कश्मीर के मंदिरों में लौटी रौनक ... संतों को भी किया जाने लगा याद

श्रीनगर में शिव भक्त संत गोपीनाथ की जयंती पर पूजा-अर्चना की गई सौ साल पहले बनाया आश्रम आतंकी हिंसा में हो गया था बंद, फिर खुला

Jul 19, 2024 - 19:51
Jul 20, 2024 - 06:23
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कश्मीर के मंदिरों में लौटी रौनक ... संतों को भी किया जाने लगा याद

कश्मीर के मंदिरों में लौटी रौनक, संतों को भी किया जाने लगा याद

श्रीनगर में शिव भक्त संत गोपीनाथ की जयंती पर पूजा-अर्चना की गई  सौ साल पहले बनाया आश्रम आतंकी हिंसा में हो गया था बंद, फिर खुला  

कश्मीर में जहां आतंकी हिंसा के चलते बीते 30-34 वर्षों से बंद पड़े मंदिर धीरे-धीरे खुल रहे हैं और श्रद्धालु विशेष अवसर व तीज त्योहार पर इन मंदिरों में फिर से पूजापाठ करने लगे हैं। प्रसिद्ध संतों के जन्म व निर्वाण दिवसों को भी मनाया जाने लगा है। इसी संदर्भ में वीरवार को संत गोपीनाथ की जयंती वीरवार को धार्मिक श्रद्धा से मनाई गई। इस अवसर पर श्रीनगर के गणपतयार इलाके में सौ साल पहले बनाये गए उनके आश्रम में विशेष पूजा-अर्चना की गई। इसमें घाटी में रह रहे हिंदुओं के अलावा यहां से पलायन कर चुके कश्मीरी हिंदुओं ने घर वापसी के लिए प्रार्थना की। गोपीनाथ शिव के भक्त थे। उन्होंने गणपतयार में तपस्या की थी। उन्होंने सौ साल पहले आश्रम की स्थापना की थी।

कश्मीर में उन्हें भगवान गोपी बब नाम से भी पुकारा जाता है। कश्मीर में आतंकवाद के दौर में यहां मंदिरों के साथ यह आश्रम भी बंद हो गया था। अलबत्ता, बीते चंद वर्षों के बाद इस आश्रम में गतिविधियां शुरू हो गई थीं और संत गोपीनाथ के जन्मदिवस पर इस आश्रम में विशेष पूजा अर्चना का सिलसिला फिर से शुरू हो गया था। आश्रम की देखरेख कर रहे भगवान गोपीनाथ ट्रस्ट के एक सदस्य प्यारेलाल पंडित ने कहा कि 1990 से पहले भी हम भगवान गुपी बब की जयंती मनाया करते थे। इसमें समूची घाटी में रह रहे हिंदू शामिल हुआ करते थे।


प्यारे लाल ने बताया कि आश्रम में तकरीबन 200 लोगों के ठहरने की क्षमता  थी। घाटी के दूरदराज इलाकों से आए श्रद्धालुओं को इसी आश्रम में ठहराया जाता था। संत गोपीनाथ की जयंती पर उनकी प्रतिमा पर फलों, चावल व दूध का भोग चढ़ाया जाता था। पूजा के बाद आश्रम के पड़ोस में रहने वाले मुस्लिम लोगों में रोठ (एक प्रकार की कश्मीरी रोटी जिसे मैदा और शक्कर से बनाया जाता है) प्रसाद के तौर पर बांटी जाती थी। 1990 की आतंकी हिंसा में कश्मीरी हिंदुओं के सामूहिक पलायन के बाद यह आश्रम भी सूना पड़ गया। कई वर्षों तक आश्रम में सन्नाटा ही पसरा रहा।

पहले की तरह आयोजित होने लगा समारोह: प्यारेलाल ने कहा कि बीते चंद वर्षों से कश्मीर के हालात में आए सुधार के साथ ही इस आश्रम में भी हमने धार्मिक गतिविधियां शुरू कर दी हैं। संत गोपीनाथ के जन्मदिवस पर पहले की तरह समारोह का आयोजन किया जाने लगा है। इस वर्ष पर यहां काफी संख्या में श्रद्धालुओं ने हिस्सा, लिया जिसमें यहां से पलायन कर चुके हमारे हिंदू भाइयों की भी एक बड़ी संख्या शामिल हैं। मुसलमान भी मानते थे संत गोपीनाथ कोः
समारोह में हिस्सा लेने वाले 67 वर्षीय सुदर्शन कौल ने कहा कि हमने 1990 को यहां से दिल्ली पलायन किया था। मैं यहीं भान मोहल्ला में रहता था। मेरे पिता गुपी बब के मुरीद थे। मुझे भी याद है कि जब में छोटा था तो मेरे पिता मुझे गुपी बब के पास इसी आश्रम में लाया करते थे। केवल हिंदू ही नहीं, बल्कि मुसलमान भी संत गोपीनाथ को बहुत मानते हैं। मुझे खुशी है कि आज मुझे फिर से उनके दरबार में आने का अवसर प्राप्त हुआ है।

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