परमतत्त्व के साक्षात्कार का विज्ञान - योग दर्शन
" " योग " का अर्थ है वह जो आपको उच्च आयाम या जीवन की उच्च धारणा पर ले जाता है। तो, वह आसन जो आपको उच्च संभावना की ओर ले जाता है उसे "योगासन" कहा जाता है।"
प्राचीन भारतीय षड्दर्शनों में योग दर्शन का अपना एक विशिष्ट स्थान है। महान वैयाकरण महर्षि पतंजलि इसके प्रणेता हैं। और सूत्रशैली में लिखा पातंजल योगसूत्र इसका आदिग्रन्थ है।
वास्तव में 'योग' का शाब्दिक अर्थ होता है - उपाय या साधन। परमसत्ता के साक्षात्कार का साधन होने से ही इसे 'योग' दर्शन कहा गया।
आजकल जनमानस में यह आमधारणा है कि योग शरीर की तन्दरूस्ती का उपाय है, पर ऐसा नहीं है। योगसूत्र का पहला सूत्र ही यह कहता है कि योग चित्तवृत्तियों का निरोधक है।
(आसनों का क्रम मेरी या आपकी पसंद के अनुसार नहीं है, यह मानव प्रणाली का स्वरूप है।)
यम, नियम, आसन, प्रणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि, इस अष्टांग मार्ग से दस इन्द्रियों, मन, बुद्धि और चित्त का संयम कर परमतत्त्व का साक्षात्कार करना और मोक्ष प्राप्त करना इसका उद्देश्य है।
प्राचीन दर्शनों में योग सर्वाधिक लोकप्रसिद्ध है। इसे इस बात से समझा जा सकता है कि पूरा विश्व प्रतिवर्ष 21 जून को अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाता है।
आपके मन और भावनाओं को ध्यान केंद्रित करने के लिए एक ही वस्तु की आवश्यकता होती है। अगर वे दोनों एक ही वस्तु पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो आप अधिकतम आराम में रहते हैं। अगर आपका शरीर एक दिशा में जाता है, आपका मन दूसरी दिशा में जाता है, और आपकी भावनाएँ एक और दिशा में जाती हैं, तो आप संघर्ष करेंगे।
मान लीजिए कि आपके पास एक नौकरी है जिसमें आप बहुत व्यस्त हैं, घर पर एक परिवार है, और एक तरफ कोई प्रेम-संबंध है, तो आप बहुत उलझन में रहेंगे - कभी भी आराम से नहीं रहेंगे। केवल तभी जब आपका शरीर, मन और भावनाएँ एक दिशा में केंद्रित हों, आप पूरी तरह से आराम में रहेंगे।
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की शुभकामनाएं
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