भारतीय सभ्यता भौतिक सुख के लिए नहीं,  मानव कल्याण के लिए ज्ञान का सृजन करती है – दत्तात्रेय होसबाले जी

केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में ग्रन्थ प्रकाशनोत्सव में 43 नवीन ग्रन्थों का लोकार्पण नई दिल्ली, 05 दिसंबर। केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में शुक्रवार को ग्रन्थ प्रकाशनोत्सव सम्पन्न हुआ। समारोह के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी थे। कार्यक्रम का शुभारम्भ कुलपति प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी, कुलसचिव प्रो. आर. जी. मुरलीकृष्ण तथा प्रकाशन विभाग के […] The post भारतीय सभ्यता भौतिक सुख के लिए नहीं,  मानव कल्याण के लिए ज्ञान का सृजन करती है – दत्तात्रेय होसबाले जी appeared first on VSK Bharat.

Dec 7, 2025 - 21:05
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भारतीय सभ्यता भौतिक सुख के लिए नहीं,  मानव कल्याण के लिए ज्ञान का सृजन करती है – दत्तात्रेय होसबाले जी

केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में ग्रन्थ प्रकाशनोत्सव में 43 नवीन ग्रन्थों का लोकार्पण

नई दिल्ली, 05 दिसंबर। केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में शुक्रवार को ग्रन्थ प्रकाशनोत्सव सम्पन्न हुआ। समारोह के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी थे। कार्यक्रम का शुभारम्भ कुलपति प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी, कुलसचिव प्रो. आर. जी. मुरलीकृष्ण तथा प्रकाशन विभाग के निदेशक प्रो. काशीनाथ न्योपाने द्वारा ध्यानमंदिरम् में वैदिक पूजा अर्चना के साथ हुआ।

मुख्य अतिथि दत्तात्रेय होसबाले जी ने विश्वविद्यालय के प्रकाशन विभाग द्वारा सम्पादित 43 नवीन संस्कृत ग्रन्थों का लोकार्पण किया। उन्होंने कहा कि यह केवल ग्रन्थ विमोचन का कार्यक्रम नहीं, बल्कि भारतीय ज्ञान यज्ञ का उत्सव है। सामान्यतः वे किसी भी ग्रन्थ का विमोचन पढ़े बिना नहीं करते, परंतु विश्वविद्यालय, संस्कृत और भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रति सम्मान के कारण आज मैंने अपने नियम में अपवाद किया है; श्रेष्ठ कार्य में नियम का उल्लंघन भी पुण्य होता है। उन्होंने प्रो. काशीनाथ न्योपाने की विद्वत्ता की सराहना करते हुए कहा कि मीमांसा न्याय भूषण जैसी गम्भीर, मौलिक और दुर्लभ रचना प्रस्तुत करना अत्यंत प्रशंसनीय है। एक साथ 43 ग्रन्थों का प्रकाशन विश्वविद्यालय की शोध परंपरा की शक्ति का प्रमाण है।

सरकार्यवाह जी ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा केवल शास्त्रीय अध्ययन तक सीमित नहीं, बल्कि यह मानवता के नैतिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक विकास का आधार है। ज्ञान निरंतर विकसित होने वाली सत्ता है। प्रत्येक पीढ़ी के लिए नए ज्ञान का सृजन आवश्यक है। विश्वविद्यालयों को वैचारिक नेतृत्व, नवाचार और अनुसंधान के केंद्र बनना होगा। नई शिक्षा नीति (NEP) की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि “NEP भारतीय आचार संस्कार, जीवन मूल्यों और मानव हितकारी ज्ञान परंपरा को शिक्षा के केंद्र में पुनः स्थापित करती है। भारतीय सभ्यता भौतिक सुख के लिए नहीं, बल्कि मानवता के कल्याण के लिए ज्ञान का सृजन करती है।

उन्होंने कहा कि इतिहास के कुछ कालखंडों में भारत की बौद्धिक परंपरा बाधित हुई, परंतु आज भारत के सामने स्वर्णिम अवसर है। भारत वह भूमि है, जिसमें नया ज्ञान, नवोन्मेष और आध्यात्मिक दिशा देने की अद्भुत क्षमता है। यह पृथ्वी मानवता के लिए नैतिक व्यवस्था और आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करने में समर्थ है। केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय भारतीय ज्ञान परंपरा के पुनरुत्थान में ऐतिहासिक भूमिका निभा रहा है। इनके योगदान से भारत पुनः विश्वगुरु बनने की दिशा में अग्रसर है। समारोह की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी ने कहा कि विश्वविद्यालय का ध्येय पारम्परिक संस्कृत अध्ययन को आधुनिक शोध, नवाचार एवं समाजोपयोगी अध्ययनों से जोड़कर नई ऊँचाइयों तक ले जाना है। आज लोकार्पित ग्रंथ प्रो. काशीनाथ न्योपाने और विश्वविद्यालय के विद्वानों के गहन अनुसंधान और समर्पण का फल है। कुलसचिव प्रो. आर. जी. मुरलीकृष्ण ने विश्वविद्यालय के शैक्षणिक, डिजिटल एवं नवाचारी प्रयासों की जानकारी दी। प्रकाशन विभाग के निदेशक प्रो. काशीनाथ न्योपाने ने अमृत महोत्सव के अंतर्गत प्रकाशित 43 ग्रंथों का क्रमवार परिचय दिया और बताया कि अमृत ग्रन्थ माला में अब तक 72 ग्रंथ प्रकाशित किए जा चुके हैं।

ये प्रमुख ग्रंथ हुए प्रकाशित

  1. श्रीपाशुपतसूत्रम्, 2बौद्धदर्शनभूमिः, 3. बृहद्धर्मपुराणम्, 4. भारतसारः (अनुवाद–सहित), 5. प्रातिमोक्षसूत्रम्, 6. षड्दर्शनसमुच्चयः, 7. गणकारिका, 8. मीमांसा तर्कभाषा, 9. मीमांसा पदार्थविज्ञानम्, 10. स्वयम्भूपुराणम्, 11. श्रीसन्तोषीमातृपुराणम् हिन्दी अंग्रेज़ी नेपाली अनुवाद सहित, 12. भाषाकौशलम् आदि।

कार्यक्रम का संचालन निदेशक केंद्रीय योजना प्रो.मधुकेश्वर भट्ट ने किया।

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