साधना से निकले नए संकल्प
रैलियों में, रोड शो में देखे हुए अनगिनत चेहरे मेरी आंखों के सामने आ रहे थे।.. मैं सब कुछ आत्मसात कर रहा था। मेरी आंखें नम हो रही थीं
साधना से निकले नए संकल्प
अ मृतकाल के इस प्रथम लोकसभा चुनाव में मैंने प्रचार अभियान 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणास्थली मेरठ से शुरू किया। मां भारती की परिक्रमा करते हुए इस चुनाव की मेरी आखिरी सभा पंजाब के होशियारपुर में हुई। संत रविदास जी की तपोभूमि, हमारे गुरुओं की भूमि पंजाब में आखिरी सभा होने का सौभाग्य भी बहुत विशेष है। इसके बाद मुझे कन्याकुमारी में भारत माता के चरणों में बैठने का अवसर मिला।
शुरुआती पलों में चुनाव का कोलाहल मन-मस्तिष्क में गूंज रहा था। रैलियों में, रोड शो में देखे हुए अनगिनत चेहरे मेरी आंखों के सामने आ रहे थे।.. मैं सब कुछ आत्मसात कर रहा था। मेरी आंखें नम हो रही थीं... मैं शून्यता में जा रहा था, साधना में प्रवेश कर रहा था। कुछ ही क्षणों में राजनीतिक वाद-विवाद, वार-पलटवार... आरोपों के स्वर और शब्द, वह सब अपने आप शुन्य में समाते चले गए। मेरे मन में विरक्ति का भाव और तीव्र हो गया... मेरा मन बाह्य जगत से अलिप्त हो गया। इतने बड़े दायित्वों के बीच ऐसी साधना कठिन होती है, लेकिन कन्याकुमारी की भूमि और स्वामी विवेकानंद की प्रेरणा ने इसे सहज बना दिया। मैं सांसद के तौर पर अपना चुनाव भी अपनी काशी के मतदाताओं के चरणों में छोड़कर यहां आया था। मैं ईश्वर का भी आभारी हूं कि उन्होंने मुझे जन्म से ये संस्कार दिए। कन्याकुमारी के उगते हुए सूर्य ने मेरे विचारों को नई ऊंचाई दी, सागर की विशालता ने मेरे विचारों को विस्तार दिया। ऐसा लग रहा था, जैसे दशकों पहले हिमालय की गोद में किए गए चिंतन और अनुभव पुनर्जीवित हो रहे हों। कन्याकुमारी में विवेकानंद शिला स्मारक का निर्माण श्री एकनाथ रानाडे जी ने करवाया था। एकनाथ जी के साथ मुझे काफी भ्रमण करने का मौका मिला था।
कश्मीर से कन्याकुमारी... ये हर देशवासी के अंतर्मन में रची-बसी हमारी साझी पहचान है। यह वह शक्तिपीठ है जहां मां शक्ति ने कन्या कुमारी के रूप में अवतार लिया था। यहां विवेकानंद शिला स्मारक के साथ ही संत तिरुवल्लुवर की विशाल प्रतिमा, गांधी मंडपम और कामराजर मणि मंडपम हैं। संत तिरुवल्लुवर की रचना 'तिरुक्कुरल' तमिल साहित्य के रत्नों से जड़ित एक मुकुट के जैसी है।
भारत हजारों वर्षों से विचारों के अनुसंधान का केंद्र रहा है। हमने जो अर्जित किया उसे कभी अपनी व्यक्तिगत पूंजी मानकर आर्थिक या भौतिक मापदंडों पर नहीं तौला। इसीलिए, 'इदं न मम' यह भारत के चरित्र का सहज एवं स्वाभाविक हिस्सा हो गया है। अभी कोरोना के कठिन कालखंड का उदाहरण भी हमारे सामने है। जब गरीब परफार्म करती है और फिर जब जनता इससे जुड़ जाती है, तो हम ट्रांसफार्मेशन होते हुए देखते हैं। कन्याकुमारी स्थित विवेकानंद राक मेमोरियल में साधनारत प्रधानमंत्री मोदी।
और विकासशील देशों को लेकर आशंकाएं व्यक्त की जा रही थीं, लेकिन, भारत के सफल प्रयासों से तमाम देशों को हौसला भी मिला और सहयोग भी मिला। आज भारत का गवर्नेस माडल दुनिया के कई देशों के लिए एक उदाहरण बना है। सिर्फ 10 वर्षों में 25 करोड़ लोगों का गरीबी से बाहर निकलना अभूतपूर्व है। गरीब के सशक्तीकरण से लेकर समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति को प्राथमिकता देने के हमारे प्रयासों ने विश्व को प्रेरित किया है।
