जे. सुब्रह्मण्यम अय्यर G. Subramania Iyer
सुब्रह्मण्यम अय्यर अपने परिवार के सात पुत्रों में से एक थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा तिरुवैयर तालुका स्कूल में की। इसके बाद वह एस.पी.जी. मिशन स्कूल तंजावुर में पढ़ने गए
प्रारम्भिक जीवन, छात्र जीवन एवं अध्यापक कार्य
जे. सुब्रह्मण्यम अय्यर का जन्म 19 जनवरी 1855 को मद्रास प्रांत, जिसे अब तमिलनाडु कहते हैं, के तंजावुर जिले के तिरुवैयर नामक स्थान में हुआ था। तिरुवैयर कावेरी नदी के तट पर स्थित है और दक्षिण भारत के पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है। उनके पिता गणपति अय्यर एक एडवोकेट थे। वह एक मुंसिफ (जज) के समक्ष मामलो पर बहस करते थे और उनके मुवक्किल तथा मित्र उनका बहुत सम्मान करते थे। वह आदर्शवादी, धार्मिक और परम्परावादी व्यक्ति थे और उनके इन गुणों का स्पष्ट प्रभाव युवा सुब्रह्मण्यम अय्यर के मन पर पड़ना स्वाभाविक था। कालांतर में, सुब्रह्मण्यम अय्यर ने अपने धर्म परिवर्तन की अपेक्षा हिंदू समाज को उसी के दायरे में सुधारने के प्रयास किए।
सुब्रह्मण्यम अय्यर अपने परिवार के सात पुत्रों में से एक थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा तिरुवैयर तालुका स्कूल में की। इसके बाद वह एस.पी.जी. मिशन स्कूल तंजावुर में पढ़ने गए और 1869 में मद्रास विश्वविद्यालय की मैट्रिकुलेशन परीक्षा उत्तीर्ण की। दो वर्ष बाद उन्होंने एम.पी.जी. कॉलेज से प्रथम कला परीक्षा पास की। यह कॉलेज, जो अब पीटर्स कॉलेज के नाम से जाना जाता है, अब हाई स्कूल है, किन्तु इसने तंजावुर में शिक्षा प्रसार के लिए बहुत योगदान दिया है। सुब्रह्मण्यम अय्यर को प्रसिद्ध शिक्षकों मार्श, क्रिघटन और श्रीनिवास राघव अयंगर के अधीन शिक्षा प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। ये तीनों उच्च कोटि के विद्वान और महान चरित्रवान व्यक्ति थे। यह भी उल्लेखनीय है कि श्रीनिवास राघव अयंगर, एल. कस्तूरी रंगा अयंगर के बड़े भाई थे, जिन्होंने 'हिन्दू' का सम्पादक बनने के लिए सुब्रह्मण्यम अय्यर के पदचिन्हों का अनुसरण किया।
दुर्भाग्यवश, सुब्रह्मण्यम ने 13 वर्ष की अल्पायु में ही अपने पिता को खो दिया। उनकी मां धमंबिल ने ध्यानपूर्वक परिवार की देखभाल की और उनके बच्चों को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। सुब्रह्मण्यम अय्यर के प्रारंभिक जीवन और शिक्षा ने उनके भविष्य की नींव रखी और उन्हें एक महान विद्वान और समाज सुधारक बनने में मदद की।
प्रारम्भिक जीवन एवं अध्यापक कार्य
सुब्रह्मण्यम अय्यर की आर्थिक समस्याओं से छुटकारा पाने में मीनाक्षी से उनके प्रसन्नतापूर्वक विवाह ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके बाद, बिना किसी संकोच के, उन्होंने 1874 में नॉर्मल स्कूल में शिक्षक प्रशिक्षण के लिए मद्रास का रुख किया। वहाँ उन्होंने उत्कृष्ट कार्य किया और प्रधानाध्यापक जॉर्ज बाइकिल, जो विद्यालयों के निरीक्षक और बाद में मद्रास विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार बने, पर अच्छा प्रभाव डाला।
