भारत-पाक बंटवारे में सिखों को साथ रखने के लिए जिन्ना ने क्या-क्या किया?

India Pak Partition History: भारत-पाकिस्तान बंटवारे की पूरी योजना बन चुकी थी. बस मंजूरी मिलनी बाकी थी. लेकिन जिन्ना पंजाब के बंटवारे के हक में नहीं थे. इसे रोकने के लिए सिखों का साथ उन्हें जरूरी लगता था. इसके लिए जिन्ना ने तमाम कोशिशें कर डाली थी, लेकिन अंतत: उनके हाथ हार लगी.

Aug 15, 2025 - 18:37
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भारत-पाक बंटवारे में सिखों को साथ रखने के लिए जिन्ना ने क्या-क्या किया?
भारत-पाक बंटवारे में सिखों को साथ रखने के लिए जिन्ना ने क्या-क्या किया?

मजहब के नाम पर मुल्क का बंटवारा कराने वाले जिन्ना पंजाब नहीं बंटने देना चाहते थे. इसके लिए सिखों को साथ रखने और उनकी हर मांग पूरी करने को वे तैयार थे. लार्ड माउंटबेटन की सलाह पर उन्होंने इस सिलसिले में पटियाला के महाराजा यादविंदर सिंह और कुछ सिख नेताओं से मुलाकातें भी की थीं. सिखों को पाले में करने के लिए बिना पढ़े उनकी मांगों की फेहरिस्त पर दस्तखत करने की जिन्ना ने तसल्ली दी थी.

जिन्ना से जब कहा गया कि वो बहुत उदार दिख रहे हैं लेकिन कल्पना कीजिए कि इन वादों को पूरा करने के समय आप ही न रहें तो क्या होगा? मरने के बाद भी पाकिस्तान में अपनी हैसियत को लेकर बेफिक्र जिन्ना का जवाब था कि “मेरे दोस्त पाकिस्तान में मेरे लफ़्ज़ खुदा के वचन की तरह हैं. कोई भी उनसे पीछे नहीं हटेगा.” हालांकि इसके बावजूद महाराजा और सिख नेता जिन्ना के झांसे में नहीं आए. महाराजा ने जिन्ना को मुल्क बंटवारे के विनाशकारी परिणामों के बारे में आगाह किया था लेकिन इस मुद्दे पर जिन्ना कुछ सुनने को तैयार नहीं थे.

मुसलमानों-सिखों के साथ के फार्मूले की तलाश

मुल्क का बंटवारा लगभग तय हो चुका था. औपचारिक मंजूरी बाकी थी. लेकिन जिन्ना पंजाब के बंटवारे के हक में नहीं थे. इसे रोकने के लिए सिखों का साथ उन्हें जरूरी लगता था. माउंटबेटन की सलाह थी कि जिन्ना महाराजा पटियाला यादविंदर सिंह से मुलाकात करके पता लगाने की कोशिश करें कि क्या पंजाब को एकजुट रखने के लिए मुसलमानों और सिखों को किसी फार्मूले पर सहमत किया जा सकता है?

दिल्ली में दोनों की 15,16 मई 1947 को मुलाकात हुई. इस मुलाकात की खबर 18 मई के पाकिस्तान टाइम्स और ट्रिब्यून में छपी थीं. पाकिस्तान के मशहूर लेखक और राजनीति विज्ञानी प्रोफेसर इश्तियाक अहमद के मुताबिक महाराजा ने जिन्ना से पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की गारंटी पर सवाल किया. भारत के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा के संबंध में महाराजा ने सिख प्रस्ताव दोहराया कि इसे चिनाब नदी पर रेखांकित किया जाए, जबकि जिन्ना इसे सतलुज तक सीमित रखना चाहते थे.

