टीबी मुक्त भारत के लिए जांच-इलाज और संक्रमण रोकथाम दोनों अहम

Both testing treatment and infection prevention are important for TB-free India, टीबी मुक्त भारत के लिए जांच-इलाज और संक्रमण रोकथाम दोनों अहम,

Jan 23, 2025 - 17:58
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टीबी मुक्त भारत के लिए जांच-इलाज और संक्रमण रोकथाम दोनों अहम

 

शोभा शुक्ला – सीएनएस

 

100 दिवसीय टीबी मुक्त भारत अभियान अत्यंत अहम है क्योंकि पहली बारदेश के आधे से अधिक जिलों मेंउन लोगों तक टीबी सेवाएं पहुँचाने का प्रयास हो रहा है जो प्रायः स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में रहते हैं और जिन्हें टीबी की सही जाँच और उचित इलाज नहीं मिल पाता। इनमें से जिन लोगों को टीबी नहीं है उनको टीबी बचाव हेतु सहायता दी जा रही है कि वह टीबी मुक्त रहें।

 

सरकार की विज्ञान-समर्थित नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव यह भी है कि सभी की एक्स-रे स्क्रीनिंग की जाएन कि केवल टीबी के लक्षण वाले लोगों की (क्योंकि टीबी के लगभग आधे मरीज लक्षण-विहीन होते हैं और भारत सरकार के राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय टीबी प्रसार सर्वेक्षणों में केवल चेस्ट एक्स-रे के माध्यम से ही उनमें टीबी का पता लगाया जा सका था)।

 

टीबी से पीड़ित लोगों को (जल्दी और सटीक रूप से) ढूंढना और उन्हें प्रभावी टीबी उपचार प्रदान करना टीबी के प्रसार को भी रोकता हैइसलिए उपचार सिर्फ़ उपचार ही नहीं बल्कि रोकथाम भी है।

 

इसके अलावा जिन लोगों में टीबी रोग नहीं पाया जाता उनका "लेटेंट टीबी" का टेस्ट करके उसका उपचार किया जा रहा है ताकि भविष्य में उन्हें टीबी न होने पाये। अनुमान है कि भारत की लगभग एक तिहाई आबादी में लेटेंट टीबी हो सकती है - जिसका अर्थ है कि उनके शरीर में टीबी बैक्टीरिया तो हैलेकिन सक्रिय टीबी रोग नहीं है। लेटेंट टीबी संक्रामक नहीं हैलेकिन लेटेंट टीबी के सक्रिय टीबी रोग में परिवर्तित होने का खतरा बना रहता है। सक्रिय टीबी रोग का हर रोगीलेटेंट टीबी वाले लोगों के इस बड़े समूह से आता है। इसीलिए यदि लेटेंट टीबी का इलाज हो जाए तो व्यक्ति को भविष्य में टीबी रोग होने की संभावना अत्यंत कम हो जाती है।

 

इस 100 दिवसीय टीबी मुक्त भारत अभियान के तहत जिन लोगों में टीबी होने का खतरा अधिक हैउन की टीबी जाँच अत्याधुनिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सक्षम अल्ट्रा-पोर्टेबल और हैंडहेल्ड एक्स-रे द्वारा की जा रही हैतथा जिन लोगों के एक्स-रे में टीबी होने की संभावना पायी जाती है उनका डायग्नोस्टिक परीक्षण (टीबी की पक्की जांच) विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुमोदित मॉलिक्यूलर टेस्ट के द्वारा हो रहा है।

 

धर्मशालाकांगड़ा जिलाहिमाचल का टीबी मुक्ति अभियान

 

हाल ही में सीएनएस ने हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा के जिला टीबी अधिकारी और कांगड़ा में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के जिला कार्यक्रम अधिकारी डॉ राजेश कुमार सूद से बातचीत की।

 

