साइबर ठगों ने टेलीकॉम कंपनियों और बैंकों में लगाई सेंध
टेलीकॉम कंपनियों के कर्मचारियों के संपर्क में रहते हैं। जो आसानी से मोबाइल नंबर उपलब्ध कराते हैं। साथ ही कुछ एजेंट और कर्मचारी प्री एक्टिवेटेड सिम भी मुहैया कराते हैं। 50 हजार से एक लाख रुपये होती है जानकारी
साइबर ठगों ने टेलीकॉम कंपनियों और बैंकों में लगाई सेंध
कारगुजारी : कर्मचारियों को लालच देकर हासिल करते हैं खातों और पंजीकृत फोन नंबर की जानकारी
साइबर जालसाजों
ने सुनियोजित तरीके से टेलीकॉम कंपनियों और बैंकों में सेंध लगा दी है। बिना खाताधारक की जानकारी के खातों से रकम निकालने के कुछ मामलों में एसटीएफ निजी बैंक और टेलीकॉम कंपनियों के कर्मचारी और एजेंटों को गिरफ्तार भी कर चुकी है।
साइबर क्राइम थाने के प्रभारी निरीक्षक बृजेश यादव के मुताबिक इसमें जालसाजों का नेटवर्क काम करता है। गिरोह के सदस्य बैंक कर्मचारियों से संपर्क करते हैं। उनको मोटी रकम का लालच देकर एक बार में सैकड़ों खातों की जानकारी हासिल कर लेते हैं।
वहीं, कुछ सदस्य टेलीकॉम कंपनियों के कर्मचारियों के संपर्क में रहते हैं। जो आसानी से मोबाइल नंबर उपलब्ध कराते हैं। साथ ही कुछ एजेंट और कर्मचारी प्री एक्टिवेटेड सिम भी मुहैया कराते हैं। 50 हजार से एक लाख रुपये होती है जानकारी की कीमत: जालसाज बैंक खातों की जानकारी हासिल करने के लिए मोटी रकम खर्च करते है। 50 लाख रुपये से अधिक के खातों की जानकारी देने वाले कर्मचारी 25 से 50 हजार रुपये दिए जाते है। जो कर्मचारी करोड़ों बैंक बैलेंस वाले खातों की जानकारी देता है। उसे प्रति खाते एक लाख रुपये दिए जाते हैं। इसके लिए पहले ही रकम तय की जाती है।
दर्जनों बैंककर्मी गिरफ्तार साइबर ठगी के मामले में दर्जनों बैंक
कर्मचारी गिरफ्तार हो चुके है। हाल ही में एक महीने पहले वाराणसी पुलिस ने रिटायर्ड शिक्षिका से साढ़े तीन करोड़ की ठगी करने के मामले में छह आरोपियों को गिरफ्तार किया। इसमें आईसीआईसीआई बैंक लखनऊ में रीजनल हेड अयोध्या के पुरानी सब्जी मंडी निवासी सरफराज आलम और लखनऊ एचडीएफसी बैंक का कैशियर नुरूलहुदा शामिल है। इसके अलावा एसटीएफ ने दो साल पहले नोएडा से 10 जालसाजों को गिरफ्तार किया। उनमें एचडीएफसी और आईसीआईसीआई बैंक की दो महिला कर्मचारी सहित चार लोग शामिल थेजो साइबर ठगों को खातों की डिटेल उपलब्ध कराते थे।
ये सावधानी बरतें
बैंक में खाता खुलवाने के दौरान कई दस्तावेज जमा कराए जाते हैं। बैंकों की कार्यशैली ऑनलाइन होने के कारण ज्यादातर दस्तावेज को स्कैन करने के बाद रद्दी में फेंक दिए जाते हैं। ग्राहकों को चाहिए के वे अपने स्कैन दस्तावेज ही बैंक को उपलब्ध कराएं। साथ ही इस बात की पुष्टि कर ले की वे अपके खाते की फाइल में लगाए गए है या नहीं।
इन एप का होता है प्रयोग
हेलो, वी चैट, वीबो, शेयरइट, क्यूक्यू मेल, लिवयू, एपीयूएस एएमओआर, वीगो, मीटू, वीवा, एमआई, मेल मास्टर और वीमैट का प्रयोग करते है। इसके अलावा कुछ अन्य एप जैसे टीम व्हीवर, एनी डेस्क, इनसाइडर, इंस्टॉल बैंक ट्रैक ऑन एंड्रायड, फिंग नेटवर्क, डब्ल्यूपीएस और जांटी
चीन के एप का इस्तेमाल कर करते हैं डाटा हैक
साइबर ठगों के कुछ गिरोह आम लोगों को जिस तरह चीन के एप के जरिये ठगते है, उसी तरह के एप का प्रयोग कर बैंक व टेलीकॉम कंपनियों के कर्मचारियों के मोबाइल व डेस्कटॉप हैक कर लेते हैं। ऐसा मिलीभगत के चलते किया जाता है। इसके बाद डाटा हैक होने की जानकारी कर्मचारी अपने अधिकारियों को देता है ताकि एफआईआर दर्ज कराई जा सके। इससे कर्मचारी पर कोई संदेह नहीं करता। इसके बदले में साइबर ठगों के
एजेंट उसे तय रकम भी पहुंचाते हैं।
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