रियासत वाले गांव में समृद्धि की विरासत
मोदी सरकार के कजट में लखपति वनाने की योजना से पहले ही कई महिलाएं लखपति वन चुकी
रियासत वाले गांव में समृद्धि की विरासत
मुगलकालीन रियासत वाला
वहां कभी रानी सरला का राज चलता था। अव वह नहीं हैं मगर, कोठी में संजोकर रखी गई वस्तुओं से उनकी यादें ताजा हैं। इस रियासत से ही गांव की पहचान है। अव वदले दौर में स्वयं सहायता समूहों से समृद्धि की राह पर चलकर लखपति बनने का सफर तथ करने वाली दीदियां भी गांव में बडी विरासत खड़ी कर रही हैं। 40 समूह इस गांव में चल रहे हैं। इनसे जुड़कर 400 महिलाएं आत्मनिर्भर वन चुकी हैं। मोदी सरकार के कजट में लखपति वनाने की योजना से पहले ही कई महिलाएं लखपति वन चुकी हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान प्रगति के पथ पर आगे वढ रही दीदियों का मन टटोला तो उन्होंने अपनी समृद्धि की कहानी साझा की। एक सुर में कहा कि देश को ऐसी सरकार की जरूरत है, जो महिलाओं को स्वावलंबी व आत्मनिर्भर वनाने के पथ पर अग्रसर हो। गांव की दशा व दिशा पर सौरव
अनीता बनीं लखपति, बनाए 27 स्वयं सहायता समूह
गजरीता के सलेमपुर गोसाई गाँव में अगर स्वयं सहायता समूह का जिक्र करते हैं तो सबसे पहले अनीता देवी का नाम आता है। गांव में सबसे पहले उन्होंने ही 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने पर शक्ति स्वयं सहायता समूह बनाया था। उन्होंने बताया कि जब वह समूह से जुड़ी थी, तो घर की. आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी और पति एक दुकान पर काम करते थे। फिर मैहनत की और गंव में 27 समूहों का गठन किया। वह स्वयं सहायता समूह की कमाई से चार एजेंसियां चला रही हैं। इसमें बिस्कुट, पापड़, मेहंदी व जूने शामिल हैं। हर साल तीन लाख रुपये की आमदनी होती है। ग्राम संगठन की भी वह अध्यक्ष हैं
कितनी बदली जिंदगी नारी सशक्तीकरण
'स्वयं सहायता समूह में प्रगृति होने पर उन्होंने अपने पति पुनीत को समुह से ऋण लेकर कारोबार करवाया है। शुरुआत सिलाई और साड़ियों की पीको से की थी मगर, अब बड़ा नाम और काम कर लिया है। न सिर्फ परिवार की आर्थिक स्थिति सुधरी है बल्कि, बच्चों को थी पढ़ा-लिखाकर शिक्षित बनाया है। उनका कहना है कि पहले सरकारी स्कूलों के बच्चों की यूनिफार्म बनाने का कार्य भी स्वयं सहायता समूह पर था, जो बंद कर दिया। अब सीधा रुपया खाते में जाता है। इससे अभिभावक यूनिफार्म भी नहीं बनवाते हैं। इसलिए यूनिफार्म बनाने का कार्य फिर से समूहों को मिल जाएं तो बेहतर हो जाएगा।
नौ माह में सात गुणा हुई लखपति दीदियां
सुखद अहसास इस बात का है कि गांव की दीदियों के लखपति बनने का सिलसिला तेजी से जारी है। मुख्य विकास अधिकारी अश्वनी कुमार मिश्र बताते है कि जुलाई में लखपति दीदियों की संख्या 2,122 थी। आज लखपत्ति दीदियों की संख्या बढ़कर 13,430 हो गई है। गांव कपासी की हेमलता वमंजू, हरियाना की निशा, मछरई की नीतू गौतम और तहतपुर हसनपुर की काजल प्रतिवर्ष पांच लाख से अधिक कमा रही है। तीन लाख से अधिक कमाने वाली दीदियों की संख्या 41 है
गुड़िया की भी चल पड़ी कारोबारी गाड़ी
शिव स्वय सहायता समूह से जुड़ी गुड़िया देवी ने लगभग चार साल पहले शुरूआत की थी। उन्होंने बताया कि डेढ़ लाख रुपये का ऋण लेकर चप्पल बनाने व वकरी पालन का कार्य शुरू किया था और अब दोनों ही कार्यों में सफलता मिली है। चप्पल बनाने के कारोवार ने उन्हें पहचान भी दिलवा दी है। दिल्ली से चामल बनाने की सामग्री लाकर घर हो तैयार करती है और फिर बाजारों में बिक्री के लिए भेजती हैं और ऋण भी चुका दिया है। सालाना डेढ़ से दो लाख रुपये बकरी पालन व चप्पलों के कारोवार से कमा रही है। स्वय सहायता समूहों पर केंद्र व प्रदेश सरकार ने ध्यान दिया है।
पूजा के प्रयास से गूंजा पति का डीजे कारोबार
पूजा रानी तुलसी स्वयं सहायता समूह से जुड़ी हुई हैं। लगभग तीन साल पहले शुरूआत की थी। उन्होंने बताया कि डेढ़ लाख रुपये का ऋण स्वयं सहायता समूह से लेकर अपने पति के डीजे के कारोबार में लगकए। अब स्थिति है कि ऋण लगभग चुका दिया है और कारोबार भी चलने लग गया है। यानी, पहले छोटा सिस्टम हुआ करता था। अब बड़े स्तर की बुकिंग मिलती है और सामान भी बड़ा है। सीजन में एक लाख रुपये से अधिक की आमदनी हो जाती है। मानिए समूह से ही समृद्धि की राह आसान हुई है।
रजनी ने स्वयं सहायता समूह के रुपये से खोला ब्यूटी पार्लर
रजनी का कहना है कि वह हरिक्रपा स्वयं सहायता समूह से जुड़ी हैं। कोरोना की वजह से पति के कारोवार की स्थिति बिगड़ी तो 50 हजार रुपये का ऋण अपने समूह के नाम पर लेकर गाव में ही ब्यूटी पार्लर खोला। अब वह कारोबार भी रफ्तार पकड़ रहा है। कारोबार में मेहनत कर सालाना डेढ़ लाख रुपये कमा लेती हैं
चमक गई सुमन की किस्मत, कमा रहीं प्रतिवर्ष दो लाख
गांव की सुमन देवी ने लगभग साढ़े तीन साल पहले शिव स्वयं सहायता समूह से जुडी थे। उन्होंने बताया कि लाकडउन में उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बेपटरी हो गई थी। फिर उन्होंने एक लाख रुपये का ऋण लेकर गांव में फास्ट-फूड का ठेला लगाकर काम की शुरूआत की थी। सालाना दो लाख रुपये की आमदनी करती है।
What's Your Reaction?