डॉ सूद इस बात से सहमत हैं कि 100 दिनों के अभियान से टीबी से पीड़ित अधिक लोगों को खोजनेउनमें से अधिक से अधिक लोगों का इलाज करने और टीबी को रोकने के प्रयासों में तेज़ी आयी है। "100 दिनों का अभियान भारत के इतिहास में उच्च जोखिम वाली आबादी के बीच टीबी का पता लगानेउसका इलाज करने और उसकी रोकथाम करने का सबसे बड़ा अभियान है। हम न केवल सक्रिय टीबी रोग वाले अधिक लोगों को ढूंढ रहे हैं और उन्हें देखभाल से जोड़ रहे हैंबल्कि उन लोगों को भी ढूंढ रहे हैं जिनमें लेटेंट टीबी है और उन्हें टीबी निवारक चिकित्सा प्रदान कर रहे हैं। यह वास्तव में एक बड़ा बदलाव है।"

 

धर्मशालाकांगड़ा में डॉ सूद की टीम ने उन लोगों की पहचान की जिनमें टीबी का खतरा अधिक है। इनमें वे लोग शामिल थे जो कुपोषित हैंतंबाकू या शराब का सेवन करते हैंमधुमेह या एचआईवी से पीड़ित हैंवे लोग जो पिछले पाँच वर्षों में कभी टीबी से पीड़ित रहे हैं और उनका इलाज पूरा हो चुका है (क्योंकि उनमें फिर से टीबी होने के मामले हो सकते हैं)पिछले दो वर्षों में टीबी रोगियों के संपर्क में रहे लोगईंट भट्ठा मजदूरनशीली मादक पदार्थों का उपयोग करने वाले लोगकैंसर रोगी या वे लोग जिनकी प्रतिरक्षात्मक क्षमता कम है (जैसे कि अंग-प्रत्यारोपण करवाने वाले लोगआदि)सीओपीडी (क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसऑर्डर) के रोगीगर्भवती महिलाएँखाना पकाने के ईंधन के रूप में जलाऊ लकड़ी का उपयोग करने के कारण घर के अंदर वायु प्रदूषण के संपर्क में आने वाली महिलाएँआदि।

 

इन लोगों को चिन्हित करने में काँगड़ा की 1800 से अधिक मान्यता प्राप्त महिला सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं- जिन्हें आशा बहू के नाम से जाना जाता है - और 300 सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों का प्रशंसनीय योगदान रहा है।

 

धर्मशाला कांगड़ा में वंचित लोगों तक पहुंचना

 

डॉ सूद ने बताया कि बैटरी चालितअल्ट्रा-पोर्टेबल हैंड-हेल्ड एक्स-रे और बैटरी से चलने वाली भारत निर्मित मॉलिक्यूलर टीबी टेस्टिंग मशीन ट्रूनेट से लैस दो विशेष वैन (जिन्हें नि-क्षय वाहन कहा जाता है) दूरदराज के क्षेत्रों में जा रही हैंतथा टीबी की जाँच और परीक्षण कर रही हैं।यानी अस्पताली सेवाएं स्वयं ही लोगों के पास आ रही है जो टीबी के उच्च जोखिम में हैं। बैनरनारे और अन्य सामग्रियों के साथ अभिनव जागरूकता अभियान समुदायों को संगठित करने मेंमदद करते हैं। नि-क्षय संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है टीबी मुक्त होना ("नि" का अर्थहै "नहीं होना" और "क्षय" का अर्थ है टीबी)। आशा कार्यकर्ताओं सहित स्वास्थ्य कार्यकर्ताघर-घर जाकर टीबी की जाँच और एक्स-रे करने में मदद कर रहे हैं।

 

