UP वाराणसीः शैवाल से जैव ईंधन बनाने की ओर बढ़ रहे कदम

विज्ञानियों का कहना है कि दुनिया में जीवाश्म ईंधन सीमित मात्रा में है।

Apr 26, 2024 - 08:50
Apr 26, 2024 - 09:47
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UP वाराणसीः शैवाल से जैव ईंधन बनाने की ओर बढ़ रहे कदम

शैवाल से जैव ईंधन बनाने की ओर बढ़ रहे कदम 

बीएचयू के विज्ञानियों ने किया महत्वपूर्ण शोध, अमेरिका में भी शुरू हुआ अध्ययन

वाराणसीः वैश्विक स्तर पर पेट्रोल और डीजल की मांग लगातार बढ़ रही है। ऐसे में कार्बन डाइआक्साइड के उत्सर्जन पर रोक लगाने का हर उपाय नाकाम सिद्ध हो रहा है। ऐसे में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग में टिकाऊ और अक्षय उर्जा के स्रोत की खोज की गई है। विज्ञानियों ने निष्प्रयोज्य पानी के सूक्ष्म शैवाल से जैव ईंधन तैयार करने में सफलता पाई है। जैव ईंधन का उपयोग बढ़ाकर कार्बन डाइआक्साइड का उत्सर्जन घटाया जा सकता है।


अभी जैव ईंधन बनाने का प्रोजेक्ट आरंभिक चरण में है, लेकिन शैवालों की कम उत्पादकता व अधिक उत्पादन लागत जैसी बड़ी चुनौतियों का समाधान खोजने का प्रयास हो रहा है। फिलहाल जैव ईंधन को वाहनों के इस्तेमाल के लायक बनाया जा रहा है। बताया गया कि अभी एक लीटर जैव ईंधन का उत्पादन करने में करीब 84 रुपये का खर्च आ रहा है। हालांकि जब बड़े स्तर पर उत्पादन किया जाएगा तो इसके 30 रुपये प्रति लीटर आने की उम्मीद है। निर्मित तेल पर अमेरिकन सोसाइटी फार टेस्टिंग एंड मैटेरियल्स के विज्ञानियों ने अध्ययन शुरू किया है। वह परीक्षण के बाद अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचेंगे कि निर्मित तेल को और प्रभावशाली कैसे बनाया जाए। इस तेल को यूरोपीय मानकों के अनुरूप भी ढाला जा रहा है।

लवणता तनाव से शैवाल करते हैं ट्राइग्लिसरायड का उत्पादनः वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रो. आरके गुप्ता ने बताया कि शैवाल के बायोमास और ऊर्जा निहित अणुओं को बढ़ाने के लिए नया तरीका बेहद कारगर सिद्ध हुआ है। लवणता तनाव के उत्पादन करते हैं। यह जैव ईंधन का प्रमुख कारक है। सिनेडस्मस सुक्ष्म शैवाल गंदे अनुपयोगी पानी में पाया जाता है। सबसे पहले इसे शुद्ध करने के बाद एक्सट्रैक्ट को निकाला जाता है, लेकिन बड़े स्तर पर इसे विकसित करने के लिए नमक की मात्रा बढ़ाई जाती है। इससे लिपिड में वृद्धि होती है। इसका कारण यह है कि शैवाल से जैव ईंधन का उत्पादन करने के लिए यह प्रक्रिया अपनाना बेहद जरूरी है। ट्रांसएस्टरीफिकेशन प्रक्रिया के उपरांत ट्राइग्लिसरायड को जैव ईंधन के रूप में परिवर्तित कर दिया जाता है।

दो प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल में हो चुका है प्रकाशन 

विज्ञानियों का कहना है कि दुनिया में जीवाश्म ईंधन सीमित मात्रा में है। मृत जानवरों और पेड-पौधों के अवशेष दीर्घ काल में जीवाश्म ईधन का रूप लेते हैं, लेकिन इस प्रक्रिया में लाखों वर्ष लगते हैं। जैव ईंधन बनाने के लिए अभी तक रतनजोत (जेट्रोफा) के पौधे का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके बीजो 

से जैव ईंधन प्राप्त होता है, लेकिन हरित शैवाल ने जैव ईंधन उत्पादन की दिशा में अच्छी पहल की है। इस अध्ययन में शोधार्थी राहुल प्रसाद सिंह व प्रिया यादव शामिल हैं। स्विट्जरलैंड के दो जर्नल माइक्रोआर्गेनिज्म और फंट्रियर इन माइक्रोबायोलाजी में यह अध्ययन प्रकाशित हो चुका है।

वाराणसी के बीएचयू  विज्ञानियों  पेट्रोल डीजल खोज 

बीएचयू के प्रो. राजन कुमार गुप्ता व शोधार्थी राहुल सिंह व प्रिया यादव समेत प्रो. बीएचयू

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