India Pakistan Partition (1)

भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के वक्त देश में हर तरफ अशांति थी. फोटो: Getty Images

मुल्क बंटने पर पंजाब का बंटना जरूरी

प्रिंसिपल सेक्रेट्री सर एरिक मीविल ने 20 मई 1947 को माउंटबेटन को टेलीग्राम के जरिए जिन्ना और महाराजा की मुलाकात और महाराजा द्वारा मुल्क के बंटवारे के विरोध की जानकारी दी. प्रोफेसर इश्तियाक अहमद की किताब , “1947 में पंजाब का बंटवारा: एक त्रासदी हजार कहानियां” के मुताबिक उसी तार में मीविल ने लिखा था कि मुल्क बंटवारे की हालत में सिख पंजाब का विभाजन जरूरी मानते हैं और ऐसा कोई विभाजन जो सिख समुदाय की संपत्ति, अन्य परिसंपत्तियों, उनके गुरुद्वारों और अधिकारों का ध्यान नहीं रखता और सिख समुदाय के बड़े हिस्से के लिए एक राष्ट्रीय स्थल सुरक्षित नहीं रखता तो उनके कड़े विरोध की संभावना है.

अगर पंजाब का विभाजन महज आबादी तथा राष्ट्रीय संपत्ति में विभिन्न समुदायों के हिस्से, प्रांत की समृद्धि के लिए उनके योगदान और विभाजित इकाइयों को आत्मतुष्ट की चाहत आदि के आधार पर किया जाता है तो यह सिख और हिंदुओं दोनों पर बड़ा अन्याय होगा.”

Muhammad Ali Jinnah On Pakistan

मुस्लिम देश के नाम पर मुसलमानों को लुभाते मुहम्मद अली जिन्ना ने प्रस्तावित पाकिस्तान का कभी भी खाका पेश नहीं किया.

धरती पर मौजूद हर चीज सिखों को देने की जिन्ना की पेशकश

जिन्ना और महाराजा की इसी सिलसिले की अन्य मुलाकात में माउंटबेटन, लियाकत अली खान और उनकी बेगम भी मौजूद थीं. प्रोफेसर इश्तियाक अहमद ने अपनी किताब में 19 जुलाई 1959 के द ट्रिब्यून में,” I Remember Jinna ‘s offer of A Sikh State ” शीर्षक से प्रकाशित महाराजा के लेख के अंश उद्धृत किए हैं. महाराजा ने लिखा, ” हमने एक जाम लिया और खाना खाने चले गए. जिन्ना ने इस धरती पर मौजूद हर चीज की पेशकश की अगर मैं उनकी योजना से सहमत हो जाता. इसके दो पहलू थे. एक राजस्थान के विचार पर आधारित था और दूसरा पंजाब को लेकर जिसमें दक्षिण एक या दो जिलों को छोड़कर अलग सिख राज्य के बारे में था.

मैंने मास्टर तारा सिंह,ज्ञानी करतार सिंह और अन्य सिख नेताओं के साथ लंबे समय तक बातचीत की थी. मेरे पास सभी जानकारी थी. मैंने जिन्ना से कहा कि मैं उनके दोनों ही प्रस्तावों को स्वीकार नहीं कर सकता. और भी बहुत कुछ बताया, जो मेरे दिमाग में था. लियाकत अली और बेगम लियाकत मेरे लिए बहुत मनमोहक थे और मुस्लिम लीग की ओर से उन्होंने हर पेशकश की. मुझे सिख राज्य का मुखिया और राज्य का मुख्यालय पटियाला रखने का भी प्रस्ताव था. प्रस्ताव आकर्षक थे. लेकिन व्यावहारिक रूप में उन्हें स्वीकार और अपनी प्रतिबद्धता नहीं बदल सकता था. मध्य रात तक चली बातचीत में माउंटबेटन धैर्यपूर्ण श्रोता थे. आखिर में उन्होंने कहा कि आप और जिन्ना फिर किसी सुविधाजनक तारीख पर मिल सकते हैं.”

Muhammad Ali Jinnah

महात्मा गांधी ने जिन्ना को कायद-ए-आजम सम्बोधित करके चिट्ठी लिखी थी, जिसने जिन्ना की छवि बदल दी थी.