डॉ सूद ने बताया कि यहां असली चुनौती आती है। कांगड़ा जिले में हमारे पास 260,000 लोग हैं जिनको टीबी का खतरा अधिक है। इनकी सेवा करने के लिए केवल 18 कार्यात्मक एक्स-रे मशीनें हैं। इसके अलावाहमारे पास 3 हैंडहेल्ड एक्स-रे मशीनें हैं - जिनमे "प्रोरेड" नामक एक्स-रे मशीन आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस (एआई-सक्षम) है। यह मशीन मोलबायो डायग्नोस्टिक्स द्वारा भारत में बनाई गई है तथा हमें पावर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया द्वारा सीएसआर के तहत दी गई थी। एक अन्य हैंडहेल्ड एक्स-रे टोंग-लेन चैरिटेबल ट्रस्ट के सौजन्य से प्रदान की गई थीऔर तीसरी हैंडहेल्ड एक्स-रे मशीन भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के कारण संभव हुई।"

 

यह ज्ञात हो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डबल्यूएचओ) ने 2021 में एआई-सक्षम कंप्यूटर सहायता प्राप्त एक्स-रे का उपयोग करके टीबी का पता लगाने की मार्गनिर्देशिका जारी की थी। ये एक्स-रे पढ़ने के लिए रेडियोलॉजिस्ट की आवश्यकता नहीं होती। तो परिणाम भी तत्काल मिल जाता है।चूंकि ये एक्स-रे बैटरी चालित होते हैंइसलिए इन्हें दूरदराज के क्षेत्रों में लोगों के घर के करीब तक ले जाया जा सकता है और इस प्रकार एक्स-रे परीक्षण काफ़ी सरल हो जाता है। साथ ही बैटरी-संचालित मॉलिक्यूलर टेस्ट "ट्रूनेट" के द्वारा टीबी की जाँच करने के लिए किसी लेबोरेटरी की ज़रूरत नहीं होती। ऐसे उपकरणों की कमी से न केवल लोगों को टीबी स्क्रीनिंग के लिए दूर दराज़ अस्पताल जाना बोझिल हो जाएगाबल्कि इसमें बहुत अधिक समय भी लगेगा। काँगड़ा जिले के हर ब्लॉक में एक ट्रूनेट मशीन है।

 

डॉ. सूद ने बताया कि हैंडहेल्ड एक्स-रे मशीनों का उपयोग करकेहम कांगड़ा में एक दिन में लगभग 70-100 एक्स-रे (एक महीने में लगभग 3000 एक्स-रे) कर सकते हैं। स्वास्थ्य सेवा-कर्मियों पर काम का बहुत ज़्यादा दबाव होता है। अक्सर वे सूर्योदय के समय अपने घरों से निकल जाते हैं और एक्स-रे करवाने के लिए आए लोगों की कतारें अक्सर शाम 7 बजे तक भी ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेती हैं। चूंकि ये एक्स-रे मशीनें बैटरी से चलती हैंइसलिए हम इन्हें रात भर चार्ज करते हैं ताकि वे अगले दिन उपयोग के लिए तैयार हो जाए।"

 

चेस्ट एक्स-रे होने के बाद क्या होता है?

 

जिनमें टीबी होने का खतरा अधिक है उन समुदायों के सभी लोगों को एक्स-रे उपलब्ध कराया जाता है। जिन लोगों में संभावित टीबी पायी जाती है उनके बलगम के नमूने आशा कार्यकर्ती एकत्र करके निकटतम परीक्षण केंद्र में स्थानांतरित करतीं हैंऔर जिन लोगों में टीबी रोग डायग्नोज़ होता हैउन्हें प्रभावी उपचार मिलता है (अधिकतम टेस्ट के एक सप्ताह के भीतर)।

 

डॉ. सूद की टीम यह भी सुनिश्चित करती है कि सक्रिय टीबी रोग वाले प्रत्येक व्यक्ति का इलाज उन दवाओं से किया जाए जो रोग पैदा करने वाले टीबी बैक्टीरिया पर काम करती हैं (यह परीक्षण करके कि टीबी बैक्टीरिया उपचार के लिए उपयोग की जाने वाली किसी भी दवा के प्रति प्रतिरोधी नहीं है)।

