झारखंड के चुनावों में भाजपा

 कम अंतर से हार वाली लोकसभा सीटों पर महागठबंधन लगाएमा बोर,

Mar 4, 2024 - 23:55
Mar 5, 2024 - 10:32
 0  14
झारखंड के चुनावों में भाजपा

झारखंड को चुनावों जमीन भाजपा

के लिए उर्बर रही है। 2019 के लोकचुनाव में यहां की 14 में 12 सीटें राजग के खाते में आई थीं। इनमें 11 पर भाजपा के उम्मीदवार और एक सीट पर सहयोगी दल आजसू ने जीती थी। इसके बाद से ही भाजपा उन दो सीटों को जीतने का संकल्प दोहरा रही है, जिन पर मोदी लहर के बावजूद उसे कांग्रेस व झामुमो ने शिकस्त दी थी। इनमें सिंहभूम सोट से कांग्रेस के टिकट पर जीतीं गीता कोड़ा के भाजपा में शामिल हो जाने से पार्टी को वहां रणनीतिक बढ़त मिलती दिख रही है।

Lok Sabha Election 2024: झारखंड की इन सीटों पर किसे मिलेगा टिकट? जल्द होगा सस्पेंस खत्म, भाजपा नेता ने कर दिया स्टैंड क्लियर

पार्टी ने उन्हें सिंहभूम से अपना उम्मीदवार भी घोषित कर दिया है। अब राजमहल पर भाजपा का फोकस बढ़ा है। यहां भाजपा ने पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे ताला मरांडी को टिकट दिया है। ताला मरांडी की इस क्षेत्र में पकड़ रही है। इसी क्षेत्र के चोरियो विधानसभा क्षेत्र से कह दो चार विधायक पं रह चुके हैं। भाजपा ने झारखंड को 14 में 11 सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। इनमें एक सीट गिरीबीह को लेकर ज्यादा संभावना यही है कि इस चार यह सोट आजसू को दी जाए। धनबाद और चतरा रा में पार्टी द्वारा उम्मीदवार घोषित नहीं किए जाने से इस चर्चा को बल मिला है कि इन सीटों पर उम्मीदवार बदले जा सकते हैं। धनबाद के भाजपा सांसद अब 75 वर्ष के हो रहे हैं। ऐसे में उनकी उम्र उम्मीदकरी में आड़े आ सकती है, जबकि चतरा को लेकर जातीय समीकरण व अन्य फैक्टर पर मंथन चल रहा है, ताकि जिताऊ उम्मीदवार पर ही दांव लगाया जाए।

  कम अंतर से हार वाली लोकसभा सीटों पर महागठबंधन लगाएमा बोर

झामुमो-कांग्रेस में बात अंतिम बरण में राज्य में सत्तारूड कांग्रेस-झामुमो गठबंधन में भले ही अभी तक सीटों के बंटवारे को लेकर अंतिम रूप से फार्मूला तय नहीं हो पाया है, लेकिन भाजपा का मिलकर मुकाबला करने की रणनीति बनाई जा चुकी है। महागठबंधन की नगर आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित पांच सीटों पर है। इनमें खूंटी और लोहरदगा में पिछली चार जीत-हार का अंतर काफी कम था। खूंटी से भाजपा प्रत्याशी अर्जुन मुंडा (केंद्रीय मंत्री) ने सिर्फ 1445 कोट से जीत हासिल की थी, जबकि लोहरदगा में यह आंकड़ा 10,363 था। दोनों सीटों पर कांग्रेस ने भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी। कांग्रेस झामुमो इन सीटों के लिए रणनीति बनाने में जुटी हैं। खूंटी व लोहरदगा के अलावा तीन अन्य अनुसूचित जनजाति सोटें राजमहल, सिंहभूम और दुमका हैं। दुमका पर झामुमो

Lok Sabha Election: भाजपा ने झारखंड की इस सीट पर कर दिया 'खेला'! अपने ही  गढ़ में उलझी कांग्रेस-JMM - BJP has played this seat of Jharkhand Congress  JMM entangled in their

का परंपरागत कब्जा रहा है, लेकिन पिछली बार झामुमो के शिबू सोरेन को 47,590 मतों के अंतर से भाजपा से हार का सामना करना पड़ा था। वहीं राजमहल व सिंहभूम में भाजपा हार गई थी। सिंहभूम में गीता कोठा के कांग्रेस छोड़कर झामुमो में चले जाने के बाद इस सीट पर कांग्रेस की दावेदारी कमजोर हुई है। राजमहल पहले से ही झामुमो को जीती हुई सोट है। ऐसे में में दोनों सोटे झामुमो को मिल सकती हैं। झामुमो व कांग्रेस के बीच सात-सात सीटों पर सहमति बन सकती है। राजद और वामदल को भी दोनों अपने-अपने खाते से एक-एक सीट दे सकते हैं। वह रहा है समीकरण 2004 के लोकसभा चुनाव की चात छोड़ दें तो पिछले तीन दशकों के ज्यावतर चुनावों में 80-90 प्रतिशत सीटों पर भाजपा का ही कब्जा रहा है। 2014 में भाजपा को 12 सीटें और 2019 के चुनाव में 11 सीटें तथा उसको सहयोगी आजसू को एक सीट मिली थी। 2014 में कांग्रेस का खाता नहीं खुला था, जबकि झामुमो के खाते में दो सीट आई थी। 