प्रशिक्षण के उपरांत, सुब्रह्मण्यम अय्यर 1875 में चर्च ऑफ स्कॉटलैंड मिशन इंस्टीट्यूट में 45 रुपये प्रतिमाह के वेतन पर शिक्षक बने। उन्होंने वहाँ 1877 तक कार्य किया। इसके बाद उन्होंने पचैयप्पा कॉलेज में कार्य किया। इस कॉलेज में शिक्षक के रूप में कार्य करते हुए उन्होंने स्वतंत्र विद्यार्थी के रूप में बी.ए. की डिग्री प्राप्त की। 25 वर्ष की आयु से कम में ही उन्हें एंग्लोवर्नाक्युलर स्कूल (जो अब हिन्दू हाई स्कूल, विप्लिकेन के नाम से जाना जाता है) का प्रधानाध्यापक बनाया गया। यह उनके उच्च योग्यता और ओजस्विता का प्रमाण था।
सुब्रह्मण्यम अय्यर शिक्षण कार्य को बहुत पसंद करते थे और यह चाहते थे कि किसी को भी शिक्षा से वंचित न रखा जाए। समाज सुधार की उनकी उत्कट इच्छा, जो आगे चलकर उनके जीवन में स्पष्ट हुई, उनके विचारों और भावनाओं को पहले ही प्रभावित कर रही थी। उनके उदार दृष्टिकोण ने सभी सांप्रदायिक और जातिगत भेदभावों को अस्वीकार कर दिया। वह योग्य और जरूरतमंद छात्रों को नि:शुल्क शिक्षा देने के इच्छुक थे।
1888 में, विप्लिकेन में आर्यन हाई स्कूल की स्थापना में उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई। इस स्कूल में जातिगत भेदभाव के बिना हिंदू और मुसलमान दोनों को प्रवेश मिलता था। उन्होंने उन छात्रों के लिए रात्रि स्कूल भी शुरू किए जो दिन की कक्षाओं में उपस्थित नहीं हो सकते थे। वह युवा पीढ़ी के नैतिक स्तर को उठाने और उनके सदाचरण पर सबसे अधिक ध्यान देते थे। यह बात 25 नवम्बर 1892 के 'हिन्दू' में छपी उनकी अपील में देखी जा सकती है:
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**आर्यन हाई स्कूल, विप्लिकेन से लगा हुआ एक पुस्तकालय एवं अध्ययन कक्ष है। इस संस्थान के छात्र एवं शिक्षक इसका उपयोग कर सकते हैं। आज के युग में पुस्तकालय स्थापित करना और इसके लिए निधि संचय करना दान का सर्वोत्तम दिव्य रूप है। अतः, उक्त पुस्तकालय का प्रबंधक बड़े ही विश्वास से उदार हृदय वाले दानदाताओं से अपील करता है कि वे पुस्तकें या धनराशि भेजकर पुस्तकालय को समृद्ध बनाने में अपना योगदान दें। पुस्तकों के पार्सलों पर लगने वाला डाक-व्यय प्रबंधक स्वयं वहन करेगा।"
सुब्रह्मण्यम अय्यर ने अपने जीवन में शिक्षा और समाज सुधार को महत्वपूर्ण माना। उनकी इस अपील में उनके शिक्षा के प्रति समर्पण और सभी वर्गों को शिक्षा के अवसर प्रदान करने की उनकी उत्कट इच्छा स्पष्ट दिखाई देती है। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि कैसे एक व्यक्ति अपने ज्ञान, समर्पण और उदारता से समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है।
प्रारम्भिक जीवन एवं अध्यापक कार्य
सुब्रह्मण्यम अय्यर ने शिक्षा और समाज सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने मीनाक्षी से विवाह कर अपनी वित्तीय समस्याओं से छुटकारा पाया और 1874 में नॉर्मल स्कूल में शिक्षक प्रशिक्षण के लिए मद्रास चले गए। वहाँ उन्होंने प्रधानाध्यापक जॉर्ज बाइकिल पर अच्छा प्रभाव डाला, जो बाद में मद्रास विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार बने।
