संघ में महिलाओं की स्थिति

सम्पूर्ण हिन्दू समाज को संगठित करते समय महिलाओं का क्या? यह प्रश्न डॉ. हेडगेवार से एक महिला ने 1931 में पूछा। आप बात कर रहे हो हिन्दू समाज के संगठन की, लेकिन 50 प्रतिशत महिलाओं को तो वैसे ही छोड़ दिया आपने। तब डॉ. हेडगेवार ने उनको कहा कि आपकी बात बिल्कुल ठीक है, परंतु […] The post संघ में महिलाओं की स्थिति appeared first on VSK Bharat.

Aug 1, 2025 - 16:53
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संघ में महिलाओं की स्थिति

सम्पूर्ण हिन्दू समाज को संगठित करते समय महिलाओं का क्या? यह प्रश्न डॉ. हेडगेवार से एक महिला ने 1931 में पूछा। आप बात कर रहे हो हिन्दू समाज के संगठन की, लेकिन 50 प्रतिशत महिलाओं को तो वैसे ही छोड़ दिया आपने। तब डॉ. हेडगेवार ने उनको कहा कि आपकी बात बिल्कुल ठीक है, परंतु आज वातावरण ऐसा नहीं है कि पुरुष जाकर महिलाओं में काम करें। इससे कई प्रकार

की गलतपफहमियों को मौका मिलता है। कोई महिला अगर काम करने को जाती है तो हम उसकी पूरी मदद करेंगे। तब उस महिला ने इसी प्रकार चलने वाला एक ‘राष्ट्र सेविका समिति’ नाम का संगठन चलाया। आज वह भी भारतव्यापी संगठन बन गया है। संघ के संस्कारों की कार्यपद्धति पुरुषों के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में, महिलाओं के लिए राष्ट्र सेविका समिति में, ये दोनों समानांतर चलेंगे। एक-दूसरे के कार्यक्षेत्र में काम नहीं करेंगे, एक-दूसरे की हमेशा मदद करके चलेंगे। ये उस समय तय हुआ। अगर इसको बदलना है तो दोनों तरफ लगना चाहिए कि इसको बदलना है, तब वह होगा, नहीं तो नहीं होगा, ऐसे ही चलेगा। परंतु संघ के स्वयंसेवक जो अन्य काम करते हैं, छोटे-बड़े सेवा प्रकल्प चलते हैं।

तो उसमें महिला, पुरुष सभी काम करते हैं। संघ कोई संन्यासियों का संगठन नहीं है। अधिकांश स्वयंसेवक गृहस्थ कार्यकर्ता हैं। घरों में आना-जाना रहता है। हमारी माताएँ, बहनें अपनी-अपनी जगह से भी बहुत मदद सीधे संघ के कार्य को करती हैं। इतने सारे विविध कार्य चलते हैं, उसमें महिलाएँ आई हैं और आगे भी आएंगी। (भविष्य का भारत व्याख्यानमाला 2018)

यह व्यवस्था बनी कि महिलाओं में व्यक्ति निर्माण और समाज संगठन का काम राष्ट्र सेविका समिति के द्वारा ही होगा। जब राष्ट्र सेविका समिति कहेगी कि संघ भी महिलाओं में यह काम करे, तभी हम उसमें जाएंगे। दूसरी बात है कि संघ की शाखा का कार्यक्रम पुरुषों के लिए है। उन कार्यक्रमों को देखने के लिए महिलाएं आ सकती हैं और आती भी हैं। परन्तु संघ का कार्य केवल कार्यकर्ताओं के भरोसे नहीं चलता। हमारी माता-बहनों का हाथ लगता है, तभी संघ चलता है। संघ के स्वयंसेवक के घर में जितनी भी महिलाएं हैं, उतनी महिलाएं संघ में हैं। विभिन्न संगठनों में भी महिलाएं संघ के स्वयंसेवकों के साथ मिलकर काम करती हैं। संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में भी उनका प्रतिनिधित्व और सक्रिय सहभागिता है। इन महिलाओं ने पहली बार भारत के महिला जगत का व्यापक सर्वेक्षण किया, जिसको शासन ने भी स्वीकारा है। उन्हीं के द्वारा पिछले वर्ष सारे देश में बहुत बड़े महिला सम्मलेन हुए, जिनमें लाखों महिलाओं ने भाग लिया। इन सब कार्यों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का समर्थन व सहयोग रहा। हम यह मानते हैं कि महिलाओं का उद्धार पुरुष नहीं कर सकते। महिलाएं स्वयं अपना उद्धार करेंगी, उसमें सबका उद्धार हो जाएगा। इसलिए हम उन्हीं को प्रमुखता देते हैं और जो वे करना चाहती हैं, उसके लिए उनको सशक्त बनाते हैं। (शताब्दी वर्ष साक्षात्कार सरसंघचालक जी)

ये संघ की कार्यपद्धति है और संघ सम्पूर्ण समाज को संगठित करना चाहता है, इसमें संघ के लिए पराया कोई नहीं। जो आज हमारा विरोध करते हैं, वे भी हमारे हैं। यह हमारा पक्का है। उनके विरोध से हमारी क्षति न हो इतनी चिंता हम जरूर करेंगे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नाते सबको जोड़ने का हमारा प्रयास है और सबको बुलाने का भी हमारा प्रयास रहता है। आखिर किसी को विरोध भी करना है तो वस्तुस्थिति के आधार पर हो। बस इतनी बात है।

(सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी)

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