 

बलगम का सैंपल लाइन प्रोब एसे (एलपीए) ड्रग ससेप्टिबिलिटी टेस्ट के लिए भी भेजा जाता है। पूरे हिमाचल प्रदेश में एलपीए टेस्ट के केवल एक ही स्थान पर उपलब्ध है। इसलिएएलपीए टेस्ट के नतीजे आने में लगभग 10 दिन लगते हैं।

 

सभी रोगियों को पोषण-संबंधी सहायता भी प्रदान की जाती है (सरकार द्वारा उपचार के दौरान हर महीने 1000 रुपये सीधे रोगी के बैंक खाते में ट्रांसफर किए जाते हैं)। साथ ही, ‘नि-क्षय मित्र’ पहल रोगियों को अतिरिक्त पोषण और मानसिक सहायता प्रदान करती है। टीबी से ठीक हुए लोग काँगड़ा में टीबी से पीड़ित अन्य लोगों की मदद करके इस अभियान को आगे बढ़ा रहे हैं। उन्हें सही मायने में टीबी चैंपियन कहा जाता है। केवल टीबी ही नहींडॉ. सूद की टीम दिशानिर्देशों के अनुसार देखभाल के साथ उचित जुड़ाव के ज़रिए टीबी से संबंधित सह-संक्रमण (जैसे एचआईवी) या सह-रुग्णता (जैसे मधुमेह) के प्रबंधन में भी मदद कर रही है।

 

टीबी के नेगेटिव टेस्ट वाले लोगों को टीबी-मुक्त रहने में मदद करना

 

जिन लोगों का चेस्ट एक्स-रेस्क्रीनिंग में संभावित टीबी या अपफ्रंट मॉलिक्यूलर टेस्टिंग में सक्रिय टीबी रोग का नकारात्मक नतीजा देता हैउनका लेटेंट टीबी परीक्षण नवीनतम विधि द्वारा त्वचा टेस्ट (जिसे "साइ-टीबी" कहा जाता हैजो स्टॉप टीबी पार्टनरशिप की ग्लोबल ड्रगफैसिलिटी के माध्यम से वैश्विक रूप से उपलब्ध है) से किया जाता है।साइ-टीबी भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा बनाया जाता है। जिन लोगों का साइ-टीबी टेस्ट पॉजिटिव आता हैउन्हें टीबी निवारक उपचार (जिसे 3 एचपी रेजिमेन कहा जाता हैजो 3 महीने की अवधि के साथ आइसोनियाज़िड और रिफापेंटिन को सप्ताह में एक बार लिया जाता है) दिया जाता है," डॉ. सूद ने बताया।

 

सब कुछ आसान नहीं है: चुनौतियाँ और सीखें

 

100 दिन के अभियान को लागू करना (उम्मीद है कि यह तब तक जारी रहेगा जब तक भारत टीबी को खत्म नहीं कर देता) भी महत्वपूर्ण सीख दे रहा है।

 

उदाहरण के लिएस्वस्थ दिखने वाले लोगों (जिनमें अभी तक टीबी के कोई लक्षण नहीं हैं) को टीबी परीक्षण या लेटेंट टीबी के लिए परीक्षण कराने के लिए राजी करना आसान नहीं है।

 

सीमित संख्या में एआई-सक्षम हैंडहेल्ड एक्स-रे के साथलोगों को आशा या अन्य स्वास्थ्य सेवा कार्यकर्ता एक्स-रे के साथ निकटतम स्वास्थ्य सुविधा तक ले जाते हैं।

 

