मंदिर की संपत्ति देवता की, सरकार की नहीं

मंदिरों की संपत्ति को लेकर हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय का निर्णय शिमला। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने मंदिरों के प्रबंधन, आय-व्यय और दान राशि के उपयोग को लेकर ऐतिहासिक निर्णय दिया है। न्यायालय का यह निर्णय न केवल धार्मिक आस्थाओं की रक्षा करता है, बल्कि पारदर्शिता, जवाबदेही की दिशा में एक ठोस कदम भी है। […] The post मंदिर की संपत्ति देवता की, सरकार की नहीं appeared first on VSK Bharat.

Oct 16, 2025 - 12:46
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मंदिर की संपत्ति देवता की, सरकार की नहीं

मंदिरों की संपत्ति को लेकर हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय का निर्णय

शिमला। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने मंदिरों के प्रबंधन, आय-व्यय और दान राशि के उपयोग को लेकर ऐतिहासिक निर्णय दिया है। न्यायालय का यह निर्णय न केवल धार्मिक आस्थाओं की रक्षा करता है, बल्कि पारदर्शिता, जवाबदेही की दिशा में एक ठोस कदम भी है। उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति राकेश कैथला की खंडपीठ ने ’कश्मीर चंद बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य’ मामले की सुनवाई के दौरान सुनाया।

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि मंदिर का धन देवता की संपत्ति है, राज्य सरकार की नहीं। ट्रस्टी केवल उसके संरक्षक हैं, मालिक नहीं। मंदिरों की संपत्ति और आय का उपयोग केवल धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक उद्देश्यों के लिए ही किया जा सकता है। भक्तों के विश्वास की रक्षा के लिए यह आवश्यक है कि हर मंदिर अपनी मासिक आय, परियोजनाओं और ऑडिट रिपोर्ट को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करे, चाहे वह नोटिस बोर्ड पर हो या वेबसाइट पर।

न्यायालय ने मंदिर के चढ़ावे के उपयोग के लिए 31 अनुमोदित क्षेत्रों की सूची जारी की। इसके तहत धन का उपयोग निम्नलिखित क्षेत्रों में किया जा सकता है।

– धार्मिक कार्यक्रम, पूजा-पाठ और कर्मकांड

– शिक्षा एवं विद्या प्रसार

– सामाजिक सुधार और सेवा कार्य (सरकार के माध्यम से नहीं, अपितु सीधे लाभार्थी तक लाभ पहुंचाकर)

– मंदिरों के बुनियादी ढांचे एवं तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए व्यवस्थाएं

न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि मंदिर की राशि का उपयोग सरकारी योजनाओं, सड़कों, पुलों या सार्वजनिक भवनों के निर्माण में नहीं किया जा सकेगा। यह धन राज्य के सामान्य राजस्व की तरह नहीं माना जाएगा।

मंदिरों के धन से व्यक्तिगत लाभ, निजी निवेश, गाड़ियों की खरीद, वीआईपी उपहार, मोमेंटो, चुनरी, काजू-बादाम या अन्य विलासिता वस्तुओं की खरीद पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है। साथ ही अन्य धर्मों के कार्यक्रमों, अंतर-धार्मिक या राजनीतिक आयोजनों को आर्थिक सहयोग देना भी वर्जित रहेगा।

उच्च न्यायालय ने निर्णय में यह भी कहा कि मंदिरों को समाज में समरसता और समानता का संदेश देने वाला केंद्र बनना चाहिए। न्यायालय ने अंतरजातीय विवाह को प्रोत्साहन देने वाली गतिविधियों को शुरू करने का सुझाव दिया। शास्त्रों और इतिहास के उदाहरण जैसे शांतनु-सत्यवती, दुष्यंत-शकुंतला, सत्यवान-सावित्री का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि प्राचीन भारत में भी ऐसे विवाह स्वीकार्य थे।

न्यायालय ने यह स्वीकार किया कि हिन्दू मंदिर केवल पूजा स्थलों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे ’शिक्षा, कला, संस्कृति और समाज कल्याण’ के केंद्र रहे हैं। मंदिरों को चाहिए कि वे खेल प्रतियोगिताएं, योग शिविर, सांस्कृतिक उत्सव और शास्त्रीय संगीत व नृत्य के कार्यक्रम आयोजित करें, जिससे वे युवाओं के लिए अधिक आकर्षक बन सकें।

मंदिरों को समाज सेवा के केंद्र के रूप में विकसित करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए न्यायालय ने कहा कि अन्नदान कार्यक्रमों का विस्तार कर उन्हें स्वास्थ्य शिविर, कानूनी सहायता केंद्र और कौशल विकास प्रशिक्षण के साथ जोड़ा जा सकता है। इस प्रकार मंदिर समाज के वंचित वर्गों के उत्थान में सक्रिय योगदान दे सकते हैं।

हिमाचल उच्च न्यायालय का निर्णय न केवल धार्मिक संस्थानों की पारदर्शिता को सुनिश्चित करता है, बल्कि उन्हें पुनः ’सामाजिक चेतना और समरसता के केंद्र’ के रूप में स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त करता है। मंदिर समाज के सर्वांगीण विकास के सशक्त माध्यम बन सकते हैं।

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