सिखों को साथ रखने को थे जिन्ना उत्सुक

इसी सिलसिले की एक अन्य मुलाकात की जानकारी मशहूर सिख इतिहासकार कृपाल सिंह के महाराजा पटियाला के प्राइम मिनिस्टर हरदित सिंह मलिक से किए इंटरव्यू से मिलती है. मलिक के मुताबिक जिन्ना ने महाराजा से भेंट की इच्छा व्यक्त की थी लेकिन इसके लिए वे महाराजा के पास नहीं आना चाहते थे. फिर यह मुलाकात मलिक के भाई के दिल्ली के 4,भगवान दास रोड बंगले में हुई. इस मौके पर महाराजा के साथ, मास्टर तारा सिंह, ज्ञानी करतार सिंह और मलिक मौजूद थे. बात की शुरुआत करते हुए जिन्ना ने कहा कि वह सिखों को पाकिस्तान के साथ रखने के लिए बहुत उत्सुक हैं और वो सब देने को तैयार हैं, जो सिख चाहते हैं. बशर्ते वे पाकिस्तान को स्वीकार कर लें.

सारी शर्तें थीं मंजूर

सिख प्रतिनिधियों की ओर से एक बार फिर जिन्ना से पाकिस्तान में अपनी स्थिति पर सवाल हुआ. मलिक ने कहा,”मिस्टर जिन्ना आप बहुत उदार हो रहे है लेकिन हम जानना चाहेंगे कि हमारी क्या स्थिति होगी? आपकी एक सरकार होगी. एक पार्लियामेंट होगी. आपके रक्षा बल होंगे. इन सबमें सिखों का क्या हिस्सा होगा? जिन्ना ने पलटकर सवाल किया और फिर मिस्र के एक प्रसंग के जरिए जवाब दिया, “मिस्टर मलिक क्या मिस्र में जो हुआ उससे आप परिचित हैं? मैं सिखों के साथ वही करूंगा जो जघलुल पाशा ने काप्ट (ईसाई अल्पसंख्यकों ) के साथ किया.”

मिस्र की कहानी आगे जारी रखते हुए जिन्ना ने बताया कि काप्ट जब पहली बार पाशा से मिले तो उनके सामने अपनी कुछ मांगें रखीं. पाशा ने उन्हें वापस जाने और सोचकर अपनी सभी मांगे एक कागज पर लिखकर लाने को कहा. फिर जब काप्ट वापस आए तो पाशा ने उनके हाथ से कागज लिया और बिना पढ़े लिखा कि मैं स्वीकार करता हूं. जिन्ना ने यह कहते हुए बात पूरी की,” मैं सिखों के साथ ऐसा ही करूंगा.”

जिन्ना खुद को पाकिस्तान का खुदा मानते थे

मलिक के मुताबिक जिन्ना के इस कथन ने हम लोगों को असमंजस में डाल दिया. हम तय कर चुके थे कि किसी भी हालत में पाकिस्तान स्वीकार नहीं करेंगे और यहां मुसलमानों का यह नेता सिखों को सब कुछ देने की पेशकश कर रहा है. मलिक के मुताबिक उन्होंने कहा कि मिस्टर जिन्ना आप बहुत उदार दिख रहे हैं लेकिन कल्पना कीजिए कि भगवान न करे , जब आपके इन वादों को पूरा करने का समय आए और तब आप ही न रहें तो क्या होगा ? जिन्ना का जवाब बताता है कि मरने के बाद भी पाकिस्तान में अपनी हैसियत को लेकर वे निश्चिंत थे. उन्होंने जवाब था, ” मेरे दोस्त पाकिस्तान में मेरे लफ़्ज़ खुदा के वचन की तरह हैं , उससे कोई पीछे नहीं हटेगा.” जिन्ना के लुभावने वादों के बावजूद सिख उनके झांसे में नहीं आए. मुल्क के बंटवारे के वे विरोधी बने रहे. उनकी आबादी के बड़े हिस्से ने बंटवारे की सबसे ज्यादा पीड़ा झेली.

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