डॉ. सूद ने कहा, "जब हम किसी गांव में टीबी शिविर लगाते हैंतो बहुत से लोग अपना एक्स-रे करवाने के लिए आगे आते हैं। लेकिन अगर गाँव में कोई हैंडहेल्ड अल्ट्रापोर्टेबल एआई-सक्षम एक्स-रे सुविधा नहीं हैतो हमें लोगों को एक्स-रे के लिए नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र में भेजना पड़ता हैजो लोगों के लिये बहुत चुनौतीपूर्ण होता है और केवल 5% - 10% लोग ही इसके लिए तैयार होते हैं ।क्योंकि एक सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा केंद्र में टीबी के अलावा अन्य कारणों से (जैसे कि हड्डी-संबंधी) अपना एक्स-रे करवाने के लिए आए लगभग 100 लोगों की लंबी कतार हो सकती है। टीबी के लक्षणहीन व्यक्ति को पहले ओपीडी पर्ची लेने के लिए कतार में खड़ा होना पड़ता हैफिर अपना पर्चा बनवाने के लिए दूसरी कतार मेंफिर तीसरी कतार में "जीरो-बिलिंग" करवाने के लिए (क्योंकि टीबी के लिए एक्स-रे निःशुल्क है) और फिर एक्स-रे करवाने के लिए चौथी कतार में खड़ा होना पड़ता है। इसके बादउसको रिपोर्ट लेकर डॉक्टर के पास जाना पड़ता है। अधिकांश लोग इस बोझिल और समय लेने वाली प्रक्रिया से गुजरने के लिए अनिच्छुक होते हैं।"

 

लोगों की स्वास्थ्य और उपचार साक्षरता को बढ़ाना बहुत महत्वपूर्ण है ताकि जब उनमें टीबी के लक्षण न भी होंतब भी वे टीबी स्क्रीनिंग और परीक्षण प्रक्रिया से गुजरने के लिए तैयार हों - और यदि टीबी निवारक उपचार के पात्र हैंतो उपचार के पूरे पाठ्यक्रम का पालन कर सकें।

 

यदि घर में सक्रिय टीबी रोग वाला कोई व्यक्ति हैतो परिवार के अन्य सदस्यों को टीबी होने का ख़तरा अधिक होता हैऔर ये लोग सक्रिय टीबी रोग से खुद को बचाने के लिए टीबी निवारक उपचार को स्वीकार करने के लिए अधिक इच्छुक होते हैं। लेकिन अगर परिवार में किसी को टीबी रोग नहीं हैतो टीबी जोखिम की धारणा अक्सर गायब होती हैऔर टीबी निवारक सेवाओं को लेने की इच्छा भी गायब होती है”, डॉ सूद ने समझाया।

 

एक और चुनौती यह है कि आशा कार्यकर्ती को "साइ-टीबी" परीक्षण के लिए व्यक्ति को निकटतम स्वास्थ्य सुविधा केंद्र (वेलनेस सेंटर) में ले जाना पड़ता है और उस व्यक्ति को बाद में टेस्ट का परिणाम प्राप्त करने के लिए एक बार फिर आना पड़ता है। यह कई बार की भागदौड़ भी लोगों के लिए बाधक हो सकती है।

 

"लेकिन हम अधिक से अधिक लोगों को जोड़ने और टीबी सेवाओं का लाभ उठाने के लिए सभी प्रयास कर रहे हैं। "साइ-टीबी" के लिए हमारी पहली आपूर्ति समाप्त हो चुकी है और अगली आपूर्ति आने वाली है।

 

डॉ सूद ने तकनीकी चुनौतियों का भी उल्लेख किया। भारत सरकार कार्यक्रम में नामांकित टीबी से पीड़ित प्रत्येक व्यक्ति के नवीनतम डेटा के साथ एक बहुत ही महत्वपूर्ण ऑनलाइन प्रणाली का उपयोग करती हैजिसे नि-क्षय ऑनलाइन पोर्टल कहा जाता है। डॉ. सूद ने कहा कि नि-क्षय प्लेटफ़ॉर्म बहुत अच्छी तरह से डिज़ाइन किए जाने के बावजूदअब इस पर बहुत अधिक लोड है। इसलिए बढ़ते लोड के कारणसर्वर बहुत धीमा हो गया है। उनकी टीम डेटा या जानकारी एकत्र करने और रिकॉर्ड करने के लिए गूगल फ़ॉर्म या व्हाट्सएप जैसे अन्य तरीकों का भी उपयोग कर रही है। लेकिन आखिरकार यह नि-क्षय प्लेटफ़ॉर्म ही है जहाँ हमें पूरा डेटाबेस बनाए रखने की आवश्यकता है। हमें उम्मीद है कि यह जल्द ही स्थिर हो जाएगा।