भारत का डिजिटल इंडिया अभियान आज पूरे विश्व के लिए एक उदाहरण है। बड़ी वैश्विक संस्थाएं कई देशों को हमारे माडल से सीखने की सलाह दे रही हैं। आज भारत की प्रगति और भारत का उत्थान केवल भारत के लिए बड़ा अवसर नहीं है। यह पूरे विश्व में हमारे सभी सहयात्री देशों के लिए भी एक ऐतिहासिक अवसर है। जी-20 की सफलता के बाद से विश्व भारत की इस भूमिका को और अधिक मुखर होकर स्वीकार कर रहा है। आज भारत को ग्लोबल साउथ की एक सशक्त और महत्वपूर्ण आवाज के रूप में स्वीकार किया जा रहा है।
भारत की ही पहल पर अफ्रीकी संघ जी-20 समूह का हिस्सा बना। नए भारत का यह स्वरूप हमें गर्व और गौरव से भर देता है। अब एक भी पल गंवाए बिना हमें बड़े दायित्वों और बड़े लक्ष्यों की दिशा में कदम उठाने होंगे। हमें नए स्वप्न देखने हैं। हमें भारत के विकास को वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देखना होगा और इसके लिए यह जरूरी है कि हम भारत के अंतर्भूत सामर्थ्य को समझें। हमें भारत की शक्तियों को स्वीकार भी करना होगा, उन्हें पुष्ट भी करना होगा और विश्व हित में उनका संपूर्ण उपयोग भी करना होगा। आज की वैश्विक परिस्थितियों में युवा राष्ट्र के रूप में भारत की सामर्थ्य हमारे लिए एक ऐसा सुखद संयोग और सुअवसर है, जहां से हमें पीछे मुड़कर नहीं देखना है। हमें जीवन में हर क्षेत्र में रिफार्म की दिशा में आगे बढ़ना होगा। हमारे रिफार्म 2047 के विकसित भारत के संकल्प के अनुरूप भी होने चाहिए। यह भी समझना होगा कि रिफार्म कभी एकाकी प्रक्रिया नहीं हो सकती। इसीलिए, मैंने रिफार्म, परफार्म और ट्रांसफार्म का विजन सामने रखा। रिफार्म का दायित्व नेतृत्व का होता है। उसके आधार पर हमारी ब्यूरोक्रेसी भारत को विकसित भारत बनाने के लिए हमें श्रेष्ठता को मूल भाव बनाना होगा।
चारों दिशाओं में तेजी से काम करना होगा। हमें मैन्यूफैक्चरिंग के साथ-साथ क्वालिटी पर जोर देना होगा। हमें हर पल इस पर गर्व होना चाहिए कि ईश्वर ने हमें भारत की सेवा और इसकी शिखर यात्रा में हमारी भूमिका निभाने के लिए चुना है। हमें प्राचीन मूल्यों को आधुनिक स्वरूप में अपनाते हुए अपनी विरासत को आधुनिक ढंग से पुनर्परिभाषित करना होगा। हमें एक राष्ट्र के रूप में पुराने पड़ चुके सोच और मान्यताओं का परिमार्जन भी करना होगा। हमें हमारे समाज को पेशेवर निराशावादियों के दबाव से बाहर निकालना है। हमें याद रखना है कि नकारात्मकता से मुक्ति, सफलता की सिद्धि तक पहुंचने के लिए पहली जड़ी-बूटी है। सकारात्मकता की गोद में ही सफलता पलती है। स्वामी विवेकानंद ने 1897 में कहा था कि हमे अगले 50 वर्ष केवल राष्ट्र के लिए समर्पित करने होंगे। उनके इस आह्वान के ठीक 50 वर्ष बाद 1947 में भारत आजाद हो गया।
आज हमारे पास वैसा ही एक स्वर्णिम अवसर है। इस अवसर पर हम अगले 25- वर्ष केवल और केवल राष्ट्र की प्रगति एवं उत्थान के लिए पूर्ण रूप से समर्पित करें। हमारे ये प्रयास आने वाली पीढ़ियों और आने वाली शताब्दियों के लिए नए भारत की सुदृढ़ नींव बनकर अमर रहेंगे। मैं देश की ऊर्जा को देखकर यह कह सकता हूं कि लक्ष्य अब दूर नहीं है। आइए, तेज कदमों से चलें... मिलकर चलें, भारत को विकसित राष्ट्र बनाएं।
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