प्रशिक्षण के उपरांत, सुब्रह्मण्यम अय्यर 1875 में चर्च ऑफ स्कॉटलैंड मिशन इंस्टीट्यूट में शिक्षक बने, जहाँ उन्होंने 1877 तक कार्य किया। इसके बाद उन्होंने पचैयप्पा कॉलेज में शिक्षक के रूप में कार्य किया और स्वतंत्र विद्यार्थी के रूप में बी.ए. की डिग्री प्राप्त की। 25 वर्ष की आयु से कम में ही उन्हें एंग्लोवर्नाक्युलर स्कूल (अब हिन्दू हाई स्कूल, विप्लिकेन) का प्रधानाध्यापक बनाया गया, जो उनके उच्च योग्यता और ओजस्विता का प्रमाण था।
सुब्रह्मण्यम अय्यर का शिक्षण कार्य
सुब्रह्मण्यम अय्यर शिक्षण कार्य को बहुत पसंद करते थे और यह चाहते थे कि किसी को भी शिक्षा से वंचित न रखा जाए। समाज सुधार की उनकी उत्कट इच्छा उनके विचारों और भावनाओं को प्रभावित करती थी। उनके उदार दृष्टिकोण ने सांप्रदायिक और जातिगत भेदभाव को अस्वीकार कर दिया। वे योग्य और जरूरतमंद छात्रों को नि:शुल्क शिक्षा देने के इच्छुक थे।
आर्यन हाई स्कूल की स्थापना
1888 में, सुब्रह्मण्यम अय्यर ने विप्लिकेन में आर्यन हाई स्कूल की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस स्कूल में जातिगत भेदभाव के बिना हिंदू और मुसलमान दोनों को प्रवेश मिलता था। उन्होंने उन छात्रों के लिए रात्रि स्कूल भी शुरू किए जो दिन की कक्षाओं में उपस्थित नहीं हो सकते थे। वह युवा पीढ़ी के नैतिक स्तर को उठाने और उनके सदाचरण पर विशेष ध्यान देते थे। उनकी अपील में यह भावना स्पष्ट रूप से दिखाई देती है:
"जिसके लिए यह अपील की गई है, वह संस्थान विगत पांच वर्षों से चलाया जा रहा है। आर्यन स्कूल में, प्रसीडेंसी के स्कूलों के निर्धारित पाठ्यक्रम के अलावा बिना किसी भेदभाव के नैतिक व धार्मिक शिक्षा दी जाती है। यहां अपेक्षित उपकरण और सभी सुविधाओं से सुसज्जित व्यायामशाला में शारीरिक शिक्षा दी जाती है। इसे मद्रास शिक्षा विभाग द्वारा मान्यता प्राप्त है। इसमें अत्यधिक अनुपात में विद्यार्थियों को मुफ्त शिक्षा दी जाती है या आधी फीस ली जाती है। विद्यालय को दी गई सहायता से निर्धन छात्रों को नि:शुल्क शिक्षा दी जा सकेगी। पुस्तकें और दानराशि जी. सुब्रह्मण्यम अय्यर, प्रबंधक आर्य हाई स्कूल विप्लिकेन, मद्रास द्वारा सधन्यवाद ग्रहण की जाएगी।"
18 मई 1891 को, एक स्टाफ सदस्य के विदाई समारोह में सुब्रह्मण्यम अय्यर ने कहा कि वह लगभग 15 वर्षों से अध्यापक रहे हैं। यद्यपि उन्होंने स्पष्टतः दूसरा व्यवसाय अपना लिया था, फिर भी वह शिक्षा कार्य में रुचि रखते थे, क्योंकि एक पत्रकार के रूप में उनका कर्तव्य अपने देशवासियों के हृदय में ज्ञान और जागरूकता उत्पन्न करना था।
सुब्रह्मण्यम अय्यर ने आर्यन स्कूल को ईसाई मिशनरी को सौंप दिया और उनसे यह आश्वासन प्राप्त किया कि वे इसे उन्हीं व्यापक सिद्धांतों पर चलाते रहेंगे, जिन्हें पहले लागू किया जा चुका था। अब यह कैलेट हाई स्कूल के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार विप्लिकेन में दो प्रारंभिक शिक्षा संस्थान सुब्रह्मण्यम अय्यर के शिक्षाविद् के रूप में किए गए कार्य के परिचायक रहेंगे।
पचैयप्पा कॉलेज में अध्यापन कार्य करते हुए सुब्रह्मण्यम अय्यर का परिचय एम. बी. राघवाचारियर से हुआ, जो बी.ए. कक्षा के छात्र थे। यह परिचय शीघ्र ही गहरी मित्रता में बदल गया। आगे चलकर उन्होंने साथ मिलकर 'हिन्दू' पत्र का श्रीगणेश किया।
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