भारत में प्राकृतिक खेती: अंकुरण की दिशा में बढ़ते कदम, जड़ें मजबूत हो रही हैं

भारत में प्राकृतिक खेती: टिकाऊ और पर्यावरण-अनुकूल कृषि की दिशा में कदम भारत में प्राकृतिक खेती तेजी से लोकप्रिय हो रही है, हालांकि यह अभी भी अपनाने के प्रारंभिक चरण में है। यह रसायन-प्रधान कृषि से प्राकृतिक और टिकाऊ कृषि पद्धतियों की ओर एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत है। प्राकृतिक खेती, विशेषकर सुभाष पालेकर द्वारा समर्थित शून्य बजट प्राकृतिक खेती (ZBNF), में सिंथेटिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाता। इसके बजाय, स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों जैसे गाय के गोबर, मूत्र और स्वदेशी बीजों का उपयोग किया जाता है, जो न केवल पर्यावरण को बचाते हैं, बल्कि किसानों को लागत भी कम करते हैं।

Nov 19, 2024 - 06:20
Nov 19, 2024 - 06:39
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भारत में प्राकृतिक खेती: अंकुरण की दिशा में बढ़ते कदम, जड़ें मजबूत हो रही हैं
भारत में प्राकृतिक खेती

प्राकृतिक खेती में प्रगति: सरकारी समर्थन और जमीनी स्तर पर आंदोलन

  1. सरकारी समर्थन
    भारत सरकार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाओं पर काम कर रही है। परम्परागत कृषि विकास योजना (PKVY) और भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (BPKP) जैसी पहलें राज्यों में प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित कर रही हैं। राज्य जैसे आंध्र प्रदेश, गुजरात और हिमाचल प्रदेश इस दिशा में अग्रणी हैं। इन राज्यों में प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने के लिए सरकारी और गैर-सरकारी प्रयास मिलकर काम कर रहे हैं।

  2. जमीनी स्तर पर आंदोलन
    किसानों और संगठनों द्वारा प्राकृतिक खेती के लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ाने की कोशिशें जारी हैं। कई किसान सफलता की कहानियाँ साझा कर रहे हैं और एक दूसरे को प्रशिक्षित कर रहे हैं। विशेष रूप से सूखा-प्रवण क्षेत्रों में प्राकृतिक खेती को अपनाने से किसानों को लाभ हुआ है। यह आंदोलन अब पूरी तरह से जमीनी स्तर पर फैल चुका है।

  3. पर्यावरणीय लाभ
    प्राकृतिक खेती से पर्यावरण को कई लाभ होते हैं। यह मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने, पानी का संरक्षण करने और जैव विविधता को बढ़ावा देने में मदद करता है। इसके अलावा, यह जलवायु परिवर्तन के खिलाफ भी एक मजबूत कदम है, क्योंकि यह पर्यावरण के अनुकूल कृषि पद्धतियाँ अपनाता है।

चुनौतियाँ: रास्ते में अड़चनें और समाधान

  1. ज्ञान की कमी
    कई किसानों को प्राकृतिक खेती के बारे में सही जानकारी नहीं है और उन्हें इस पद्धति को अपनाने के लिए उचित प्रशिक्षण की आवश्यकता है। किसानों तक सही जानकारी पहुंचाने के लिए सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों को मिलकर काम करना होगा।

  2. प्रारंभिक संक्रमण की समस्याएँ
    प्राकृतिक खेती अपनाने के शुरुआती वर्षों में किसान अक्सर कम पैदावार का सामना करते हैं, जो उन्हें इस पद्धति को छोड़ने के लिए प्रेरित कर सकता है। हालांकि यह एक दीर्घकालिक लाभ प्रदान करने वाली प्रणाली है, शुरुआती कठिनाइयाँ किसानों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती हैं।

  3. बाजार तक पहुंच की समस्या
    रसायन-मुक्त उत्पादों की उपभोक्ता मांग बढ़ रही है, लेकिन इन उत्पादों के लिए एक विश्वसनीय बाजार और प्रीमियम मूल्य निर्धारण प्रणाली अभी भी विकसित हो रही है। किसानों को अपने उत्पादों के लिए उचित बाजार संपर्क की आवश्यकता है, ताकि वे अपनी मेहनत का सही मूल्य प्राप्त कर सकें।

  4. नीति और पैमाना
    सरकार ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएँ बनाई हैं, लेकिन इन्हें बड़े पैमाने पर लागू करने के लिए एक मजबूत और व्यापक नीति ढांचा की आवश्यकता है। बिना इस ढांचे के, प्राकृतिक खेती को बड़े स्तर पर फैलाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

आगे का रास्ता: प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के उपाय

  1. किसानों के लिए उन्नत प्रशिक्षण और विस्तार सेवाएँ
    प्राकृतिक खेती को सफल बनाने के लिए किसानों को सही प्रशिक्षण देना आवश्यक है। उन्हें यह समझाना होगा कि रसायन-मुक्त खेती से उन्हें दीर्घकालिक लाभ मिलेंगे, भले ही शुरुआती वर्षों में कुछ कठिनाइयाँ आएं।

  2. सशक्त विपणन तंत्र और प्रमाणन प्रणाली
    प्राकृतिक खेती के उत्पादों के लिए एक मजबूत बाजार तंत्र और प्रमाणन प्रणाली की आवश्यकता है। यदि किसानों को उनके उत्पादों के लिए उचित मूल्य मिलता है, तो वे इस पद्धति को अपनाने में अधिक रुचि दिखाएँगे।

  3. अनुसंधान और विकास में निवेश
    प्राकृतिक खेती के तरीकों को और अधिक वैज्ञानिक रूप से मान्य बनाने के लिए निरंतर अनुसंधान और विकास आवश्यक है। यह न केवल किसानों को सही मार्गदर्शन देगा, बल्कि प्राकृतिक खेती के तरीकों को और अधिक प्रभावी बनाएगा।

  4. समुदाय-संचालित जागरूकता कार्यक्रम
    प्राकृतिक खेती के दीर्घकालिक लाभों को समझाने और इसके महत्व को बढ़ाने के लिए समुदायों में जागरूकता बढ़ाने के प्रयास किए जाने चाहिए। यह जागरूकता किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के बीच प्राकृतिक खेती के लिए एक सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने में मदद करेगी।

- प्राकृतिक खेती का भविष्य -

भारत में प्राकृतिक खेती को एक स्थायी और लाभकारी कृषि पद्धति के रूप में अपनाने की पूरी क्षमता है। यह केवल पर्यावरण के लिए फायदेमंद नहीं है, बल्कि किसानों के लिए भी दीर्घकालिक लाभ प्रदान करती है। हालांकि इसके रास्ते में कुछ चुनौतियाँ हैं, लेकिन सही दिशा में उठाए गए कदम इसे एक क्रांतिकारी परिवर्तन बना सकते हैं। किसानों को आवश्यक प्रशिक्षण, उपयुक्त बाजार प्रणाली और सरकार से पर्याप्त समर्थन मिलने पर प्राकृतिक खेती भारत के कृषि परिदृश्य को पूरी तरह बदल सकती है।

लेखक: विजय गर्ग

Vijay Garg

सेवानिवृत्त प्रिंसिपल, शैक्षिक स्तंभकार, स्ट्रीट कौर चंद, एमएचआर मलोट, पंजाब

VIJAY GARG विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब vkmalout@gmail.com