कंद मूल खाने वालों से मांसाहारी डरते थे

मन मंदिर में बसने वाला शाकाहारी "राम" था।।

Feb 24, 2024 - 12:04
Feb 24, 2024 - 12:14
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कंद मूल खाने वालों से मांसाहारी डरते थे

कंद मूल खाने वालों से
मांसाहारी डरते थे।।

पोरस जैसे शूरवीर को
नमन "सिकंदर" करते थे।।

चौदह वर्षों तक खूंखारी
वन में जिसका धाम था।।

मन मंदिर में बसने वाला
शाकाहारी "राम" था।।

चाहते तो खा सकते थे वो
मांस पशु के ढेरों में।।

लेकिन उनको प्यार मिला
"शबरी" के झूठे बेरों में।।

चक्र सुदर्शन धारी थे
गोवर्धन पर भारी थे।।

मुरली से वश करने वाले
गिरधर शाकाहारी थे।।

पर-सेवा, पर-प्रेम का परचम
चोटी पर फहराया था।।

निर्धन की कुटिया में जाकर
जिसने मान बढ़ाया था।।

सपने जिसने देखे थे
मानवता के विस्तार के।।

तुलसी जैसे महा-संत थे
वाचक शाकाहार के।।

उठो जरा तुम पढ़ कर देखो
गौरवमय इतिहास को।।

आदम से आदि तक फैले
इस नीले आकाश को।।

दया की आँखें खोल देख लो
पशु के करुण क्रंदन को।।

इंसानों का जिस्म बना है
शाकाहारी भोजन को।।

अंग लाश के खा जाए
क्या फिर भी वो इंसान है ?

पेट तुम्हारा मुर्दाघर है
या कोई कब्रिस्तान है ?

आँखें कितना रोती है जब
उंगली अपनी जलती है।।

सोचो उस तड़पन की हद
जब जिस्म पर ही चलती है।।

बेबस्ता तुम पशु की देखो
बचने के आसार नहीं।।

जीते जी तन कट जाए,
उस पीड़ा का पार नही।।

खाने से पहले बिरयानी
चीख जीव की सुन लेते।।

करुणा के वश होकर तुम भी
गिरी गिरनार को चुन लेते

शाकाहारी बनो...!!

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