अंतरिम राहत के लिए ठोस आधार जरूरी : सुप्रीम कोर्ट

अंतरिम राहत के लिए ठोस आधार जरूरी : सुप्रीम कोर्ट, Solid basis is necessary for interim relief Supreme Court

May 21, 2025 - 15:45
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अंतरिम राहत के लिए ठोस आधार जरूरी : सुप्रीम कोर्ट
अंतरिम राहत के लिए ठोस आधार जरूरी : सुप्रीम कोर्ट 

अंतरिम राहत के लिए ठोस आधार जरूरी : सुप्रीम कोर्ट 

वक्फ मामला कहा- कानून की संवैधानिकता की धारणा होती है, स्पष्ट मामला न बनने तक कोर्ट हस्तक्षेप नहीं करता 

वक्फ संशोधन कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शुरू हुई बहस, केंद्र सरकार आज रखेगी अपना पक्ष याचिकाकर्ताओं ने कहा- यह कानून वक्फ की सुरक्षा के लिए नहीं, बल्कि इसका उद्देश्य वक्फ पर कब्जा करना सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ पंजीकृत कराने की अनिवार्यता और न कराने के परिणाम पर याचिकाकर्ताओं से पूछे सवाल 

केंद्र ने किया सुनवाई तीन मुद्दों तक सीमित रखने का आग्रह मंगलवार को मामले पर नियमित बहस शुरू होने के पहले केंद्र की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अंतरिम आदेश के पहलू पर सुनवाई तीन मुद्दों तक सीमित रखने का आग्रह किया। कहा- कोर्ट ने ये तीन मुद्दे तय किए थे और उन्हीं पर केंद्र ने जवाब दाखिल किया है। लेकिन सिब्बल ने कहा कि कोर्ट ने ऐसा आदेश नहीं दिया था। अभिषेक मनु सिंघवी ने भी कहा कि सुनवाई टुकड़ों में नहीं हो सकती। 

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि हर कानून के पक्ष में संवैधानिकता की धारणा होती है। अंतरिम राहत पाने के लिए आपको एक बहुत ठोस और स्पष्ट कारण पेश करना होता है, अन्यथा संवैधानिकता की धारणा बनी रहेगी। अदालत तब तक हस्तक्षेप नहीं करती जब तक कि स्पष्ट मामला न बनता हो। चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस आगस्टिन जार्ज मसीह की पीठ ने वक्फ संशोधन कानून 2025 पर अंतरिम रोक लगाने की मांग वाली याचिकाओं पर यह टिप्पणी की।

हालांकि याचिकाकर्ताओं ने कानून को मुसलमानों के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन और वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करने वाला बताते हुए अंतरिम रोक लगाने की मांग की। वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल की दलील थी कि कहा जा रहा है कि यह कानून वक्फ की सुरक्षा के लिए है, जबकि इसका उद्देश्य वक्फ पर कब्जा करना है। सुप्रीम कोर्ट ने भी सुनवाई के दौरान कानून का विरोध कर रहे याचिकाकर्ताओं से वक्फ पंजीकृत कराने की कानूनी अनिवार्यता और पंजीकृत न कराने पर कानूनी परिणाम के बारे में सवाल पूछे। यह भी कहा कि पहले से ही कानून में वक्फ पंजीकृत कराने की बात है और जो वक्फ पंजीकृत हैं, उन पर असर नहीं पड़ेगा। इस पर सिब्बल ने कहा कि जो वक्फ पंजीकृत नहीं है और वक्फ बाई यूजर (उपयोग के आधार पर वक्फ) हैं उनका क्या? नए कानून में हमें वक्फ बाई यूजर में वक्फ करने वाले का नाम और पता बताना होगा और अगर हम नहीं बता पाएंगे तो वे रजिस्टर नहीं करेंगे। मामले में केंद्र सरकार की ओर से बुधवार को पक्ष रखा जाएगा।


सुप्रीम कोर्ट में बहुत-सी याचिकाएं लंबित हैं जिनमें वक्फ संशोधन कानून 2025 की वैधानिकता को चुनौती दी गई है। याचिकाओं में कानून पर अंतरिम रोक लगाने की भी मांग की गई है जबकि केंद्र ने दाखिल किए गए जवाब में कानून को सही ठहराते हुए अंतरिम रोक का विरोध किया है। मंगलवार को अंतरिम आदेश के मुद्दे पर पहले याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने पक्ष रखना शुरू किया। सिब्बल की 

एआइएमआइएम, जमीयत उलमा-ए- हिंद ने दाखिल की हैं याचिकाएं 

वक्फ संशोधन कानून 2025 की संवैधानिकता पर कोर्ट पांच मुख्य याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है जिनमें एआइएमआइएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी व जमीयत उलमा ए हिंद की याचिका शामिल हैं। पिछली सुनवाई पर कोर्ट ने केंद्र की ओर दिए गए आश्वासन को दर्ज किया था। केंद्र सरकार ने कोर्ट को भरोसा दिलाया था कि अगले आदेश तक केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति नहीं की जाएगी। इसके अलावा केंद्र ने यह भी कहा था कि अधिसूचित या पंजीकृत वक्फ जिनमें वक्फ बाई यूजर (उपयोग के आधार पर वक्फ) भी शामिल हैं, उन्हें गैर अधिसूचित नहीं किया जाएगा और न ही उनकी प्रकृति में बदलाव किया जाएगा। 

दलील थी कि कहा जा रहा है कि यह कानून वक्फ की सुरक्षा के लिए है, जबकि इसका उद्देश्य वक्फ पर कब्जा करना है। कानून इस तरह बनाया गया है कि बिना किसी प्रक्रिया का पालन किए वक्फ संपत्ति छीन ली जाए। कानून की विभिन्न धाराओं को उल्लेखित कर उनकी वैधानिकता पर सवाल उठाया और कानून को संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 में मिले धार्मिक स्वतंत्रता और धार्मिक संपत्तियों के प्रबंधन के मौलिक अधिकार का उल्लंघन बताया। उन्होंने संशोधित कानून में वक्फ बाई यूजर को खत्म करने, केंद्रीय वक्फ परिषद में और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने और वक्फ करने वाले के लिए पांच साल का प्रैक्टिसिंग मुस्लिम होने की शर्त को गलत बताया। कोर्ट ने भी सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं का पक्ष स्पष्ट तौर पर समझने के लिए कई सवाल पूछे जैसे कि क्या पहले के वक्फ कानून में वक्फ पंजीकृत कराना जरूरी था या स्वैच्छिक था? क्या पंजीकृत न कराने का कोई परिणाम भी तय था?

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