न्याय क्षेत्र में भारत का दृष्टिकोण अद्वितीय

स्वदेशी ज्ञान को अपनाकर, सांस्कृतिक विविधता व नवाचार को बढ़ावा देकर, भारत एक कानूनी ढांचा बनाने को तैयार

Mar 18, 2024 - 20:40
Mar 18, 2024 - 20:46
 0  18
न्याय क्षेत्र में भारत का दृष्टिकोण अद्वितीय

काशी न्याय समागम, पश्चिमी रीति-रिवाजों को अपनाने से उठे विवादास्पद मुद्दे

  • अथर्वसंहिता के वरुण तत्व में समाहित है संविधान का सार : प्रो. विजय शंकर
  • हमारे समाज में विमर्श कर्तव्यों की बजाय अधिकारों पर हो गया केंद्रित

भारत अपने दृष्टिकोण में अद्वितीय है। यह प्रत्येक घटना को कानूनी चश्मे से देखता है। याज्ञवल्क्य स्मृति और नारद स्मृति जैसे ग्रंथों में कीड़ों को मारना भी अपराध माना गया है। भारतीय संस्कृति महिलाओं के संपत्ति अधिकारों की वकालत करती है। हमारी संस्कृति ने लैंगिक समानता पर बल देते हुए, विवाह के बाद "पति" की उपाधि नहीं अपनाई। स्त्रियां यहां विवाह से पूर्व "कुमारी" और उसके बाद "देवी" का प्रयोग करती थीं। उपनिवेशवाद ने हमारी संस्कृति को काफी हद तक नष्ट किया।

भारत का सुप्रीम कोर्ट मुख्य न्यायाधीश द्वारा संचालित न्यायालय है, जिसे  बदलना होगा : सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ | Supreme Court, CJI DY Chandrachud,  सुप्रीम ...

बिना जांच-पड़ताल के पश्चिमी रीति-रिवाजों को अपनाना विवादास्पद बन गया। यह बातें जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के स्कूल आफ संस्कृत एंड इंडिक स्टडीज के प्रो. रामनाथ झा ने रविवार को काशी हिंदू विश्वविद्यालय के विधि संकाय के तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय स्तर के 'काशी न्याय समागम' में कहीं। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के आइजीएनसीए के अकादमिक सलाहकार प्रो. विजयशंकर शुक्ल ने कहा कि अथर्वसंहिता अपने वरुण तत्व में संविधान का सार समाहित करती है। "यतो धर्मस्ततो जयः" का संदर्भ देते हुए, उन्होंने का संदर्भ देते हुए, उन्होंने के आगमन से पहले समाज को आकार देने वाला धर्म ही था। संवैधानिक आधार को समझने के लिए धर्मशास्त्रों की पड़ताल जरूरी है। बीएचयू विधि संकाय के प्रो. आरके मुरली ने कहा कि हमारे समाज में विमर्श कर्तव्यों की बजाय अधिकारों पर केंद्रित हो गया है

भारत का संविधान (Constitution of India) भाग 14: संघ की न्यायपालिका और भारत  का उच्चतम न्यायालय | Constitution of India Part 14: Union Judiciary and  Supreme Court of India

ध्यान व्यक्तिगत अधिकारों की ओर स्थानांतरित हो गया है, बच्चे भी माता पिता से अधिकारों की बात करते हैं। अधिकारों का यह निर्धारण अक्सर कर्तव्यों की उपेक्षा का कारण बनता है। जेरेमी बॅथम और एचएलए हार्ट जैसे विद्वानों ने कानून और नैतिकता के बीच संबंधों की व्यापक चर्चा की है, और इसकी जटिलताओं पर प्रकाश डाला है। समापन सत्र के मुख्य अतिथि जेएनयू नई दिल्ली के स्कूल आफ सोशल साइंसेज के प्रो. विवेक विवेक कुमार ने कहा कि स्वदेशी परंपराओं को संरक्षित करने और सार्वभौमिक मानव अधिकारों, लैंगिक समानता और सामाजिक न्याय सिद्धांतों को कानूनी ढांचे में एकीकृत करने के बीच एक नाजुक संतुलन बनाने की आवश्यकता है।

क्या है संविधान की मूल संरचना, जिस पर छिड़ी बहस... कोर्ट और सरकार में क्यों  है ठनी? | Basic Structure of Indian Constitution Supreme Court Chief Justice  vs Deputy President Jagdeep Dhankhar |

स्वदेशी कानूनी प्रणालियों के भीतर जातिगत भेदभाव, लिंग पूर्वाग्रह और हाशिए पर जाने के मुद्दे भी शामिल हैं। केंद्रीय विश्वविद्यालय पंजाब के कुलपति प्रो. जगबीर सिंह ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि भारत की कानूनी प्रणाली का स्वदेशीकरण कानून के प्रति अधिक समावेशी, सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील और न्यायसंगत दृष्टिकोण की दिशा में एक आदर्श बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है।

न्याय व्यवस्था : अपना देश, अपने लोग, अपना कानून
स्वदेशी ज्ञान को अपनाकर, सांस्कृतिक विविधता व नवाचार को बढ़ावा देकर, भारत एक कानूनी ढांचा बनाने को तैयार है जो इसकी विविध आबादी के लोकाचार और आकांक्षाओं को दर्शाता है। अतिथियों का स्वागत प्रो. विनोद शंकर मिश्र व धन्यवाद ज्ञापन डा. राजू माझी ने किया। समापन राष्ट्रगीत 'वंदे मातरम्' से हुआ।

What's Your Reaction?

like

dislike

wow

sad

UP HAED सामचार