अमेरिका में 150 सालों से डेमोक्रेटिक-रिपब्लिकन पार्टी का कब्जा क्यों, मस्क के सामने कितनी बड़ी चुनौती?

Challenges for Elon Musk and America Party: दुनिया के सबसे अमीर शख्स और बिजनेसमैन एलन मस्क ने अपनी पॉलिटिकल पार्टी लॉन्च कर दी है. इसका नाम है अमेरिका पार्टी. इसके साथ ही ट्रंप के सामने बड़ी चुनौती यहां के टू-पार्टी सिस्टम को मात देना है. जानिए, अमेरिका में पिछले 150 सालों से डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी का दबदबा क्यों, मस्क के सामने कितनी बड़ी चुनौती?

Jul 8, 2025 - 17:29
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अमेरिका में 150 सालों से डेमोक्रेटिक-रिपब्लिकन पार्टी का कब्जा क्यों, मस्क के सामने कितनी बड़ी चुनौती?
अमेरिका में 150 सालों से डेमोक्रेटिक-रिपब्लिकन पार्टी का कब्जा क्यों, मस्क के सामने कितनी बड़ी चुनौती?

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ तनातनी के बाद दुनिया के सबसे अमीर बिजनेसमैन एलन मस्क ने अपनी नई पार्टी बना ली है, जिसका नाम रखा है अमेरिका पार्टी. ट्रंप के बिग ब्यूटीफुल बिल के खिलाफ खड़े मस्क ने चेतावनी तक दी थी कि अगर यह बिल पास हुआ तो वह नई पार्टी बनाएंगे.

उन्होंने ऐसा किया भी पर सवाल उठता है कि वह राजनीति में कितने सफल होंगे? अमेरिका में जहां पिछले 150 सालों से डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी का ही दबदबा है वहां मस्क के सामने कितनी बड़ी चुनौती है?

बहुदलीय सिस्टम पर दो ही दलों का दबदबा

वैसे कहने को तो अमेरिका में बहुदलीय सिस्टम है और कई पार्टियां अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव में उतरती हैं पर असल में वहां दो ही दलों का दबदबा रहा है. अमेरिका की राजनीति में रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी ही हावी रही हैं और इन्हीं में से कभी एक पार्टी की तो कभी दूसरी पार्टी की सरकार बनती रही है. वैसे इन दोनों पार्टियों के अलावा अमेरिका में रिफॉर्म पार्टी, लिबरटेरियन पार्टी, सोशलिस्ट पार्टी, नेचुरल लॉ पार्टी, कॉन्स्टिट्यूशन पार्टी और ग्रीन पार्टी आदि भी हैं, जिन्हें थर्ड पार्टी या तीसरी पार्टियां कहा जाता है पर चुनावों में इनकी भूमिका नगण्य ही रही है.

Us Political System And How Many Political Party In Us

थर्ड पार्टियों का क्या हुआ हश्र?

दरअसल, समय-समय पर अमेरिकी में भी नई-नई पार्टियां बनती और खत्म होती रही हैं. इन्हीं में से एक है रिफॉर्म पार्टी, जिसे बनाने वाले थे हेनरी रॉस पेरोट. एलन मस्क की ही तरह हेनरी रॉस पेरोट भी अमेरिका के एक प्रसिद्ध बिजनेसमैन हैं, जिन्होंने गरीबी से निकलकर बड़ा व्यावसायिक साम्राज्य खड़ा किया. यह साल 1992 की बात है, रॉस पेरोट ने अचानक एक टॉक शो में घोषणा कर दी कि वह स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में राष्ट्रपति का चुनाव लड़ेंगे.

अरबपति बिजेसमैन रॉस पेरोट को साल 1992 के राष्ट्रपति चुनाव में 19 फीसदी वोट भी मिल गए पर वह किसी काम के नहीं थे, क्योंकि किसी भी अमेरिकी राज्य में वोटों के मामले में वह पहले नंबर पर नहीं आए. इसके अलावा उनको कोई इलेक्टोरल कॉलेज वोट भी नहीं मिला. वहीं, साल 1912 में राष्ट्रपति थियोडोर रूजवेल्ट ने एक पार्टी बनाई थी बुल मूस. इस पार्टी ने 88 इलेक्टोरियल वोट हासिल किए थे. हालांकि, इसके बाद पार्टी अगले अमेरिकी चुनाव तक भी नहीं टिक पाई थी. इनके अलावा अन्य तीसरी पार्टियां भी अमेरिका के चुनाव में कभी प्रभाव नहीं दिखा पाईं.

