विश्व कल्याण का भाव हिंदुत्व के मूल में ही निहित है : डॉ. मोहन भागवत जी

जबलपुर । सारा विश्व भारत की ओर देख रहा है, पश्‍चात्‍य दृष्‍टि से अब तक जो भी विकास हुआ अधूरा ही रहा है, वस्तुत: धर्म और राजनीति को लेकर भी धर्म की और राजनीति की अवधारणा को व्यवसाय बना लिया गया, बाद में वैज्ञानिक युग आने के बाद वह भी शस्त्रों का व्यापार बनकर रह […]

Nov 11, 2024 - 08:32
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विश्व कल्याण का भाव हिंदुत्व के मूल में ही निहित है : डॉ. मोहन भागवत जी

जबलपुर । सारा विश्व भारत की ओर देख रहा है, पश्‍चात्‍य दृष्‍टि से अब तक जो भी विकास हुआ अधूरा ही रहा है, वस्तुत: धर्म और राजनीति को लेकर भी धर्म की और राजनीति की अवधारणा को व्यवसाय बना लिया गया, बाद में वैज्ञानिक युग आने के बाद वह भी शस्त्रों का व्यापार बनकर रह गया और फिर दो विश्व युद्ध हुए इस दृष्टि से सुख-समृद्धि नहीं वरन् विनाश ज्यादा हुआ संपूर्ण विश्व दो विचारधारा में बट गया, नास्तिक और आस्तिक और आगे चलकर यह संघर्ष का विषय भी बन गया, जिसमें कि जो बलवान हैं वह जियेंगे और दुर्बल मरेंगे। समूहों की सत्ता का विचार भी सामने आया था और साथ ही संघर्ष आरंभ हुआ। साधन तो असीमित हो गए पर मार्ग नहीं मिला। इसीलिए विश्व आत्मिक शांति के लिए आज भारत की ओर आशापूर्ण दृष्टि से देख रहा है, उक्‍त उद्गार योगमणि ट्रस्ट जबलपुर के तत्वावधान में योगमणि वंदनीया स्वर्गीय डॉक्टर उर्मिला ताई जामदार स्मृति प्रसंग के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने “वर्तमान में विश्व कल्याण के लिए हिंदुत्व की प्रासंगिकता” विषय पर व्‍यक्‍त किए हैं।

उन्होंने यहां सबसे पहले यह स्पष्ट किया कि क्या विश्व को कल्याण की आवश्यकता है? और यदि है तो उसके प्रति वैश्‍विक कर्तव्‍य सबसे अधिक किसका है एवं दुनिया किससे आज समाधान की अपेक्षा कर रही है। रास्‍वसंघ सरसंघचालक डॉ. भागवत ने आगे कहा कि आज विश्व की स्थिति साधन संपन्न है, असीमित ज्ञान है पर उसके पास मानवता के लिए आवश्‍यक कल्याण मार्ग नहीं है । भारत इस दृष्टि से संपन्न है। परन्तु वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारत ने अपने ज्ञान को विस्मृत कर दिया। इसके कई कारण हैं, जिसमें कि एक कारण सुख-सुविधाओं और शांतिपूर्ण जीवन का होना भी है, किंतु हमें यह याद करना होगा कि हम क्‍या रहे हैं, अत: हमें विस्मृति के गर्त से बाहर निकलना है।

सरसंघचालक जी ने कहा कि भारतीय जीवन दर्शन में अविद्या और विद्या दोनों का महत्व है, भौतिक और आध्यात्मिक जीवन में संतुलन बना रहे इसीलिए दोनों का सह संबंध आवश्यक है। हिंदू धर्म में इसे स्वीकार किया गया है, इसीलिए हिंदू धर्म अविद्या और विद्या दोनों के मार्ग से होकर चलता है, इसीलिए ही यहां पर अतिवादी कट्टर नहीं हैं, जबकि पश्चिम की अवधारणा में अतिवादिता तथा कट्टरपन दिखता है क्योंकि उन्हें अपने स्वार्थ की हानि का डर है, इस कारण से यह उनकी दृष्टि अधूरी है। उन्‍होंने कहा कि सृष्टि के पीछे एक ही सत्य है तथा उसका प्रस्थान बिंदु भी एक ही है। मानव धर्म ही सनातन धर्म है और सनातन धर्म ही हिंदू धर्म है। जो सभी विषयों को एकाकार स्वरूप में देखता है। विविधता में एकता का विश्वव्यापी संदेश देता है ।

इसके साथ ही सरसंघचालक जी का कहना रहा कि जन मानस में हिंदू शब्द बहुत पहले से प्रचलित था, बाद में बाद इसका उल्लेख ग्रंथों में भी हुआ है, परंतु जनवाणी के रूप में गुरु नानक देव ने सर्वप्रथम इसका प्रयोग किया है । हमारे यहां धर्म की अवधारणा सत्य ,करुणा, शुचिता एवं तपस है, इसलिए यही धर्म दर्शन विश्व को कल्याण के लिए देना है। यही हिंदुत्व की आत्मा है । विविधताओं के साथ एक होकर रहना ही हिंदू है।

इस अवसर पर मंच पर प्रान्त संघचालक डॉ. प्रदीप दुबे, योगमणि ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉ. जितेन्द्र जामदार, अखिल भारतीय सह बौद्धिक प्रमुख दीपक विसपुते, क्षेत्र प्रचारक, स्वप्निल कुलकर्णी, सह क्षेत्र प्रचारक प्रेमशंकर सिदार, प्रान्त प्रचारक ब्रजकांत, मध्यप्रदेश शासन के मंत्री प्रह्लाद पटेल, राकेश सिंह सहित नगर के गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।

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