आगामी लोकसभा चुनाव में 14 राज्यों में विपक्ष के लिए भाजपा के सामने चुनौती पेश करना कतई आसान नहीं होगा। इन राज्यों में भाजपा 2019 में 50 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल करने में सफल रही थी। उस समय 224 सीटें ऐसी थी, जिन पर भाजपा प्रत्याशियों को 50 प्रतिशत से अधिक वोट मिले थे। भाजपा को अकेले 303 और राजग को 351 सीटें जिताने में इन राज्यों की अहम भूमिका रही थी। इन राज्यों में भाजपा की बढ़त को कम करने के लिए विपक्ष को गठबंधन और सोट बंटवारे के अलावा भी काफी कुछ करना होगा।

BJP relies on experienced candidates in Jharkhand for Loksabha Election  2024 know who gets ticket from where - अनुभव के आधार पर BJP का उम्मीदवार,  झारखंड में इन चेहरों पर लगाया दांव;

2019 में भाजपा गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक, गोवा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश व चंडीगढ़ में 50 प्रतिशत वोट की सीमा पार करने में सफल रही थी। केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ समेत उक्त 14 राज्यों में लोकसभा की कुल 244 सीटें हैं, जिनमें 217 पर भाजपा की जीत हुई थी। इनमें यदि उत्तर प्रदेश में अपना दल को आई दो सीटों को जोड़ लें तो 219 हो जाती हैं। 50 प्रतिशत वोट की सीमा पार करने के बाद किसी पार्टी को हराने के लिए कोई भी गठबंधन तब तक बेमानी रहेगा, जब तक वह भाजपा के वोटबैंक में सेंध लगाने और अपने वोट बैंक को उससे आगे ले जाने में सफल नहीं होता।

राजग कले दो राज्य-बिहार और महाराष्ट्र 2024 में अहम साबित हो सकते हैं। इन दोनों राज्यों में 50 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर के साथ अधिकांश सीटें जीतने में सफल रहा था। बिहार में भाजपा ने 17, जदयू ने 16 और लोजपा ने छह सीटें जीती थीं। इस तरह राजग को 40 में 39 सीटें हासिल हुई थीं। नीतीश कुमार की वापसी के बाद भाजपा बिहार में राहत की सांस ले सकती है। यही नहीं, हम और रालोसपा के साथ आने के बाद जातीय समीकरण भी मजबूत हुए हैं। महाराष्ट्र में पिछली बार भाजपा और शिवसेना गठबंधन ने 50 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर के साथ 48 में से 41 सीटें जीतने में सफलता पदं थी, लेकिन इस बार

शिवसेना बंट चुकी है। यही नहीं पिछली बार विपक्ष में रही राष्ट्रबादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) भी दो फाड़ है और अजीत पवार खेमा राजग के साथ है। देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा, शिवसेना (शिंदे गुट) और राकांपा (अजीत पवार गुट) का राजग पिछली बार की तरह प्रदर्शन को दोहराने में सफल हो सकता है वा नहीं।

बढ़ती जा रही मोदी की लोकप्रियताः सीटवार आंकड़े को भी देखें तो पिछली बार भाजपा ने 50 प्रतिशत से अधिक वोट पाकर जो 224 सीटें जीती थीं, वे 272 सीटों के बहुमत के आंकड़े से महज 48 सीटें ही कम हैं। जैसे सच्याई यह भी है कि हर चुनाव अलग होता है और 2019 के आंकड़ों के आधार पर 2024 का निष्कर्ष निकालना ठीक नहीं है, लेकिन तथ्य यह भी है कि 2014 के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता घटने के बजाय बढ़ती जा रही है, यह 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव के आंकड़ों में भी देखा जा सकता है। 2014 में भाजपा 136 स्वेटे 50 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर के साथ जीती थी, जो 2019 में बढ़कर 224 पहुंच गई। इसी तरह से भाजपा 2014 में 116 सीटें दो लाख से अधिक और 42 सीटें तीन लाख से अधिक वोटों के अंतर से जीती थी, जिनकी संख्या 2019 में क्रमशः 164 और 105 पहुंच गई।

पिछले लोकसभा चुनाव में 14 में से 12 सीटों पर राजग को मिली थी जीव झामुमो-कांग्रेस की निगाह भी आदिवासी समुवाद के लिए आरक्षित पांच सीटों पर सीटें झारखंड में है, सभी जीतने का लक्ष्य लेकर बढ़ रही भाजपा, सिंहभूम में कांग्रेस को दिया झटका कांग्रेस का विभाजन

इस चुनाव में कसोस को मिले साधारण बहुमत से इंदिरा गाधी परेशान हो गई। उन्होंने हतमगिता का परिचय देते हुए पार्टी की भावना के विपरीत कई फैसले लिए। इसमे काग्रेस के भीतर चल रहा आतरिक घमासान सतह पर आ गया। नवंबर, 1969 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पार्टी से निकाल दिया गया। इसके चलते कांग्रेस में विभाजन हो गया। मोरारजी देसाई के नेतृत्व में कांग्रेस (ओ) और इंदिरा गाधी के नेतृत्व में कांग्रेस (आर) पार्टियों का गठन हुआ। इंदिरा कम्युनिस्ट पार्टी के सहयोग से अत्यमत सरकार चलाती रही और 1971 में समय से एक साल पहले ही नए चुनावों की घोषणा हो गई।

 इंदिरा की टूटी नाक

मुवनेश्वर की एक रैली में प्रचार के दौरान भीड़ की तरफ से मारे गए फत्कार से इंदिरा गांधी की नाक की हड्डी टूट गई थी। इसी चुनाव में इंदिरा गांधी पहली बार रायबरेली से चुनाव जीती थी। जहा से पहले उनके पति किरोज मापी चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे।

What's Your Reaction?

like

dislike

wow

sad