 

टीबी मुक्त अभियान और स्वास्थ्य प्रणालियों में निवेश

 

डॉ. सूद के अनुसार हमें अधिक मोबाइल मेडिकल यूनिट्स (नि-क्षय वाहन) की आवश्यकता हैजो अल्ट्रापोर्टेबल हैंडहेल्ड एआई-सक्षम एक्स-रे और संसाधनों से लैस होंताकि अधिक टीबी का पता लगानेउसका उपचार करने और उसे रोकने के लिए तीव्र प्रयासों का समर्थन किया जा सके। हम जितना अधिक आउटरीच कर सकते हैं और हमारे पास जितनी अधिक एक्स-रे मशीनें होंगीहम उतनी ही अधिक टीबी का पता लगा पाएंगे। साथ हीहमें टीबी को समाप्त करने के अपने मिशन में सफल होने तक इस कार्य को जारी रखने के लिए अधिक प्रशिक्षित और कुशल मानव संसाधनों की आवश्यकता है।

 

डब्ल्यूएचओ द्वारा अनुमोदित पॉइंट-ऑफ-केयर और बैटरी संचालित ट्रूनेट जैसे मॉलिक्यूलर परीक्षणों को भी अधिक संख्या में उपलब्ध कराया जाना चाहिएताकि एक्स-रे पर संभावित टीबी पाए जाने वाले लोग मौके पर ही टीबी की पुष्टि करने वाला परीक्षण कर सकें और उसी दिन अपना इलाज आरम्भ कर सकें।

 

100-दिवसीय टीबी मुक्त भारत अभियान, 100 दिनों से आगे भी जारी रहना चाहिए। यह पहल टीबी को समाप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण बदलाव हैलेकिन इसे 100 दिन बाद समाप्त नहीं होना चाहिए। सभी प्रकार की टीबी का पता लगानेउपचार करने और रोकथाम के लिए इस तरह का केंद्रित अभियान तब तक जारी रहना चाहिए और टीबी के अधिक जोखिम वाले क्षेत्रों में आबादी के स्तर तक इसका विस्तार किया जाना चाहिएजब तक कि हम टीबी को समाप्त नहीं कर देते।

 

शोभा शुक्ला - सीएनएस (सिटीज़न न्यूज़ सर्विस)

(शोभा शुक्ला, लॉरेटो कॉलेज से सेवा निवृत्त भौतिक विज्ञान की वरिष्ठ शिक्षिका रही हैं, और सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) की संस्थापिका-संपादिका भी हैं। उनको एक्स/ट्विटर पर पढ़ें: @shobha1shukla)

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@Dheeraj kashyap युवा पत्रकार- विचार और कार्य से आने वाले समय में अपनी मेहनत के प्रति लगन से समाज को बेहतर बना सकते हैं। जरूरत है कि वे अपनी ऊर्जा, साहस और ईमानदारी से र्काय के प्रति सही दिशा में उपयोग करें , Bachelor of Journalism And Mass Communication - Tilak School of Journalism and Mass Communication CCSU meerut / Master of Journalism and Mass Communication - Uttar Pradesh Rajarshi Tandon Open University पत्रकारिता- प्रेरणा मीडिया संस्थान नोएडा 2018 से केशव संवाद पत्रिका, प्रेरणा मीडिया, प्रेरणा विचार पत्रिका,