धनिया की पंजीरी का महत्व: जन्माष्टमी पर पूजा थाली में इसे शामिल करना क्यों आवश्यक है?

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यदि जन्माष्टमी की पूजा में धनिया की पंजीरी शामिल न की जाए, तो पूजा अधूरी मानी जाती है। इस पंजीरी को न केवल घरों में बल्कि मंदिरों में भी भगवान को अर्पित किया जाता है। कई लोग जन्माष्टमी के व्रत का पारण भी इसी पंजीरी से करते हैं।

Aug 26, 2024 - 14:30
Aug 26, 2024 - 15:23
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धनिया की पंजीरी का महत्व: जन्माष्टमी पर पूजा थाली में इसे शामिल करना क्यों आवश्यक है?

धनिया की पंजीरी का महत्व: जन्माष्टमी पर पूजा थाली में इसे शामिल करना क्यों आवश्यक है?

आज 26 अगस्त 2024 को जन्माष्टमी का पर्व मथुरा नगरी समेत पूरे देश-विदेश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को, जब रोहिणी नक्षत्र के समय भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था, इस दिन को विशेष पूजा-अर्चना और उत्सव के रूप में मनाया जाता है। जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण को धनिया की पंजीरी का भोग लगाना विशेष महत्व रखता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण को धनिया की पंजीरी अत्यधिक प्रिय है, और इसे अर्पित करने से वह प्रसन्न होते हैं।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यदि जन्माष्टमी की पूजा में धनिया की पंजीरी शामिल न की जाए, तो पूजा अधूरी मानी जाती है। इस पंजीरी को न केवल घरों में बल्कि मंदिरों में भी भगवान को अर्पित किया जाता है। कई लोग जन्माष्टमी के व्रत का पारण भी इसी पंजीरी से करते हैं।

जन्माष्टमी 2024 का शुभ मुहूर्त: भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 25 अगस्त 2024, रविवार को रात 3 बजकर 39 मिनट पर हुई थी और इसका समापन 26 अगस्त 2024, सोमवार को रात 2 बजकर 19 मिनट पर होगा। लड्डू गोपाल की पूजा का शुभ मुहूर्त 27 अगस्त की रात 12 बजकर 1 मिनट से 12 बजकर 45 मिनट तक है।

भोग मंत्र: लड्डू गोपाल को भोग अर्पित करते समय निम्नलिखित मंत्र का जाप करें: "त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये। गृहाण सम्मुखो भूत्वा प्रसीद परमेश्वर।।"

भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए इस मंत्र के साथ धनिया की पंजीरी, माखन मिश्री, फल, मिठाई समेत अन्य चीजों का भोग लगाएं। इससे कान्हा जी की कृपा प्राप्त होगी और उनका आशीर्वाद बना रहेगा।

कृष्ण जन्माष्टमी एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है जो भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिवस के अवसर पर मनाया जाता है। यह त्योहार भारतीय पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को पड़ता है, जो आमतौर पर अगस्त या सितंबर में आता है।

त्योहार की महत्वता:

कृष्ण जन्माष्टमी को विशेष रूप से भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की खुशी में मनाया जाता है। भगवान कृष्ण, जिन्हें भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रूप में पूजा जाता है, ने धर्म की स्थापना के लिए कई महत्त्वपूर्ण कार्य किए। उनका जन्म मथुरा में देवकी और वासुदेव के घर हुआ था।

उपलब्धि और उत्सव:

  1. रात्री जागरण और भजन-कीर्तन: कृष्ण जन्माष्टमी की रात को भक्त जागरण करते हैं और भजन-कीर्तन करके भगवान कृष्ण की भक्ति में रत रहते हैं। विशेष रूप से "कृष्णाष्टक्शरी" जैसे भजन गाए जाते हैं।

  2. मटकी फोड़ और अन्य खेल: इस दिन, विशेष रूप से 'डांडीya' या 'मटकी फोड़' जैसे पारंपरिक खेल खेले जाते हैं। इसमें समूह के लोग एक मटकी को ऊँचाई पर लटका देते हैं और उस मटकी को फोड़ने के लिए लोगों को एक दुसरे के ऊपर चढ़कर मटकी को तोड़ना पड़ता है।

  3. रात्री को पूजा और आरती: कृष्ण जन्माष्टमी की रात को विशेष पूजा और आरती की जाती है। कई मंदिरों में भगवान कृष्ण की विशेष सजीवता से सजावट की जाती है और झांकियाँ भी प्रस्तुत की जाती हैं।

  4. प्रसाद और व्रत: भक्तजन इस दिन विशेष व्रत रखते हैं और भगवान कृष्ण को फल, मिठाइयाँ और अन्य प्रसाद अर्पित करते हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी की विशेषता:

यह त्योहार भक्तों को भगवान कृष्ण के जीवन और उनकी शिक्षाओं के बारे में याद दिलाता है। कृष्ण के अद्वितीय गुण, जैसे उनके प्यार, करुणा और न्यायप्रियता को उत्सव के माध्यम से मनाया जाता है।

आपको इस पावन पर्व की शुभकामनाएँ!

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