‘बंटेंगे तो कटेंगे पर किन्तु-परन्तु नहीं, बांग्लादेश में 32% रहा हिन्दू बंटा तो कटा’: सुधांशु त्रिवेदी

पाञ्चजन्य के 78वें स्थापना वर्ष पर भारत की प्रगति के आठ केंद्रों पर आधारित कार्यक्रम ‘अष्टायाम’ में भाजपा सांसद और राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी से पाञ्चजन्य की पत्रकार त्रिप्ति श्रीवास्तव ने ‘राज और नीति’ विषय पर बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश- कांग्रेस जातिगत जनगणना की बात कर रही है, लेकिन बीजेपी बंटेंगे […]

Jan 20, 2025 - 06:50
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‘बंटेंगे तो कटेंगे पर किन्तु-परन्तु नहीं, बांग्लादेश में 32% रहा हिन्दू बंटा तो कटा’: सुधांशु त्रिवेदी
Sudhanshu Trivedi on Batenge toh katenge

पाञ्चजन्य के 78वें स्थापना वर्ष पर भारत की प्रगति के आठ केंद्रों पर आधारित कार्यक्रम ‘अष्टायाम’ में भाजपा सांसद और राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी से पाञ्चजन्य की पत्रकार त्रिप्ति श्रीवास्तव ने ‘राज और नीति’ विषय पर बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश-

कांग्रेस जातिगत जनगणना की बात कर रही है, लेकिन बीजेपी बंटेंगे तो कटेंगे कह रही है?

बंटेंगे तो कटेंगें, एक हैं तो सेफ हैं, ये एक सहज भाव है। इसमें कोई किन्तु परंतु नहीं है। इतिहास भी हमें ये बताता है कि जब राजा आंभि और पोरस आपस में बंटे तो ही यूनानियों के हाथों कटे। पृथ्वीराज चौहान और जयचंद के बीच में बंटे तो मोहम्मद गोरी के हाथों कटे। यही हाल तब हुआ जब महाराणा प्रताप और मानसिंह के बीच में बंटे तो अकबर के हाथों कटे। तब रियासतों के राजा थे, अब जातियों के राजा हैं। आज जातियों के राजाओं को लगता है कि हमने कट्टरपंथियों को साध लिया तो हमारा राज आ जाएगा। लेकिन, ये लोग भूल रहे हैं कि जब गोरी जीता था तो बचे जयचंद भी नहीं थे।

पाकिस्तान में 24 फीसदी हिन्दू रह गए थे। आज के बांग्लादेश में 32 फीसदी था, लेकिन अब 7 प्रतिशत पर आ गया है। उस 32 फीसदी में एससी/एसटी और ओबीसी था। वो बंट गए तो कट गए। यही हाल सिलहट में हुआ, वहां वोटिंग से ये तय हुआ था कि वो इलाका भारत में रहेगा या पाकिस्तान में रहेगा। उस समय जोगिंदरनाथ मंडल जो कि दलित समाज के नेता थे, वो मुस्लिम लीग के साथ मिलकर अधिक स्वतंत्रता और राज मिलेगा। उन्होंने अपनी जाति के, लोगों से मुस्लिम लीग के पक्ष में वोट करवाया। जैसे ही वोट बंटा तो सिलहट भारत से कटा। बांग्लादेश के हालात सभी जानते हैं। भारत के लोगों से ये कहना चाहूंगा कि तोरी गठरी में लागा चोर मुसाफिर मन की आंखें खोल।

इस समय नरैटिव की लड़ाई चल रही है। आने वाले समय में इससे निपटने के लिए क्या किया जाएगा?

नरैटिव की लड़ाई वास्तविक लड़ाई है। आप सत्ता में रहें और नरैटिव नहीं बदला तो कश्मीर फाइल्स का वो डायलॉग याद करें कि सरकार भले ही उनकी है, सिस्टम आज भी हमारा है। नरैटिव को लेकर 13 दिन की सरकार गिरने के वक्त सुषमा स्वराज ने कहा था कि लुटियंस जोन में आप अपने आपको बुद्धिमान तब तक न समझें जब तक कि आप अपने भारतीय होने पर ग्लानि का अनुभव न करने लगें और हिन्दू होने पर शर्म का अनुभव न करें। तब तक आपको बौद्धिक जगत में मान्यता नहीं मिल सकती।

मोदी जी के आने के बाद नरैटिव को बहुत ही भयानक तरीके से आगे बढ़ाने का प्रयास किया कि देश खत्म हो जाएगा। लेकिन, नरैटिव की ये लड़ाई पिछले 50-60 साल से चल रही है।

 

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