राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने सुप्रीम कोर्ट को रिफरेंस भेजकर 14 सवालों पर मांगी राय

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने सुप्रीम कोर्ट को रिफरेंस भेजकर 14 सवालों पर मांगी राय, President Draupadi Murmu sent a reference to the Supreme Court and sought opinion on 14 questions,

May 16, 2025 - 06:20
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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने सुप्रीम कोर्ट को रिफरेंस भेजकर 14 सवालों पर मांगी राय

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने सुप्रीम कोर्ट को रिफरेंस भेजकर 14 सवालों पर मांगी राय


जब संविधान में नहीं है तो क्या कोर्ट विधेयकों पर मंजूरी की तय कर सकता है समय सीमा संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 से संबंधित हैं लगभग सभी पूछे गए सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल की ओर से रोके गए विधेयकों को मंजूर घोषित किया था यह है मामला: राष्ट्रपति की ओर से रिफरेंस भेजकर संवैधानिक सवालों पर मांगी गई राय को सुप्रीम कोर्ट के आठ अप्रैल के फैसले से जोड़कर देखा जा रहा है। हालांकि, रिफरेंस में फैसले का जिक्र नहीं है। जस्टिस जेबी पार्डीवाला व आर महादेवन की पीठ ने तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा विधेयकों को लंबे समय तक रोके रखने के मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया था और राज्य के विधेयकों पर मंजूरी के लिए राज्यपाल व राष्ट्रपति के लिए समय सीमा तय कर दी थी। इस फैसले के बाद बहस छिड़ गई थी कि जब संविधान में राष्ट्रपति के लिए समय सीमा तय नहीं है तो क्या कोर्ट न्यायिक आदेश से समय सीमा तय कर सकता है। अब इन सवालों पर राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 143 (1) के तहत कोर्ट से राय मांगी है। राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए रिफरेंस पर पांच न्यायाधीशों की पीठ सुनवाई करती है और अपनी राय राष्ट्रपति को देती है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की राय राष्ट्रपति या सरकार पर बाध्यकारी नहीं होती।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने विधेयकों पर मंजूरी के बारे में समय सीमा तय करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाते हुए शीर्ष अदालत को रिफरेंस (राष्ट्रपति प्रपत्र) भेजकर राय मांगी है। हालांकि, रिफरेंस में कोर्ट के फैसले का जिक्र नहीं है, लेकिन घुमा-फिराकर जो संवैधानिक सवाल पूछे गए हैं और सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी गई है, उनमें लगभग सभी सवाल उस फैसले से जुड़े नजर आते हैं। कुल 14 सवालों पर राय मांगी गई है। राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 143(1) के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट से पूछा है कि जब संविधान में विधेयकों पर मंजूरी के लिए कोई समय सीमा तय नहीं है, तो क्या न्यायिक आदेश के जरिये समय सीमा लगाई जा सकती है? क्या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाया गया कानून संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की मंजूरी मिले बगैर लागू होगा ?

 
राष्ट्रपति की ओर से पूछे गए लगभग सभी सवाल संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 से संबंधित हैं, जो राज्य विधानमंडल से पास विधेयकों पर राज्यपाल और राष्ट्रपति की मंजूरी के बारे में हैं। राष्ट्रपति ने पूछा है कि जब राज्यपाल के समक्ष अनुच्छेद 200 के तहत कोई विधेयक मंजूरी के लिए पेश किया जाता है, तो उनके पास क्या संवैधानिक विकल्प होते हैं? क्या राज्यपाल मंजूरी के लिए पेश किए गए विधेयकों में संविधान के तहत उपलब्ध सभी विकल्पों का प्रयोग करते समय मंत्रिपरिषद की सलाह और सहायता से बंधे हैं? क्या राज्यपाल द्वारा संवैधानिक विवेकाधिकार का प्रयोग करना न्यायोचित है? क्या संविधान का अनुच्छेद 361, राज्यपालों द्वारा अनुच्छेद 200 के तहत किए गए कार्यों के संबंध में न्यायिक समीक्षा पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता है? यानी कि क्या राज्यपालों द्वारा अनुच्छेद 200 में विधेयकों की मंजूरी के संबंध में किए गए कार्यों की न्यायिक समीक्षा पर अनुच्छेद 361 पूर्ण प्रतिबंध लगाता है?


राष्ट्रपति का सबसे अहम सवाल है कि जब अनुच्छेद 200 में राज्यपाल और अनुच्छेद 201 में राष्ट्रपति की शक्तियों के इस्तेमाल के बारे में संविधान में कोई समय सीमा और तरीका निर्धारित नहीं है, तो क्या न्यायिक आदेश के जरिये समय सीमा और तरीके तय किए जा सकते हैं? राष्ट्रपति ने पूछा है कि जब राज्यपाल ने विधेयक को राष्ट्रपति की सहमति के लिए सुरक्षित रख लिया हो या अन्यथा, तो उस स्थिति में क्या राष्ट्रपति को संविधान के अनुच्छेद 143 में रिफरेंस भेजकर सुप्रीम कोर्ट से सलाह लेनी चाहिए? यह प्रश्न इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि अगर राज्य के विधेयक की संवैधानिकता को लेकर राष्ट्रपति को कोई सवाल है तो वह सुप्रीम कोर्ट से राय ले सकती हैं।

राष्ट्रपति ने पूछा है कि क्या किसी विधेयक के कानून बनने से पहले उसकी विषय वस्तु पर न्यायिक निर्णय लेने की अनुमति न्यायालयों को है? क्या संवैधानिक शक्तियों के प्रयोग में राष्ट्रपति और राज्यपाल के आदेशों को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत किसी तरह प्रस्थापित (सब्स्टीट्यूट) किया जा सकता है? और जो सबसे बड़ा सवाल राष्ट्रपति ने पूछा है, वह ये है कि क्या राज्य विधान मंडल द्वारा बनाया गया कानून संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की सहमति के बिना लागू कानून है? यानी वह कानून की तरह लागू हो सकता है? 

सुप्रीम कोर्ट ने तय कर दी थी तीन महीने की समय सीमा

तमिलनाडु सरकार ने राज्यपाल आरएन रवि द्वारा लंबे समय तक 10 विधेयकों को दबा कर बैठे रहने और विधानसभा द्वारा उन विधेयकों को दोबारा पारित कर भेजे जाने पर राष्ट्रपति के विचारार्थ भेजने का मुद्दा सर्वोच्च न्यायालय में उठाया था। इस पर शीर्ष अदालत ने कहा था कि राज्यपाल द्वारा विचार  के लिए भेजे गए विधेयकों पर राष्ट्रपति को तीन महीने में निर्णय लेना होगा। अगर इसमें कोई देरी होती है और राष्ट्रपति तय समय में निर्णय नहीं लेते तो इसका उचित कारण रिकार्ड किया जाएगा और संबंधित राज्य को बताया जाएगा। अनुच्छेद 201 में राष्ट्रपति के पास कोई पाकेट वीटो या पूर्ण वीटो नहीं है। या तो वह विधेयक को मंजूरी दें या फिर उस पर मंजूरी रोक लें। राज्यपाल को संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत अपने समक्ष प्रस्तुत किसी विधेयक के संबंध में कोई विवेकाधिकार प्राप्त नहीं है। उन्हें मंत्रिपरिषद द्वारा दी गई सलाह का अनिवार्य रूप से पालन करना चाहिए।

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