एक प्रगतिशील तो दूसरी पारंपरिक सोच वाली पार्टी

दूसरी ओर, साल 1828 में स्थापित डेमोक्रेटिक पार्टी अमेरिका की सबसे पुरानी सक्रिय राजनीतिक पार्टी है. इस पार्टी की जड़ें साल 1790 के दशक में थॉमस जेफरसन और जेम्स मैडिसन द्वारा बनाई गई डेमोक्रेटिक-रिपब्लिकन पार्टी से जुड़ी हैं. एंड्रू जैक्सन ने बाद में इसका मजबूत संगठनात्मक ढांचा खड़ा किया और यह पार्टी आम जनता की आवाज बनकर उभरने लगी. आज इसको अमेरिका की सबसे प्रगतिशील विचारधारा वाली पार्टी माना जाता है. वहीं, दास प्रथा का विरोध करने वाले नेताओं ने साल 1854 में रिपब्लिकन पार्टी बनाई थी. साल 1860 में अब्राहम लिंकन इसी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में पहले राष्ट्रपति बने थे. यह पार्टी पहले समानता और स्वाधीनता की विचारधारा वाली मानी जाती थी पर समय के साथ यह एक पारंपरिक और राष्ट्रवादी सोच वाली पार्टी बन गई.

Us Elections

अमेरिका में डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी का दबदबा रहा है.

अमेरिका में क्यों डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन का दबदबा?

अब डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी का वैचारिक अंतर ही अमेरिका की राजनीति का आधार है. डेमोक्रेटिक पार्टी समाज में समानता के लिए सरकारी मदद को प्राथमिकता देती है तो रिपब्लिकन पार्टी व्यक्तिगत स्वाधीनता के साथ पारंपरिक मूल्यों को बढ़ावा देती है. अमेरिका के आम वोटर भी इन्हीं दो पार्टियों के हिमायती हैं. वैसे भी कई महान अमेरिकी नेता इन्हीं दो पार्टियों से निकले हैं. इनमें फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट, जॉन एफ कैनेडी, बराक ओबामा, अब्राहम लिंकन, रोनाल्ड रीगन, जॉर्ज बुश और डोनाल्ड ट्रंप आदि शामिल हैं. इन दोनों पार्टियों की आपसी वैचारिक प्रतिस्पर्धा अमेरिका के लोकतंत्र को जीवंत बनाए रखती है. इसीलिए वहां इन दोनों पार्टियों का ही दबदबा लंबे समय से चला आ रहा है.

अमेरिका का चुनावी सिस्टम भी ऐसा है, जो टू-पार्टी सिस्टम को ही सपोर्ट करता है. फिर अमेरिकी मतदाता मानते हैं कि ऐसी छोटी-मोटी पार्टियां चुनाव में केवल वोट काटने के लिए खड़ी होती हैं. इसलिए आम लोग ऐसी पार्टियों को वोट ही नहीं देते. इनके अलावा छोटी पार्टियों के सामने सबसे बड़ी दिक्कत आती है फंडिंग की. चुनाव के लिए धन जुटाना इनके लिए मुश्किल होता है. कुछ समय के भले इनको मीडिया में चर्चा मिल जाए पर अधिकतर मामलों में मीडिया में इनको जगह नहीं मिलती. अगर धन भी हो और मीडिया में चर्चा भी तो नई पार्टियों के पास आमतौर पर कोई संगठन नहीं होता.

उदाहरण के लिए रॉस पेरोट ने जब साल 1992 में रिफॉर्म पार्टी बनाई और चुनाव में उतरे तो उनके पास फंड की कमी नहीं थी. उन्होंने प्रचार पर लगभग 6.3 करोड़ रुपये खर्च कर दिए. प्रचार के दौरान जून 1992 में एक समय ऐसा आता, जब उनकी लोकप्रियता डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन उम्मीदवारों से आगे निकल गई थी. इसके बावजूद उनको सफलता नहीं मिली, क्योंकि अमेरिकी जनता ऐसी किसी वोट काटने वाली पार्टी या फिर अचानक बिना आधार के चुनाव में उतरने वाली पार्टी को वोट देने को तैयार ही नहीं होती.

Elon Musk Us Party

अमेरिका की सियासत में एलन मस्क की नई पार्टी की एंट्री

एलन मस्क के सामने कितनी बड़ी चुनौती?

एक और अहम बात यह है कि रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टियां कई बार विचारधारा में अंतर के बावजूद राष्ट्रहित के मुद्दों पर एक जैसा सोचती हैं और ऐसे में इन दोनों दलों की राजनीति मध्यमार्गी हो जाती है. कई बार तो ऐसा होता है कि कई अहम मुद्दों को लेकर दोनों को विचारों में मामूली अंतर होता है या फिर कोई अंतर होता ही नहीं है. खासकर विदेश मामलों में कई बार ये दोनों ही पार्टियां अपनी विचारधारा के उलट जाकर भी अमेरिकी हित में फैसले लेती हैं. इसीलिए इनके सामने किसी और का टिक पाना बेहद कठिन होता है और यही एलन मस्क के सामने भी सबसे बड़ी चुनौती है.

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