स्वतंत्रता का अर्थ केवल विदेशी अधीनता से मुक्ति नहीं, स्वदेशी तंत्र का निर्माण करना भी है – पराग अभ्यंकर जी

भुवनेश्वर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भुवनेश्वर महानगर द्वारा उत्कल विश्वविद्यालय के दीक्षांत ऑडिटोरियम में आयोजित युवा सम्मेलन के समापन सत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सेवा प्रमुख पराग अभ्यंकर ने कहा कि स्वतंत्रता का सच्चा अर्थ केवल विदेशी अधीनता से मुक्ति नहीं है, बल्कि अपनी उन्नति और राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए स्वदेशी […] The post स्वतंत्रता का अर्थ केवल विदेशी अधीनता से मुक्ति नहीं, स्वदेशी तंत्र का निर्माण करना भी है – पराग अभ्यंकर जी appeared first on VSK Bharat.

Nov 13, 2025 - 20:33
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स्वतंत्रता का अर्थ केवल विदेशी अधीनता से मुक्ति नहीं, स्वदेशी तंत्र का निर्माण करना भी है – पराग अभ्यंकर जी

भुवनेश्वर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भुवनेश्वर महानगर द्वारा उत्कल विश्वविद्यालय के दीक्षांत ऑडिटोरियम में आयोजित युवा सम्मेलन के समापन सत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सेवा प्रमुख पराग अभ्यंकर ने कहा कि स्वतंत्रता का सच्चा अर्थ केवल विदेशी अधीनता से मुक्ति नहीं है, बल्कि अपनी उन्नति और राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए स्वदेशी तंत्र का निर्माण करना भी है।

उन्होंने कहा कि 15 अगस्त, 1947 को स्वाधीनता मिल गई अर्थात् किसी की अधीनता से मुक्त हो गए, आजाद हो गए। अपने निर्णय लेने के लिए अंग्रेज वायसराय पर डिपेंडेंट नहीं थे, इसलिए हम इंडिपेंडेंट कहलाए। अपनी नियति डेस्टिनी का निर्णय करने के लिए सक्षम हो गए। परन्तु स्वतंत्रता का सच्चा अर्थ है अपनी वास्तविक उन्नति, लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अपना तंत्र निर्माण कर लेना। उन्होंने कहा कि आज भी हमारी पहचान “इंडिया दैट इज़ भारत” के रूप में होती है, जबकि केवल “भारत” या “हिंदुस्तान” नाम ही स्वीकार करना चाहिए था।

उन्होंने कहा कि हजारों वर्षों तक जिस शिक्षा, न्याय और आर्थिक नीति के तंत्र के माध्यम से हमने विश्वगुरु तथा सोने की चिड़िया का दर्जा प्राप्त किया था, उसे भूलकर गुलामी के दौर की ही शिक्षा, न्याय और आर्थिक नीति पर हमारा शासन तंत्र गत 75 वर्षों तक चला। अर्थात्, हमने अपने तंत्र को अपनाने के बजाय विदेशी तंत्र को स्वीकार किया। जब हम प्राचीन भारतीय नीतियों को अपनाएंगे, तभी हम वास्तव में स्वतंत्र कहलाएंगे। जब भारत अपने प्राचीन भारतीय नीतिगत तंत्र को पुनः स्थापित करेगा, तभी हम सच्चे अर्थों में स्वतंत्र कहलाएंगे।

भारत की विश्व के प्रति क्या भूमिका है, यह स्वामी विवेकानंद जी ने 1897 में लाहौर के भाषण में बताया था। उन्होंने स्वामी विवेकानंद के 1897 के लाहौर भाषण का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत की नियति विश्व बंधुत्व और शांति के जीवन मूल्यों को पूरे विश्व में फैलाने की है। इन जीवन मूल्यों को समाज के प्रत्येक व्यक्ति के भीतर जागृत करने की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा “जब त्याग और सेवा की भावना समाज तथा शासन – दोनों के तंत्र में प्रतिष्ठित होगी, तभी हम कह सकेंगे कि सच्चा स्वातंत्र्य प्राप्त हुआ है।”

उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाएं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ गत 100 वर्षों से इसी कार्य में लगा हुआ है। युवाओं की सहभागिता से इसे आगे बढ़ाना है।

उत्कल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. यज्ञेश्वर दण्डपाट समापन कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। इससे पहले सम्मेलन के उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि डॉ. श्रीकांत मिश्र ने कहा कि संघ अपने 100 वर्षों के कार्यकाल में अपने लक्ष्य की दिशा में निरंतर प्रगति कर रहा है। मुख्य वक्ता ओडिशा (पूर्व) प्रांत के बौद्धिक प्रमुख तन्मय महापात्र ने कहा कि भारत की महान संस्कृति, शिक्षा, इतिहास और स्वास्थ्य व्यवस्था के कारण विदेशों में भी प्रतिष्ठित थी। देश के निर्माण में युवाओं की भूमिका सदैव महत्वपूर्ण रही है और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान युवाओं का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा सदैव वैज्ञानिक रही है। जब संपूर्ण विश्व अंधकार में था, तब भारत का ज्ञान-विज्ञान विश्व को नया मार्ग दिखा रहा था।

“पंच परिवर्तन” विषय पर प्रश्न मंच का आयोजन किया गया, तथा स्वच्छता और पर्यावरण पर आधारित नाटकों का मंचन भी हुआ। युवा सम्मेलन में 1,700 से अधिक युवाओं ने भाग लिया। कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण था मनोज़ साहू का सैंड आर्ट प्रदर्शन। इसके अलावा, युवाओं ने देशभक्ति गीतों और नृत्य कार्यक्रमों में उत्साहपूर्वक भाग लिया।

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