छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन में ज्ञान, भक्ति, कर्म और साधना का संगम है – भय्याजी जोशी

कराड, पश्चिम महाराष्ट्र। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य भय्याजी जोशी ने कहा कि हमारा देश पुण्यभूमि, देवभूमि, पराक्रमी वीरों और संतों की भूमि है। कई वर्षों के आक्रमण के बाद, गुलामी के बाद ३५० वर्ष पूर्व भारत के इतिहास में स्वर्णिमकाल शुरू हुआ। वह है छत्रपति श्री शिवाजी महाराज का गौरवमयी […] The post छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन में ज्ञान, भक्ति, कर्म और साधना का संगम है – भय्याजी जोशी appeared first on VSK Bharat.

Jul 16, 2025 - 19:20
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छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन में ज्ञान, भक्ति, कर्म और साधना का संगम है – भय्याजी जोशी

कराड, पश्चिम महाराष्ट्र। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य भय्याजी जोशी ने कहा कि हमारा देश पुण्यभूमि, देवभूमि, पराक्रमी वीरों और संतों की भूमि है। कई वर्षों के आक्रमण के बाद, गुलामी के बाद ३५० वर्ष पूर्व भारत के इतिहास में स्वर्णिमकाल शुरू हुआ। वह है छत्रपति श्री शिवाजी महाराज का गौरवमयी काल। उस स्वर्णिम काल की कलम यानी समर्थ रामदास स्वामी हैं।

भय्याजी जोशी श्री समर्थ सेवा मंडल की ओर से आयोजित श्री शिवसमर्थ चरित्र विमोचन कार्यक्रम में संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर वरिष्ठ प्रबंधन व आर्थिक विशेषज्ञ तथा सरसेनापति हंबीरराव मोहिते के वंशज विक्रमसिंह मोहिते, समर्थ सेवा मंडल सज्जनगढ़ के कार्यवाह योगेशबुवा रामदासी, गुरुनाथ महाराज कोटणीस, डॉ. अच्युत गोडबोले, कराड अर्बन बैंक के परिवार प्रमुख सुभाष जोशी, अर्बन परिवार के सलाहकार दिलीप उपस्थित रहे।

भय्याजी जोशी ने कहा कि  ज्ञान, भक्ति, कर्म, साधना के साथ अन्य कई तरह से सज्जन नागरिक हमारे समाज में योगदान देते हैं। ये चार गुण जिसमें एकत्र आते हैं, उसे ही योगी कहते हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज की जीवनी में ज्ञान, भक्ति, कर्म और साधना चारों गुणों का संगम है। इसलिए समर्थ रामदास स्वामी ने छत्रपति शिवाजी को ‘श्रीमंत योगी’ कहा है।

उन्होंने कहा कि छत्रपति संभाजी को संबोधित कर लिखे पत्र में समर्थ रामदास स्वामी ने छत्रपति शिवाजी महाराज का वर्णन पूरे हिन्दू समाज के लिए एक व्यक्ति का आदर्श चरित्र कैसा हो, इसका मूर्तिमान रूप है। समर्थ रामदास के पत्र में प्रत्येक शब्द का साकार रूप श्री शिव चरित्र है।

छत्रपति शिवाजी महाराज की तरह प्रत्येक नागरिक कैसा हो, इसका मार्गदर्शन समर्थ रामदास स्वामी तथा हमारी भारतीय संस्कृति की संत परंपरा ने किया। सज्जनों को शक्तिशाली बनाना और शक्तिमान लोगों को सज्जन करना, यही हम सब सर्व शिव- समर्थ भक्तों का कर्तव्य है। भय्याजी जोशी ने आह्वान किया कि आज हमारा देश सभी मोर्चों पर प्रगति के पथ पर है, ऐसे में हमें केवल मौन साक्षी न रहते हुए उसमें सक्रिय सहभागी होना चाहिए।

योगेशबुवा रामदासी ने प्रस्तावना में कहा कि शूरता का तेज और उपासना का तेज एकत्र हुए और शिवा जी के काल में महाराष्ट्र में अलौकिक इतिहास बना। इसीलिए छत्रपति श्री शिवाजी और समर्थ रामदास स्वामी की जीवनियों का विमोचन करने हेतु श्री समर्थ सेवा मंडल ने कृष्णा-कोयना नदियों के संगम पर बसी ऐतिहासिक कराड नगरी को चुना।

विक्रमसिंह मोहिते ने कहा कि धर्मरक्षा और स्वधर्म की पहचान का संस्कार छत्रपति शिवाजी को शाहजी महाराज और राजमाता जिजाऊ ने दिया। प्राचीन राजनीति विषयक विभिन्न ग्रंथों, सांस्कृतिक परंपराओं, वेद, पुराण-स्मृति, महाभारत, रामायण का अध्ययन छत्रपति श्री शिवाजी ने किया था। उसी का प्रत्यक्ष कार्यान्वयन शिवाजी ने अपने पूरे जीवन में किया और उसी में से हिंदुस्थान में हिंदवी स्वराज्य के रूप में अलौकिक इतिहास बना।

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