साहित्य और समाज सेवा: डॉ. मोहन भागवत के विचार
भाषा और साहित्य के महत्व को लेकर अपने विचारों का व्यक्ति किया है।
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साहित्य और समाज सेवा: डॉ. मोहन भागवत के विचार
भुवनेश्वर: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने भाषा और साहित्य के महत्व को लेकर अपने विचारों का व्यक्ति किया है। उनका कहना है कि साहित्य की रचना सिर्फ स्वांत सुख के लिए नहीं, बल्कि बहुजन हित के लिए होनी चाहिए।
उन्होंने बताया कि भाषा लोगों के दिलों को छूने का मुख्य साधन है और इसे सही उपयोग से ही सम्मान मिलता है। सिर्फ पुरस्कार और सम्मान देना ही भाषा को आगे नहीं बढ़ा सकता, बल्कि सही समय पर सही संवाद और कार्यों के माध्यम से ही समाज को जोड़ा जा सकता है।
उन्होंने धर्म को लेकर भी अपने विचार साझा किए और कहा कि लोगों के मन में धार्मिक भ्रांतियों को दूर करना महत्वपूर्ण है। धर्म उपासना पद्धति नहीं होती, बल्कि यह एक शाश्वत सत्य है जो समाज को जोड़ता है।
उन्होंने अखिल भारतीय साहित्य परिषद के सर्वभाषा साहित्यकार सम्मान समारोह में भारत की विभिन्न भाषाओं के साहित्यकारों का सम्मान किया और उन्हें प्रेरित करने के लिए प्रेरित किया।
उनका विचार है कि मातृभाषा का सही उपयोग करना आवश्यक है और भाषा के माध्यम से ही हम समाज में जुड़ सकते हैं। वे यह भी बता रहे हैं कि हमारे देश में एकता की विविधता है और इसे समझने में लोगों को गलती करनी चाहिए। यहां एकता में ही विविधता है और इसी विविधता में हमारी संस्कृति की विशेषता है।
डॉ. मोहन भागवत ने साहित्यकारों से भी उत्तरदायित्व बढ़ाने की बात की और उन्हें भारतीय समाज और संस्कृति की विशेषताओं को समझाने में मदद करने के लिए कहा।
समाप्त करते हुए उन्होंने कहा कि वर्तमान में समाज जागृत करने के लिए साहित्य को सकारात्मक रूप से प्रयोग करना चाहिए ताकि आत्महीनता में डूबा हुआ समाज आगे बढ़ सके।
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