वसंत की पुष्पिता भाषा हिंदी

स्वरों के आरोह-अवरोह से वह अपनी भाषा में प्रेयसी कोयली को बुला लेता है। पशु-पक्षियों की भाषा से रामायण के पात्र सुपरिचित थे

Mar 18, 2024 - 20:32
Mar 18, 2024 - 20:35
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वसंत की पुष्पिता भाषा हिंदी

वसंत की पुष्पिता भाषा हिंदी

वसंत ऋऋतु प्रकृति की भाषा सुनने का अवसर देती है, जिसे गीता में भगवान श्रीकृष्ण 'पुष्पिता वाणी' कहते हैं। यह विभिन्न गोत्र के शब्दों के फूल खिलने और रंग व सुगंध बिखेरने की त्रऋतु है। जानते हैं वसंत त्रऋतु के शब्द-पुष्यों की सुरभित भाषा क्या है....

हमारी भाषा भी हमारी चेतना की इकाई है। वह जड़ पदार्थ नहीं, राजीव प्राणी की तरह जन्मती है, दुख-सुख झेलती है और सम्मानित अपमानित होती है। हंदी दुनिया की सबसे जीवंत, सबसे प्राणवंत भाषा है, इसलिए नदियों की कालकाल ध्वनि, चिड़ियों की चहचहाहट, वर्षा की फुहार, सरसों से लेकर टेसू तक के रंग और पराग के सौरभ, वे सब अपने शब्दों में समेटती हुई चलती है। सावन की कजरी से लेकर फागुन के फाग तक हिंदी की विरासत है। बोली और भाषा का अंतर हमारे लिए नहीं है। कोयल की कूक उसकी बोली भी है और भाषा भी। स्वरों के आरोह-अवरोह से वह अपनी भाषा में प्रेयसी कोयली को बुला लेता है। पशु-पक्षियों की भाषा से रामायण के पात्र सुपरिचित थे, हम ही भूल गए। अन्यथा, जान पाते कि हिंदी में वृक्ष-लताएं, फूल-पत्ते, नदी-पहाड़, खेतों की फसलें और चांद तारे कैसे बोलते-बतियाते हैं।

वसंत ऋतु के चार  मास प्रकृति की उसी भाषा को सुनने के मास हैं, जिसे गीता में भगवान श्रीकृष्ण 'पुष्पिता वाणी' कहते हैं। हर मौसम अलग-अलग गोत्र के शब्दों के फूल खिलकर रंग और सुगंध बिखेरने का मौसम है। वसंत कुछ अधिक ही रसिक और संवेदनशील हैं। बरसात में सामान्यतः साधु- संतों के चार मास के व्रत के रूप में प्रसिद्ध चातुमांस के अलावा एक दूसरा चातुर्मास भी है-वासंती, जिसमें 'मदन महोत्सव मनाने को सुदीर्घ परंपरा ही है। चातुर्मास होता है चार मास। चतुर् यानी चार संख्या। भारतीय परिवेश में ऋतुएं दो-दो मास पर बदल जाती हैं। इसलिए हमारे यहां छह ऋतुएं होती हैं-पावस (सावनभादो), शरद (आश्विन-कार्तिक), हेमंत (अगहन पूस), शिशिर (माघ फागुन), वसंत (चैत-बैसाख) और ग्रीष्म (जेठ-आषाढ़)।

वसंत प्रेम और सौंदर्य की उपासना की ऋतु है। पूरी प्रकृति फूलों-मंजरियों से लद जाती है. इसलिए इसका एक नाम 'पुष्प-समय भी है। प्रेम, सौंदर्य और यौवन की ऋतु वरांत को ऋतुराज (ऋतुओं का राजा) माना गया। उपहारस्वरूप उसके हिस्से में शिशिर ऋतु के दो मास भी डाल दिए गए। आज फागुन को कोई शिशिर का मास नहीं मानेगा। यह वसंत का प्रमुख मारा बन गया है, जिसके अंतिम दिन रंगपर्व मनाया जाता है। फाग के गीत मिलन के गीत होते हैं। सदा आनंदा रहे ओहि द्वारे।
मोहन खेले होरी हो।
यह होली की शाम तक गाया जाता है। उसके बाद चैती यानी विरह वेदना के गीत शुरू हो जाते हैं:
सांसों के गजरे कुम्हलाए। आप न आए। वसंत के देवता कामदेव हैं, जो प्रेम-श्रृंगार के देवता हैं। पुरुष सौंदर्य में कामदेव और स्त्री सौंदर्य में उनकी पत्नी रति आदर्श प्रतिमान हैं। तुलसीदास जी श्रीराम के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कह बैठते हैं-कोटिक काम लजावनहारी। श्रीराम के सौंदर्य के समक्ष करोड़ों कामदेव निस्तेज हो जाते हैं। कामदेव का मदन नाम मन में अतिशय हर्ष भरने के कारण पड़ा। वे चेतना (मत्) को मथते हैं, अतः मन्मथ हुए। वे उत्कंठा पैदा करते हैं.


इसलिए स्मर हैं। योगेश्वर शिव ने तप भंग करने पर इन्हें अपने तृतीय नेत्र की ज्वाला में भस्म कर दिया था, जिससे ये अनंग (अन्+अंग देहरहित) हो गए। बाद में देवताओं की प्रार्थना पर शिव ने इन्हें प्रत्येक प्राणी के चित्त में बसने का वरदान दे दिया, ताकि सृष्टि चलती रहे। मन में यदि काम भावना न हो तो कोई जीव सूजन के लिए उद्यात ही न हो। प्राणियों के मन में उत्पन्न होने से ये 'मनोज' (मन-ज, जात उत्पन्न) कहलाये। मनसिज का भी वही अर्थ है- मनसि - मन में, ज उत्पन्न। इसी अर्थ में इन्हें 'विश्वकेतु' भी कहा गया कि इनका झंडा (केतु) संपूर्ण विश्व में फहराता है।


'मीनकेतन' (झंडे पर मछली का निशान) मकरध्वज (ध्वज पर चड़ियाल का निशान) आदि नाम भी कामदेव के ही हैं। काम भावना अतिशय बलशाली होती है, जिससे एक नाम 'प्रद्युन्न' पड़ा। द्युम्न का अर्थ बल होता है। प्रद्युम्न बानी प्रकृष्ट (उत्कृष्ट) बलशाली। वैसे पौराणिक कथा यह है कि सेबर राक्षस के वघ के लिए श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के पुत्र के रूप में वे पैदा हुए, जिससे उनका एक नाम सम्बरारि भी पड़ा। कामदेव को 'पुष्यधन्वा बानी फूलों का धनुष जाला भले कहा जाए, किंतु शास्त्रों में उनका धनुष इक्षुदंड (गन्ने) का है, जिस पर डोरी भ्रमरों की पंक्ति की है। कामदेव के बाण पांच फूलों के हैं, जिससे उनका नाम 'पंचशर' है। ये पांच फूल हैं- अरविंद (कमल), अशोक, आम, नव मल्लिका (चमेली) और नीलोत्पल (नीला कमल)। इन पांचों बाणों के कार्य क्रमशः हैं-उन्मादन, तापन, शोषण, स्तम्भन और सम्मोहन। कामदेव का वाहन शुक (तोता) है।

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