथी की सूंड लगाई जाती थी. यह हेतक और चेतक नाम के दो घोड़े थे.

मरने से पहले महाराणा प्रताप ने अपना खोया हुआ 85 % मेवाड फिर से जीत लिया था. सोने चांदी और महलो को छोड़कर वो 20 साल मेवाड़ के जंगलो में घूमे.

महाराणा प्रताप की लम्बाई 7’5” थी, दो म्यान वाली तलवार और 80 किलो का भाला रखते थे हाथ में.

मेरी संस्कृति….मेरा देश….मेरा अभिमान 

What's Your Reaction?

like

dislike

wow

sad

Abhishek Chauhan भारतीय न्यूज़ का सदस्य हूँ। एक युवा होने के नाते देश व समाज के लिए कुछ कर गुजरने का लक्ष्य लिए पत्रकारिता में उतरा हूं। आशा है की आप सभी मुझे आशीर्वाद प्रदान करेंगे। जिससे मैं देश में समाज के लिए कुछ कर सकूं। सादर प्रणाम।