MEDIA एजेंडा सेटिंग का इतिहास

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Nov 11, 2024 - 06:37
Nov 11, 2024 - 18:55
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MEDIA एजेंडा सेटिंग का इतिहास

एजेंडा सेटिंग (Agenda Setting) सिद्धांत मीडिया के प्रभाव को समझाने वाला एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। इसे सबसे पहले 1972 में मैक्सवेल ई. मैकाम्ब और डोनाल्ड एलशा ने व्यवस्थित रूप से अध्ययन किया। इस सिद्धांत के अनुसार, मीडिया समाज के मुद्दों को प्रभावित करता है और किसी भी मुद्दे को अधिक या कम महत्व देने में भूमिका निभाता है। यह सिद्धांत कहता है कि मीडिया लोगों को यह नहीं बताता कि उन्हें किसी मुद्दे पर क्या सोचना चाहिए (what to think), बल्कि यह बताता है कि उन्हें किस बारे में सोचना चाहिए (what to think about)।

एजेंडा सेटिंग का इतिहास

एजेंडा सेटिंग का विचार पहली बार अमेरिकी पत्रकार वाल्टर लिपमैन ने 1922 में अपनी पुस्तक ‘पब्लिक ओपिनियन’ में दिया था। लिपमैन का मानना था कि लोग वास्तविक घटनाओं पर नहीं बल्कि उन छवियों पर प्रतिक्रिया देते हैं जो मीडिया द्वारा उनके मस्तिष्क में बनाई जाती हैं। इसके बाद 1944 में पॉल लेजर्सफेल्ड ने भी ‘पॉवर टू स्ट्रक्चर इश्यूज’ के माध्यम से एजेंडा सेटिंग की अवधारणा पर अध्ययन किया।

1972 में मैक्सवेल ई. मैकाम्ब और डोनाल्ड एलशा ने इसे और विस्तार से समझने के लिए अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान नॉर्थ कैरोलिना के चैपलहिल में एक अध्ययन किया। इसे "चैपलहिल स्टडी" के नाम से भी जाना जाता है। इस अध्ययन में पाया गया कि मीडिया द्वारा जिन मुद्दों को प्रमुखता दी गई, वही मुद्दे मतदाताओं के लिए भी प्रमुख बन गए।

एजेंडा सेटिंग की अवधारणा

एजेंडा सेटिंग का मुख्य उद्देश्य यह है कि मीडिया समाज में चल रहे विभिन्न मुद्दों को कैसे प्रस्तुत करता है। मीडिया यह तय करता है कि आज का सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा क्या है और कौन सा मुद्दा गौण है। हर मीडिया संस्था का अपना उद्देश्य और लाभ-हानि जुड़ा होता है, जिससे वे अपने अनुसार एजेंडा सेटिंग के तहत अलग-अलग मुद्दे प्रस्तुत करते हैं। कई बार ये मुद्दे समाज और सरकार दोनों को प्रभावित करते हैं, और कभी-कभी ये मुद्दे प्रासंगिक नहीं होते।

एजेंडा सेटिंग सिद्धांत के कुछ महत्वपूर्ण प्रयोग

  1. 1980 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव – 1980 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में एजेंडा सेटिंग का प्रभाव स्पष्ट देखा गया। राष्ट्रपति जिमी कार्टर और रोनाल्ड रीगन के बीच की प्रतिस्पर्धा में मीडिया द्वारा "ईरानी बंधकों की रिहाई" के समाचार को प्रमुखता दी गई। इससे यह मुद्दा चुनाव में बड़ा मुद्दा बन गया और जनता का ध्यान इस ओर केंद्रित हो गया, जिससे चुनाव परिणाम रीगन के पक्ष में आए।

  2. अपराध लहर (Crime Wave) का उभार – अमेरिकी पत्रकारिता में, लिकन स्टीफेंस ने "मैं एक अपराध लहर बनाता हूं" अध्याय में मीडिया के अपराध संबंधी समाचारों को प्रमुखता देने की बात कही। जब समाचार पत्रों ने अपराध की घटनाओं को प्रमुखता से प्रकाशित करना शुरू किया, तो जनता के बीच अपराध एक बड़ा मुद्दा बन गया, जिसे "अपराध लहर" कहा गया।

  3. भारत में मकबूल फ़िदा हुसैन का विवाद – भारत में चित्रकार मकबूल फ़िदा हुसैन की देवी-देवताओं की विवादास्पद पेंटिंग को मीडिया ने प्रमुखता से उठाया। इससे यह मामला एक राष्ट्रीय मुद्दा बन गया और समाज में इसे लेकर तीव्र बहस छिड़ गई।

  4. निर्मल बाबा का प्रसार और गिरावट – निर्मल बाबा को मीडिया द्वारा घर-घर में जाना-पहचाना नाम बनाया गया। लेकिन बाद में, जब उनके ढोंग को उजागर किया गया, तो मीडिया ने इसे प्रमुखता दी, जिससे उनके कार्यक्रम का पतन हो गया।

  5. अन्ना हजारे का आंदोलन – भारत में अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को मीडिया द्वारा प्रमुखता देने से यह एक जन आंदोलन में परिवर्तित हो गया। जनता ने इस आंदोलन को व्यापक समर्थन दिया, और इसके पीछे मीडिया का प्रमुख योगदान था।

  6. सलमान खुर्शीद और उनकी पत्नी के NGO का मामला – कानून मंत्री सलमान खुर्शीद और उनकी पत्नी के NGO पर लगे आरोपों को मीडिया ने प्रमुखता दी। इससे यह मामला समाज में चर्चा का विषय बन गया और खुद सलमान खुर्शीद को प्रेस कांफ्रेंस बुलानी पड़ी।

एजेंडा सेटिंग का वर्तमान प्रभाव

एजेंडा सेटिंग का प्रभाव आज के समय में भी स्पष्ट देखा जा सकता है। जब मीडिया किसी मुद्दे को प्रमुखता देता है, तो वह लोगों की सोच पर सीधा प्रभाव डालता है। यह अक्सर देखा गया है कि मीडिया द्वारा उठाए गए मुद्दे जनता की सोच में भी प्राथमिकता प्राप्त कर लेते हैं। चाहे वह किसी राजनीतिक मुद्दे पर हो, किसी अपराध की घटना हो, या फिर किसी सामाजिक मुद्दे पर चर्चा हो, मीडिया की भूमिका समाज की सोच को प्रभावित करने में अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है।

एजेंडा सेटिंग सिद्धांत से यह सिद्ध होता है कि मीडिया किसी भी समाज में मुद्दों का निर्माण, प्रचार और प्रसार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वह जनता को यह बताने में सक्षम नहीं होता कि उन्हें क्या सोचना चाहिए, लेकिन वह यह बताने में बहुत सफल है कि किस बारे में सोचना चाहिए।

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