साधु के भेष में 13 साल बाद लौटा बेटा, मां ने एक नजर में पहचाना; सड़क पर लिपटकर रोने लगी

उत्तर प्रदेश के जौनपुर में एक ऐसा चमत्कार हुआ जिसने मां की ममता को अमर कर दिया. 13 साल से लापता बेटा जब साधु बनकर मां से भिक्षा मांगने पहुंचा, तो मां ने बिना झिझक उसे पहचान लिया. भावुक लम्हों में बेटा मां से लिपटकर फूट-फूटकर रोने लगा.

Jul 18, 2025 - 06:30
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साधु के भेष में 13 साल बाद लौटा बेटा, मां ने एक नजर में पहचाना; सड़क पर लिपटकर रोने लगी
साधु के भेष में 13 साल बाद लौटा बेटा, मां ने एक नजर में पहचाना; सड़क पर लिपटकर रोने लगी

जिंदगी कभी-कभी इंसान को ऐसे मोड़ पर लाती है जो किसी चमत्कार से कम नहीं होता. वक्त सालों के सारे दुखों को एक झटके में भर देता है. ऐसा ही एक मामला उत्तर प्रदेश के जौनपुर में देखने को मिला है, जहां 13 साल साल से लापता बेटा साधु बनकर जब मां से भिक्षा मांगने पहुंचा तो मां ने बिना देरी किए ही उसे पहचान लिया. पहले तो साधु ने मना किया, लेकिन मां और भाइयों की ममता के आगे खुद को रोक नहीं सका. 13 साल बाद वह बाद परिवार से मिलकर फूट फूटकर रोने लगा.

ये पूरा मामला जौनपुर के चंदवक थाना क्षेत्र के बलरामपुर गांव का है. इसी गांव का रहने वाले मुखई राम का 18 जनवरी 2012 को निधन हो गया था. पति के निधन के बाद पत्नी किसी तरह तीन बेटों को लेकर जीवन यापन कर रही थी. उस समय बड़े बेटे राकेश की उम्र 19 साल थी. पिता की मौत के कुछ दिन बाद ही राकेश घर से लापता हो गया. बड़े बेटे के लापता होने पर मां के ऊपर दुखों की दोहरी मार पड़ गई.

नहीं टूटी थी मां की उम्मीदें

बेबस मां अपने बेटे को ढूंढती रही, लेकिन काफी प्रयास के बाद भी राकेश का पता कहीं नहीं चल सका. इसके बाद मंजेश और बृजेश ही बेबस मां का सहारा बचे. दूसरा बेटा बृजेश घर रहकर मां का सहारा बना जबकि छोटा बेटा मंजेश पुणे जाकर परिवार के जीवन यापन के लिए नौकरी करने लगा.कहते हैं कि अगर अटूट भरोसा हो तो ईश्वर चमत्कार करता है. बड़े बेटे के लापता होने के बाद भी मां की उम्मीद नहीं टूटी, हमेशा भगवान से बेटे के लिए मां की प्रार्थना जारी रही.

13 साल साधु बनकर लौटा बेटा

तेरह साल बाद बेटा साधु के वेश में उसी मां से भिक्षा मांगने पहुंच गया जिसकी विरह में मां इतने दिनों से तड़प रही थी. घर के सामने भिक्षा मांगने पहुंचे बड़ी बड़ी दाढ़ी, बाल में साधु की आंखों में देखते ही मां की ममता ने उसे एक नजर में ही पहचान लिया. मां ने साधु को देखते ही उससे बोला कि राकेश तुम, तो साधु कुछ देर के लिए सन्न रह गया. फिर बोला, मैं राकेश नहीं हूं. आपको जरूर कोई गलतफहमी हुई है. लेकिन मां अपने बेटे को न पहचान सके ऐसा भला कहां हो सकता है.

हालांकि, साधु वहां से तुरंत आगे की तरफ बढ़ा और निकल गया. तेरह साल पुराना मां का दर्द फिर ताजा हो गया. अपने बेटे के लिए मां फिर से बिलखने लगी. कुछ लोगों ने बताया कि इस साधु को गाजीपुर जिले के अमेना गांव (ननिहाल) में भी देखा गया था. बुधवार को वहीं साधु चंदवक बाजार के दुर्गा मंदिर और रामलीला मंच के पास कुछ लोगों को बैठा दिखाई दिया. जैसे ही ये सूचना मां को मिली, मां तुरंत अपने साथ दूसरे बेटे बृजेश को लेकर वहां पहुंच गई.

मां के गले लगकर रोया साधु बेटा

मां को आता देख साधु वहां से आगे बढ़ने लगा, लेकिन मां भी अपने 13 साल पहले लापता बेटे के लिए उसका पीछा करती रही. आगे जाकर जब स्थानीय लोगों की मदद से उसे रोका गया, तो मां ने कहा तुम मेरे राकेश हो. फिर क्या, साधु के आगे मां को रोता देख आसपास के लोग भी इकट्ठा हो गए. हालांकि, मां और भाई की ममता और उनके आंसुओं के आगे साधु खुद को रोक नहीं सका. थोड़ी देर बाद मां से गले लगकर खुद राकेश जोर-जोर से रोने लगा.

राकेश नहीं कर रहा बात

इसे देखते ही वहां भारी भीड़ जमा हो गई. हालांकि, 13 साल बाद अपने खोए हुए बेटे को पाकर मां की आंखों में खुशी के आंसू बरसने लगे. राकेश को लेकर मां घर लौटी. क्षेत्र में यह बात आग की तरह फैल गई. राकेश को देखने के लिए आस पास के लोग उसके घर पहुंच रहे हैं. हर कोई इसे ईश्वर का चमत्कार बता रहा है. हालांकि, घर जाने के बाद राकेश मौन है, किसी से कोई बातचीत नहीं कर रहा है.

राकेश अपनी मां से मिलने के बाद अभी तक यह भी नहीं बता पाया है कि आखिर वह कैसे लापता हुआ और साधु कैसे बना? फिलहाल, परिवार वालों का ये प्रयास है कि राकेश दोबारा अपने सामान्य जीवन में लौट आए और अपनी बेबस विधवा मां का सहारा बने. जौनपुर की इस घटना ने एक बात तो साफ कर दिया कि मां की ममता, समय और वेशभूषा से बढ़कर होती है. हर परिस्थिति में एक मां अपने जिगर के टुकड़े को पहचान लेती है. जैसे तेरह साल बाद साधु के वेश में दिखाई देने पर राकेश को उसकी मां ने पहचान लिया.

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